दुनिया के लगभग आधे देशों में अपने पांव पसार चुके कोरोनावायरस के भारत में भी दस्तक देने की वजह से यहां भी लोगों के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई हैं। हालांकि, सरकार की ओर से इस बात का आश्वासन दिया जा रहा है कि इससे निपटने के लिए वह पूरी तरीके से तैयार है। फिर भी ऐसे कई सवाल हैं जो लोगों द्वारा इस संबंध में सबसे अधिक पूछे जा रहे हैं। यहां हम आपको कुछ ऐसे ही सबसे ज्यादा पूछे जाने वाले सवालों और उनके जवाब से अवगत करा रहे हैं।
किस तरीके से लिया जाएगा कोरोनावायरस का सैंपल टेस्ट?
निमोनिया का रूप यह बीमारी ले रही है। निमोनिया में फेफड़ों में फ्लूइड के निर्माण की वजह से यह जानलेवा बन जाती है और मरीजों का बचना इसमें कठिन हो जाता है। अब तक इस बीमारी की जांच के लिए सैंपल के तौर पर लोगों का खून ही लिया जा रहा है और इसकी जांच से ही यह पता किया जा रहा है कि वे इस बीमारी की चपेट में हैं या नहीं।
मांसाहारी लोगों को ही क्या सिर्फ कोरोनावायरस प्रभावित कर रहा है?
बड़ी संख्या में लोग यह सवाल पूछ रहे हैं। बहुत से लोगों का मानना है कि जो लोग मांसाहार का सेवन कर रहे हैं, उन्हीं को यह बीमारी अपना शिकार बनाएगी। हालांकि, इसमें बिल्कुल भी सच्चाई नहीं है। साफ-सफाई रखना इस बीमारी से बचने का एक महत्वपूर्ण पहलू है। यदि कोई व्यक्ति केवल शाकाहार का ही सेवन करता है, लेकिन साफ-सफाई नहीं रखता तो संभव है कि वह इस बीमारी का शिकार हो जाए। मांसाहार का जिक्र सिर्फ इस वजह से हो रहा है कि इसका सेवन अधिकतर लोग घर के बाहर करते हैं और बाहर के खाने में सफाई कितनी होती है, हर कोई इससे भली-भांति अवगत है।
कितने समय तक और कितने तापमान में कोरोनावायरस जिंदा रहता है?
बहुत से लोगों के मन में इसे लेकर जिज्ञासा है कि आखिर कितने दिनों तक कोरोनावायरस जिंदा रह सकता है और कितने अधिक या कितने कम तापमान को यह झेल सकता है? दरअसल सतह पर 9 दिनों तक यह जिंदा रहता है। साथ ही – 4 डिग्री सेल्सियस से 70 डिग्री सेल्सियस के तापमान को कोरोनावायरस झेल जाता है। ऐसे में यह जरूरी है कि ऐसे सैनिटाइजर का प्रयोग किया जाए, जिसमें कि अल्कोहल की मात्रा 75 फ़ीसदी तक हो। यह एक जिद्दी वायरस है, ऐसा डॉक्टर्स भी मान रहे हैं और उनका यही कहना है कि इससे लड़ने से अच्छा होगा कि ऐसे कारकों पर काम किया जाए, जो इसके प्रभाव को कमजोर कर दें।
कहां-कहां है कोरोनावायरस का परीक्षण करने वाले लैब?
अभी तक भारत में ऐसे करीब 20 लैब बनाने की खबर है। साथ ही और भी लैब बनाने की योजना पर काम चल रहा है। पुणे के नेशनल इंस्टीट्यूट आफ वायरोलॉजी यानी कि एनआईवी हर तरह की जांच पर अंतिम मुहर लगा रहा है। सैंपल पॉजिटिव हैं या नेगेटिव, यह बताने का काम एनआईवी की ओर से ही अंतिम रूप से किया जा रहा है।
कितने दिनों में मिल जाती है कोरोनावायरस के जांच की रिपोर्ट?
प्रयोगशालाएं तो देशभर में इसके लिए कई बना दी गई हैं, लेकिन अंतिम मुहर इस पर चूंकि पुणे स्थित एनआईवी की ओर से ही लगाई जा रही है, ऐसे में पूरी जांच रिपोर्ट आने में 3 से 4 दिनों का वक्त लग जा रहा है।
कोरोना वायरस के मरीजों को कितने दिनों तक आइसोलेशन में रखा जा रहा है?
जिन लोगों को कोरोनावायरस के शक में आम लोगों से अलग-थलग रखा जा रहा है, उनकी लिए आइसोलेशन के साथ क्वॉरेंटाइन शब्द का प्रयोग अधिक किया जा रहा है जहां तक इसकी अवधि की बात है तो दुनिया के अलग-अलग देशों में इसमें विभिन्नता देखने को मिल रही है। वैसे, सामान्य तौर पर कोरोनावायरस के संक्रमण की जिन लोगों को आशंका है, उन्हें 15 दिनों के लिए अलग रखा जा रहा है। अब यह समझने की जरूरत है कि आखिर क्वॉरेंटाइन और आइसोलेशन में अंतर क्या है, तो आपको बता दें कि जो लोग स्वस्थ हैं, लेकिन उनमें कोरोनावायरस होने की आशंका है तो उन्हें जांच किए जाने के बाद ही घर जाने को मिल रहा है। इनके लिए क्वॉरेंटाइन शब्द का प्रयोग हो रहा है। वहीं, जो लोग कोरोनावायरस की चपेट में आ चुके हैं और उन्हें इलाज के लिए अलग रखा जा रहा है तो उनके लिए आइसोलेशन शब्द का इस्तेमाल हो रहा है। उन्हें इस तरह से उपचार इसलिए दिया जा रहा है ताकि और भी लोग इस संक्रमण के शिकार ना हो जाएं। कुल मिलाकर साफ-सफाई से यदि रहा जाए तो कोरोनावायरस से बचा जा सकता है।