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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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अपने इन 10 राजनेताओं की हत्या से सिहर उठा था देश

भारत में अब तक कई ऐसे राजनेताओं की हत्या किसी धार्मिक, राजनीतिक या फिर वैचारिक मतभेदों की वजह से कर दी गई है, जिनकी उपस्थिति से देश को केवल लाभ ही हो रहा था और देश के विकास के पथ पर अग्रसर था
Information Anupam Kumari 18 October 2019

भारत में एक से बढ़कर एक राजनेता हुए हैं, लेकिन उनमें से कई को हमने केवल उस नफरत के लिए खो दिया है, जो हमें कुछ भी नहीं दिला सकती, बल्कि नुकसान ही कराती है। जी हां, भारत में अब तक कई ऐसे राजनेताओं की हत्या किसी धार्मिक, राजनीतिक या फिर वैचारिक मतभेदों की वजह से कर दी गई है, जिनकी उपस्थिति से देश को केवल लाभ ही हो रहा था और देश के विकास के पथ पर अग्रसर था। यहां हम आपको हमारे देश के ऐसे ही शीर्ष राजनेताओं के बारे में बता रहे हैं, जिनकी मौत स्वाभाविक तरीके से नहीं हुई, बल्कि उनकी हत्या करके उन्हें मौत की नींद सुला दिया गया।

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महात्मा गांधी

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जब 30 जनवरी, 1948 को गोली मारकर हत्या कर दी गई तो केवल देश ही नहीं, अपितु पूरी दुनिया स्तब्ध रह गई थी। अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी ने हमेशा केवल सत्य और अहिंसा का पावन संदेश दिया। इसी के बल पर उन्होंने भारत को अंग्रेजों की दासतां से आजादी भी दिला दी, मगर इसके बावजूद बापू के नाम से प्रसिद्ध महात्मा गांधी की नई दिल्ली के एक विश्वविद्यालय के छात्र नाथराूम गोडसे ने तब गोली मारकर हत्या कर दी, जब वे प्रार्थना सभा को संबोधित करने के लिए आगे बढ़ रहे थे। बताया जाता है कि नाथराूम गोडसे इस बात से आहत थे कि भारत और पाकिस्तान का विभाजन करके महात्मा गांधी ने यहां रहने वाले लोगों को कभी न भुलाने वाला जख्म दिया है। उन्होंने महात्मा गांधी को ही इसका जिम्मेवार माना और महात्मा गांधी के योगदान के बारे में बिना कुछ भी सोचे उन्हें हजारों की भीड़ के सामने गोली मार दी। बाद में नाथराूम गोडसे को फांसी दे दी गई। इसमें कोई शक नहीं कि आजादी के बाद भी देश में गांधी जी का योगदान महत्वपूर्ण होता, मगर दुर्भाग्य से उन्हें पहले ही इस संसार से विदा कर दिया गया।

इंदिरा गांधी

इंदिरा गांधी को भारत की आरयन लेडी के नाम से भी जाना जाता है। भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री और दुनिया की दूसरी महिला प्रधानमंत्री इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी, जो कि 1966 से 1977 और 1980 से 1984 तक चार बार भारत की प्रधानमंत्री बनीं, उन्हें उनके सफदरजंग स्थित आवास नं0-1 पर उनके ही सिख अंगरक्षकों सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने गोलियों से छलनी कर 31 अक्टूबर, 1984 की सुबह मौत की नींद सुला दिया। दरअसल इंदिरा गांधी ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पर नियंत्रण प्राप्त करने के लिए सैन्य अभियान चलाया था और इसे कुछ सिखों ने स्वर्ण मंदिर की पवित्रता को नुकसान पहुंचाने वाला माना था। माना जाता है कि इसी वजह से इंदिरा गांधी के सिख अंगरक्षकों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी और फिर अपनी बंदूकें भी फेंक दीं। बेअंत सिंह को मौके पर मौजूद सैनिकों ने मार गिराया था। वर्ष 1989 में सतवंत सिंह को भी फांसी हो गई थी। इंदिरा गांधी ने जिस कुशलता के साथ शासन किया था, यदि वह जिंदा रहतीं तो शायद इस देश की तस्वीर ही आज कुछ अलग होती।

राजीव गांधी

राजीव गांधी जो कि अपने भाई संजय गांधी की मृत्यु के बाद संयोगवश राजनीति में आये थे और मां इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश के प्रधानमंत्री बनकर विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में क्रांतिकार कदम उठाकर देश को विकास के पथ पर ले जा रहे थे, लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान 21 मई, 1991 को चेन्नई के पास श्रीपेरंबदूर में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) की सदस्य व आत्मघाती हमलावर तेमोजी राजरत्नम ने आरडीएक्स-लेडन बेल्ट से ब्लास्ट करके खुद के साथ राजीव गांधी एवं वहां मौजूद 14 अन्य लोगों को भी मौत के घाट उतार दिया। भारत ने जो श्रीलंका में आतंकी संगठन एलटीटीई से लड़ने के लिए भारत से शांति रक्षा बल भेजे थे, LTTE ने राजीव गांधी की हत्या करके इसका बदला लिया। राजीव गांधी की सोच प्रगतिशील थी। सोवियत संघ के साथ वे देश के रिश्ते को मजबूत करने में लगे थे। इसमें कोई संदेह नहीं कि तकनीकी के क्षेत्र में आज नित्य नये आयाम छू रहे नये भारत की नींव राजीव गांधी ने ही रखी थी और यदि आज वे जिंदा रहते तो भारत की तस्वीर वास्तव में आज के भारत से और भी बेहतर होती।

फूलन देवी

फूलन देवी, जिनकी पहचान पहले चंबल के कुख्यात डाकू के रूप में रही थी और फिर जिन्होंने जेल की सजा काटने के बाद राजनीति में कदम रखते हुए लोकसभा में भी सांसद के रूप में कदम रखा था, उनकी अपने बंगले के बाहर 25 जून, 2001 को शेर सिंह राणा द्वारा पांच गोलियां मारकर हत्या कर दी गई थी। ऐसा कहा जाता है कि पूरे गांव के सामने कुछ ठाकुरों ने उनका निर्वस्त्र करके बलात्कार किया था, जिसका बदला लेने के लिए फूलन देवी ने बहमई में 22 ठाकुरों को मारकर नरसंहार किया था। इसके बाद आत्मसमर्पण करके उन्होंने 11 साल जेल की सजा काटी थी। बाहर आने के बाद वे समाजवादी पार्टी में शामिल हो गई थीं और 1996 में 11वीं लोकसभा चुनाव में मिर्जापुर से जीतकर सांसद बन गई थीं। आरोपित शेर सिंह राणा ने बाद में आत्मसमर्पण कर दिया था और माना जाता है कि बहमई नरसंहार का बदला लेने के लिए ही उसने फूलन देवी की हत्या का कदम उठाया था।

प्रमोद महाजन

प्रमोद महाजन को भारतीय जनता पार्टी का बेहद तेज-तर्रार नेता माना जाता था। वे अपनी भाषण देने की शैली से बेहद लोकप्रिय भी हो गये थे। वे पार्टी के महासचिव और राज्यसभा के सांसद भी थे। युवा नेता के रूप में देश के राजनीतिक परिदृश्य को आधुनिक तौर-तरीकों को अपनाते हुए बदलना उनका सपना था और इसके लिए वे प्रयासरत भी थे, मगर 22 अप्रैल, 2006 को उनके भाई प्रवीण महाजन ने ही घर में आपसी विवाद की वजह से गोली मार दी। इसके बाद प्रमोद महाजन 13 दिनों तक अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झूलते रहे। आखिरकार 3 मई, 2006 को उन्होंने दम तोड़ दिया। प्रवीण महाजन को आजीवन कारावास की सजा इसके बाद सुनाई गई थी। आज प्रमोद महाजन यदि जिंदा रहते तो भाजपा के दूसरी पीढ़ी के सबसे लोकप्रिय नेता होने की वजह से उनके कंधों पर निश्चित रूप से कोई बड़ी जिम्मेदारी होती।

ललित नारायण मिश्र

ललित नारायण मिश्रा जो कि ललित बाबू के नाम से आम जनता के बीच बहुत ही लोकप्रिय थे, उनकी ख्याति केवल बिहार में ही नहीं, बल्कि देशभर में थी। ललित नारायण मिश्र के बारे में कहा जाता है कि यदि वे जिंदा रहते तो इंदिरा गांधी भी उन्हें प्रधानमंत्री बनने से नहीं रोक सकती थीं। ललित नारायण मिश्र की हत्या 2 जनवरी 1975 को समस्तीपुर रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 3 पर बम फेंक कर कर दी गई थी। दरअसल एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए वे समस्तीपुर आए हुए थे। इस बम धमाके में वे बुरी तरह से जख्मी हो गए थे और इसके अगले दिन 3 जनवरी, 1975 को उनकी मृत्यु हो गई थी। आखिरकार 40 वर्षों के बाद उनकी हत्या में दोषी पाए गए गोपालजीज सुदेवानंद अवधूत, संतोषानंद अवधूत और रंजन द्विवेदी को उम्रकैद की सजा सुनाई गई।

अब्दुल गनी लोन

अब्दुल गनी लोन की गिनती जम्मू-कश्मीर के सबसे बड़े और लोकप्रिय नेताओं में हुआ करती थी। लोन की खासियत ये रही कि उनके विचार कट्टरवादियों से एकदम अलग रहे। उदारवादी सोच के साथ लोन ने हमेशा ही कश्मीर में शांति स्थापित किये जाने की वकालत की और इसके लिए प्रयासरत भी रहे। वर्ष 1990 के बाद लोन हुर्रियत कांफ्रेंस में शामिल हो गए थे। हालांकि, अपने उदारवादी दृष्टिकोण की वजह से वे कट्टरवादियों की आंखों का कांटा बन गए और आखिरकार 21 मई, 2002 को श्रीनगर में उनकी हत्या कर दी गयी। इस हत्या ने भी देश को स्तब्ध कर दिया था।

बेअंत सिंह

पंजाब कांग्रेस के सरदार बेअंत सिंह एक बहुत बड़े नेता थे। वह 1992 से 1995 तक पंजाब के मुख्यमंत्री भी रहे थे। पंजाब में स्थिति को सामान्य बनाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी, क्योंकि उन्होंने पंजाब में चले आ रहे अराजकता के माहौल को समाप्त करने के लिए कड़ा संघर्ष किया था। यह चीज खालिस्तानी अलगाववादियों को पसंद नहीं आई और उन्होंने 31 अगस्त, 1995 को उनकी कार को पंजाब सचिवालय के बाहर बम से उड़ा कर उनकी हत्या कर दी। डाक विभाग ने उनके सम्मान में वर्ष 2013 में एक डाक टिकट भी जारी किया था। बेअंत सिंह की हत्या का मुख्य आरोपी जगतार सिंह तारा इस वक्त चंडीगढ़ के बुरैल जेल में सजा काट रहा है।

हरेन पांड्या

हरेन पांड्या गुजरात के कद्दावर नेताओं में से एक थे। राज्य की राजनीति में उनकी कमाल की पकड़ थी। गुजरात की नरेंद्र मोदी सरकार में वे गृह मंत्री भी थे। इस बेहद तेज तर्रार नेता की 26 मार्च, 2003 को अहमदाबाद के लॉ गार्डन इलाके में उस वक्त गोली मारकर हत्या कर दी गयी, जब हर दिन की भांति वे सुबह के वक्त सैर के लिए निकले थे। इस हत्याकांड से केवल गुजरात ही नहीं, पूरा देश हिल गया था। आज तक पांड्या की हत्या की जांच चल रही है।

विद्या चरण शुक्ल

कांग्रेस के बेहद प्रतिष्ठित नेताओं में से एक विद्या चरण शुक्ल की राजनीति में एक अलग ही अंदाज झलकता था। जब 1975 से 1977 के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगा दिया था, उस वक्त देश के सूचना व प्रसारण मंत्री विद्या चरण शुक्ल ही थे। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में कांग्रेस नेताओं के काफिले पर जो नक्सलियों ने 25 मई, 2013 को हमला बोला, उसमें वे बुरी तरह से जख्मी हो गए और 11 जून, 2013 को उन्होंने अंतिम सांस ली।

ये सभी नेता अपने विचारों और अपनी सोच से बने। अपने विचारों और सोच के कारण ही ये भीड़ में भी पहचाने गए, मगर उनके यही विचार और उनकी यही सोच कुछ लोगों को हजम नहीं हुई और उन्होंने इनकी जान ले ली।

Anupam Kumari

Anupam Kumari

मेरी कलम ही मेरी पहचान