उत्तर प्रदेश की राजनीति बदलने के लिए जाने जानेवाले किसान नेता और भारत के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, जिनकी जयंती आगामी 23 दिसंबर को मनाई जायेगी, वे भारत के इकलौते ऐसे अभागे प्रधानमंत्री रहे, जिन्हें कभी संसद में बोलने का मौका ही नहीं मिल सका। उत्तर प्रदेश के हापुड़ में जन्मे चौधरी चरण सिंह की जिंदगी किसानों को ही समर्पित रही और यही वजह है कि उनके जन्मदिन के दिन भारत में 23 दिसंबर को किसान दिवस भी मनाया जाता है। चौधरी चरण सिंह ऐसे नेता रहे जिन्होंने किसानों की बातों को केवल कागजों और योजनाओं तक ही सीमित नहीं रहने दिया, बल्कि इसे नेतागिरी तक लेकर गये।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान चरण सिंह आगरा यूनिवर्सिटी से विधि में डिग्री हासिल करने के बाद कर तो वकालत रहे थे, मगर गांधीजी द्वारा चलाये जा रहे आंदोलनों और कांग्रेस के 1929 के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य के ऐलान का उन पर असर ऐसा पड़ा कि गांधीजी द्वारा शुरू किये सविनय अविज्ञा आंदोलन के दौरान उन्होंने हिंडन नदी के किनारे जाकर नमक तक बना डाला था, जिसके लिए उन्हें 6 माह तक जेल की हवा भी खानी पड़ी थी। बस यहीं से आजादी के आंदोलन में भी वे सक्रिय तौर पर कूद गये थे।
पहली बार चरण सिंह विधानसभा के लिए बागपत से 1937 के चुनाव में चुने गये थे और किसानों की फसल से संबंधित एक क्रांतिकारी बिल उन्होंने विधानसभा में पेश किया था, जिसके जरिये उन्हें पहचान मिली थी। इस दौरान बनी कांग्रेस की सरकार में किसानों की कर्ज माफी के बिल को पारित करवाकर उन्होंने किसानों के खेतों को नीलाम होने से बचा लिया था। कोशिश तो उन्होंने उस वक्त सरकारी नौकरियों में किसानों के बच्चों को 50 प्रतिशत आरक्षण दिलाने की भी थी, मगर इसमें वे कामयाब नहीं सके थे। यहां तक कि जमीन के इस्तेमाल से संबंधित विधेयक भी उन्होंने तैयार कर लिया था, ताकि किसानों को कर में बढ़ोतरी और जमीन से बेदखली किये जाने से राहत मिल जाये।
गुप्त तरीके से क्रांतिकारी संगठन बनाकर उन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था। गोली मारने तक का आदेश उन्हें देखते ही अंग्रेजों की ओर से जारी किया गया था, मगर हर बार सभा करके ये बच ही निकलते थे। हालांकि, बाद में इन्होंने डेढ़ साल कैद की सजा भी काटी थी। इसी दौरान शिष्टाचार नामक एक किताब भी उन्होंने लिख डाली थी। देश के आजाद होने के बाद जब नेहरू का राजनीतिक कद इतना ऊंचा था कि उनका विरोध करने का मतलब अपने राजनीतिक करियर को ही खत्म कर लेना था, उस वक्त चरण सिंह ने पूरी दृढ़ता से आर्थिक नीतियों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की थी और खुलकर किसानों के पक्ष में अपनी बातें रखी थी।
विधानसभा चुनाव में 1952, 1962 व 1967 में जीत हासिल करने वाले और उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी से लेकर बाद में वित्त, कानून, सूचना व स्वास्थ्य सहित कई मंत्रालय संभालने वाले चरण सिंह ने 1967 में कांग्रेस को छोड़कर अपनी खुद की राजनीतिक पार्टी भारतीय क्रांति दल के नाम से बना ली। जब यूपी में पहली बार कांग्रेस के हारने के बाद चरण सिंह 1967 से 1970 तक प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो इस दौरान उन्होंने खाद पर से सेल्स टैक्स हटाने जैसा बड़ा फैसला लेने की हिम्मत दिखाई। यह अलग बात थी कि उनका यह कदम ज्यादा कामयाब नहीं हो सका।
इंदिरा गांधी के 1975 में देश में आपातकाल लगाये जाने की वजह से क्रुद्ध आवाम ने 1977 के चुनाव में इंदिरा गांधी को बुरी तरह से हराया और गैर-कांग्रेसी पार्टियों ने मिलकर पहली बार सरकार बना ली, जिसका नेतृत्व मोरारजी देसाई ने प्रधानमंत्री के तौर पर किया और चौधरी चरण सिंह को इस सरकार में उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री का पद मिल गया। अब आया चैधरी चरण सिंह के हाथ में उनके राजनीतिक जीवन का सबसे सुनहरा मौका। आंतरिक कलह जनता पार्टी की मोरारजी सरकार को ले डूबी, मगर चौधरी चरण सिंह कांग्रेस के समर्थन से देश के प्रधानमंत्री 28 जुलाई, 1979 को बन गये।
चैधरी चरण सिंह की सरकार को 20 अगस्त को सदन में बहुमत साबित करना था, मगर एक दिन पहले 19 अगस्त को ही इंदिरा गांधी ने उनकी सरकार से समर्थन वापस ले लिया, जिससे उनकी सरकार धराशाई हो गई और बिना संसद में पहुंचे और संसद में एक भी शब्द बोले चौधरी चरण सिंह की विदाई हो गई। देश के किसानों को लंबे समय तक इसका मलाल रहा, क्योंकि उनका मानना था कि यदि चौधरी चरण सिंह संसद में बोल पाते तो शायद किसानों की सूरत आज देश में कुछ और ही होती।
चौधरी चरण सिंह, जिन्होंने खाद और डीजल की कीमतों को वित्त मंत्री के तौर पर काफी हद तक नियंत्रित किया था और कृषि में इस्तेमाल में आने वाली मशीनों पर कर को घटाने के साथ नाबार्ड की स्थापना तक का कदम उठाया था, बतौर प्रधानमंत्री उन्हें कोई भी फैसला करने का मौका ही नहीं मिला। फिर भी जितना उन्होंने किसानों के लिए कर दिया, उसकी वजह से किसान नेता के रूप में वे हमेशा याद किये जाएंगे।