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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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महात्मा गांधी की इन गलतियों का खामियाजा आज पूरे देश को भुगतना पड़ रहा है।

महात्मा गांधी अपने अहिंसा के सिद्धांत की दुहाई देते रहे, लेकिन भारत का विभाजन जब हुआ तो वह कितने अहिंसक तरीके से हुआ, यह किसी से छुपा नहीं है।
Information Anupam Kumari 17 February 2020

महात्मा गांधी का नाम केवल भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में है। उन्होंने सत्य और शांति का संदेश दिया था। अहिंसा के पुजारी के रूप में वे जाने गए। भारत में उन्हें राष्ट्रपिता कहकर भी संबोधित किया गया, लेकिन इंसान कितना भी बड़ा क्यों ना हो गलतियां तो उससे हो ही जाती हैं। महात्मा गांधी से भी कुछ ऐसी गलतियां हुईं, जिनका खामियाजा आज पूरे देश को भुगतना पड़ रहा है। यहां हम आपको उनकी ऐसी ही पांच गलतियों के बारे में बता रहे हैं।

बेहद जिद्दी होना

गांधी जी बहुत ही जिद्दी स्वभाव के थे। उन्होंने कई आंदोलन और सत्याग्रह शुरू किए, लेकिन अपने सिद्धांतों की वजह से उन्होंने खुद इन आंदोलनों को खत्म कर दिया, भले ही उनका प्रभावी नतीजा निकलता नजर आ रहा हो। चाहे कितने भी बड़े नेता गांधीजी के सामने आ जाते थे, लेकिन वे तब तक उस नेता को भाव नहीं देते थे या उनका समर्थन नहीं करते थे, जब तक कि वे गांधीजी के विचारों से पूरी तरह से सहमत न हो जाएं। भारत का जब बंटवारा हो गया तो इसके बाद गांधी जी पाकिस्तान को पैसे देने की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठ गए, जबकि पाकिस्तान भारत पर हमला भी कर चुका था। इसी की वजह से भारत को पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये उस वक्त देने पड़े थे। सरदार पटेल ने महात्मा गांधी को बहुत समझाया कि इन पैसों से पाकिस्तान सिर्फ भारत के खिलाफ हथियार बनाएगा, लेकिन फिर भी महात्मा गांधी नहीं माने।

नहीं रोकी भगत सिंह की फांसी

भगत सिंह को जब फांसी की सजा हो गई थी तो महात्मा गांधी चाहते तो उन्हें फांसी के फंदे पर लटकने से बचा सकते थे, मगर महात्मा गांधी ने कभी इसे लेकर गंभीरता नहीं दिखाई। वायसराय को उन्होंने पत्र में यह जरूर लिखा कि इस फैसले पर पुनर्विचार किया जा सकता है, लेकिन महात्मा गांधी ने कभी भगत सिंह को बचाने के लिए कोई आंदोलन नहीं किया। प्रसिद्ध लेखक एजी नूरानी ने अपनी किताब ट्रायल ऑफ भगत सिंह में लिखा भी है कि महात्मा गांधी का प्रयास आधा अधूरा रहा। जब भगत सिंह ने जेल में हड़ताल की थी, तब भी महात्मा गांधी उन्हें देखने के लिए नहीं गए थे। इरविन को जो उन्होंने पत्र लिखा, उसमें उन्होंने भगत सिंह की फांसी की सजा को रद्द करने की बात नहीं लिखी, बल्कि इसे कुछ वक्त के लिए आगे बढ़ाने के लिए लिखा था। भगत सिंह को बचाने के लिए न तो उन्होंने कोई आंदोलन किया और ना ही भगत सिंह को फांसी दिए जाने का विरोध शांतिपूर्ण तरीके से कर रहे लोगों का ही उन्होंने साथ दिया।

वापस लिया असहयोग आंदोलन

महात्मा गांधी ने 1920 में असहयोग आंदोलन शुरू किया था। यह एक देशव्यापी आंदोलन बन गया था। इससे अंग्रेजों की चूलें हिल गई थीं, लेकिन चौरा-चौरी में उग्र भीड़ ने एक पुलिस थाने को जला दिया तो गांधी जी ने अपने आदर्शों की दुहाई देते हुए इस आंदोलन को वापस ले लिया। आंदोलन बेहद सफल होने की ओर बढ़ रहा था, पर सिर्फ अपने अहिंसा के आदर्शों के लिए उन्होंने इतने बड़े आंदोलन को अचानक समाप्त कर दिया। नतीजा यह हुआ कि 19 लोगों को दोषी ठहराते हुए उन्हें मृत्युदंड की सजा सुना दी गई। छह लोगों की मौत पुलिस की कस्टडी में हो गई। यही नहीं 110 लोगों को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा उन्हें सुनाई गई। सच तो यह था कि बिना किसी ठोस सबूत के सिर्फ संदेह के आधार पर सभी लोगों को सजा हुई। जिन लोगों को फांसी हुई, जो बेगुनाह मृत्युदंड पाए, क्या यह हिंसा नहीं थी? लेकिन गांधीजी को इस से कोई मतलब नहीं रहा। उनके लिए तो बस उनका आदर्श ही सब कुछ रहा।

नेताजी को कांग्रेस छोड़ने को किया मजबूर

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ही सबसे पहले महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कह कर संबोधित किया था। गांधी जी का वे बड़ा सम्मान करते थे, लेकिन महात्मा गांधी ने कभी नेताजी को पसंद नहीं किया। महात्मा गांधी का कहना था कि नेता वह होता है जो जो जनता द्वारा चुनकर आए। कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव हुआ तो नेताजी को 14 में से 13 वोट मिले थे। गणतांत्रिक तरीके से चुने गए थे। गांधीजी के चहेते नेहरू की इसमें हार हो गई थी। गांधीजी को यह बहुत बुरा लग रहा था। एक बार फिर से वे अपनी जिद पर अड़ गए, जिसका नतीजा हुआ कि सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस छोड़ने पर मजबूर हो गए।

भारत का विभाजन

वर्ष 1942 में जब भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ तो इससे अंग्रेज बुरी तरह से घबरा गए थे। इस वक्त भारत को आजादी मिल ही जाती, लेकिन अंग्रेजों ने एक चाल चली। उन्होंने महात्मा गांधी से कहा कि भारत यदि द्वितीय विश्वयुद्ध में उनकी मदद करे तो द्वितीय विश्वयुद्ध के खत्म होने के बाद वे भारत को आजाद कर देंगे। महात्मा गांधी ने अपनी आदत के अनुसार घुटने टेक दिए। आंदोलन वापस ले लिया, जबकि भारत को आजादी भारत छोड़ो आंदोलन के परिणामस्वरुप ही मिल जाती। आंदोलन स्थगित होने का नतीजा हुआ कि इसके बाद धर्म और क्षेत्र के आधार पर कई राजनीतिक पार्टियां बन गईं। देश के विभाजन की मांग उठने लगी। कांग्रेस ने भी इसका समर्थन कर दिया, जबकि महात्मा गांधी यदि अड़ जाते तो देश का विभाजन नहीं होता। अब्राहम लिंकन का उदाहरण लिया जा सकता है। अमेरिका जब आजाद हो रहा था तब उनके सामने भी कुछ ऐसी ही स्थिति पैदा हो गई थी, पर उन्होंने लंबी लड़ाई लड़ी। तभी आज अमेरिका यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका के नाम से जाना जाता है। महात्मा गांधी अपने अहिंसा के सिद्धांत की दुहाई देते रहे, लेकिन भारत का विभाजन जब हुआ तो वह कितने अहिंसक तरीके से हुआ, यह किसी से छुपा नहीं है।

इतना सब कुछ होने के बावजूद इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गांधी का एक बहुत बड़ा योगदान रहा है, जिसके लिए देश हमेशा उन्हें याद करता रहेगा और उनका सम्मान भी करता रहेगा।

Anupam Kumari

Anupam Kumari

मेरी कलम ही मेरी पहचान