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मोदी सरकार की नीतियों का असर: 2019 में दुनिया की टाॅप 300 यूनिवर्सिटी में एक भारतीय नहीं

वल्र्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग सामने आई है जिसमें दुनिया भर के कुल 500 संस्थानों की सूची जारी की है. पिछले कुछ दशकों में भारत ने इस क्षेत्र में अपनी धमक दिखानी शुरु कर दी थी जब विश्व के टाॅप शैक्षणिक संस्थानों में भारत के संस्थानों का नाम आना शुरु हो गया था. इस बार भारत के लिए दुर्भाग्यपूर्ण खबर है. सात साल के बाद ऐसा हो रहा है जब दुनिया के टाॅप 300 विश्वविद्यालयों में भारत का नाम शामिल नहीं है. इससे पहले सिर्फ 2012 में ऐसा हो गया था.

ये सूची रैंकिंग टाइम्स हायर एजुकेशन की ओर से जारी की गई है. इसमें दुनिया भर के 92 देशों के कुल 1300 संस्थानों ने इस रैंकिंग में हिस्साल लिया था.


इस बार के टाॅप 5 विश्वविद्यालय

ब्रिटेन की प्रतिष्ठित ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी लगातार चौथे साल इस रैकिंग में पहले स्थान पर बनी हुई है. वहीं दूसरे नंबर पर यूएस की कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलाॅजी है. तीसरे नंबर पर कैंब्रिज यूनिवर्सिटी, चौथे नंबर पर स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, यूएस है तो पांचवा स्थान मैसेच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलाॅजी को हासिल हुआ है.


पिछले साल भी कमोबेश ऐसी ही सूची थी. रैंकिंग भी लगभग इसी प्रकार की थी लेकिन इस बार जो बड़ा परिवर्तन देखने को मिला है, वो यह है कि कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलाॅजी जो पांचवें नबर पर था, उसने अपनी रैंकिंग में सुधार की है, जिसकी वजह से वह इस बार दूसरे स्थान पर आया है.


भारत के संस्थान जिन्हें मिला टाॅप 500 में स्थान

भारत के लिए संतोषजनक खबर यह कही जा सकती है कि उसके पांच संस्थानों को वल्र्ड के टाॅप 500 संस्थानों में जगह मिल गई है. इसमें पहले नंबर आईआईएससी, बेंगलुरु, दूसरे नंबर आईआईटी रोपड़, तीसरे नंबर पर आईआईटी इंदौर, आईआईटी बाॅम्बे, आईआईटी दिल्ली और आईआईटी खड़गपुर है.

इनमें सबसे बेहतरीन प्रदर्शन आईआईटी रोपड़ का रहा जो पहली बार इस रैंकिंग प्रोग्राम में शामिल हुआ और भारत के संस्थानों में सर्वोच्च स्थान पर रहा. जबकि आईआईएससी, बेंगलुरु की रैंकिंग खिसक कर नीचे आ गई. पिछले बार आईआईएससी टाॅप 300 में शामिल था.


रैंकिंग गिरने की वजह सरकार की नीतियां


इसमें कोई दो राय नहीं कि वर्तमान समय में भारत आर्थिक बदहाली के दौर से गुजर रहा है. ये बात अलग है कि मीडिया सरकार के पक्ष में लगातार पत्रकारिता कर देशवासियों को इस बात का एहसास होने नहीं दे रहा लेकिन अंदर ही अंदर भारत कमजोर होता जा रहा है. यूनिवर्सिटी रैंकिंग में भी इसका असर साफ साफ दिख रहा है.
टाइम्स हायर एजुकेशन के अनुसार स्कोरिंग की यह प्रक्रिया किसी भी संस्थान को उसके छात्रों को उद्योग जगत से मिलने वाले आॅफर यानी की कैंपस सेलेक्शन अथवा प्लेसमेंट के हिसाब से तय की जाती है.

भारत में पिछले कुछ दशकों से कैंपस सेलेक्शन और प्लेसमेंट प्रोग्राम्स ने रफ्तार पकड़ ली थी लेकिन अब यह लगातार कमजोर होती जा रही है. एक तो भारत में जहां उद्योग धंधे लगातार खस्ता हाल में पहुंच चुके हैं. बड़े बड़े औद्योगिक समूह बंद होने के कगार पर हैं तो ऐसे में कहां से प्लेसमेंट प्रोग्राम के तहत वो संस्थानों से छात्रों को नौकरी के लिए हायर करें.

इसके अलावा हमारे देश में शिक्षा के क्षेत्र में सरकारी निवेश लगातार कम होता जा रहा है. सरकार मुर्तियां बनाने, कुंभ आयोजन करने, विज्ञापन करने पर अरबों खरबों रुपये फूंक रही है लेकिन शैक्षणिक संस्थानों की दशा, दिशा सुधारने में फिसड्डी साबित होती जा रही है.