दिल्ली चुनाव काफी नजदीक है और कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी पूरी तरह से मैदान में उतर चुके हैं। एक तरह से देखा जाए तो ये मुकाबला त्रिकोणीय नहीं है बल्कि सिर्फ अरविंद केजरीवाल और नरेंद्र मोदी के बीच में ही है। भाजपा की तरफ से कोई भी चेहरा दिल्ली चुनाव में नहीं उतारा गया है और अमित शाह की तरफ से साफ किया गया है कि पार्टी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ही ये चुनाव लड़ेगी। अब दिल्ली चुनाव में मुद्दों को भी पूरे जोर-शोर से उठाया जा रहा है। जहां एक तरफ अरविंद केजरीवाल अपनी गुड गवर्नेंस के नाम पर चुनाव लड़ रहे हैं तो वहीं 2 मुद्दे ऐसे हैं जो उनके गले की हड्डी बने हुए हैं। केजरीवाल फ्री बिजली-पानी, बेहतर शिक्षा, महिला सुरक्षा और स्वास्थ्य को मुद्दा बनाकर लोगों से वोट मांग रहे हैं तो वहीं 2 मुद्दे उनके खिलाफ भी जा रहे हैं। ये 2 मुद्दे निर्भया केस और कन्हैया कुमार है।
पहली बात निर्भया मामले की
निर्भया की मां ने हाल ही में बयान दिया है कि अरविंद केजरीवाल सरकार ही निर्भया के दोषियों की फांसी में देरी करवा रही है। उनका कहना है कि सरकार की गलती की वजह से वो एक कोर्ट से दूसरे कोर्ट भाग रही हैं। आपको बता दें कि दिल्ली सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान कहा है कि 22 जनवरी को फांसी नहीं दी जा सकती है। वहीं भाजपा की तरफ से प्रकाश जावड़ेकर ने इस मौके का पूरा फायदा उठाया और केजरीवाल पर हमला बोला है। उन्होंने कहा कि निर्भया के दोषियों को फांसी देने में देरी दिल्ली सरकार की लापरवाही की वजह से हुई है और न्याय में देरी के लिए दिल्ली सरकार ही दोषी है।
वहीं आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने जवाब दिया और कहा कि भारतीय जनता पार्टी लोगों को गुमराह कर रही है। दिल्ली में कानून-व्यवस्था केंद्र सरकार के हाथ में है, तो फिर आम आदमी पार्टी देरी के लिए जिम्मेदार कैसे हुई। भाजपा की वजह से ही देरी हुई है और जावड़ेकर को आरोप लगाने की जगह पर माफी मांगनी चाहिए। हालांकि दया याचिका दाखिल करने के लिए तिहाड़ जेल प्रशासन की तरफ से नोटिस भेजा जाता है और तिहाड़ जेल दिल्ली सरकार के अंतर्गत आता है। यानी दिल्ली सरकार माने या ना माने, उसकी लापरवाही तो दिख ही रही है। इतना ही नहीं, मुकेश की दया याचिका की वजह से चारों की फांसी रुक गई है। इसकी वजह भी तिहाड़ जेल का एक नियम है, जिसके अनुसार अगर किसी एक मामले में चार लोगों को फांसी हुई है तो सबको फांसी एक साथ ही दी जाएगी या सबकी फांसी की तारीख आगे बढ़ेगी। आपको बता दें कि दया याचिका खारिज होने के बाद कानून दोषियों को 14 दिन का वक्त देना होता है।
दूसरा मुद्दा कन्हैया कुमार का
संसद हमले के दोषी आतंकी अफजल गुरु को फांसी दिए जाने के बाद 9 फरवरी 2016 को जेएनयू परिसर में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था और पुलिस के मुताबिक इस कार्यक्रम में कथित तौर पर देश विरोधी नारे लगाए गए। दिल्ली पुलिस ने इस मामले में 10 छात्रों के खिलाफ देशद्रोह का केस दर्ज किया, जिसमें 7 कश्मीरी आरोपी भी शामिल हैं। इन 10 आरोपियों में ही एक नाम है कन्हैया कुमार का, जिन पर देश विरोधी नारेबाजी का आरोप है। गवाहों के मुताबिक नारेबाजी वाली जगह पर कन्हैया कुमार भी थे और वहां प्रदर्शनकारियों के हाथों में आतंकी अफजल के पोस्टर थे।
इस मामले में दिल्ली पुलिस ने जेएनयू छात्र संघ के पूर्व नेता कन्हैया कुमार के खिलाफ देशद्रोह का केस दर्ज करते हुए भारत विरोधी नारे लगाने और नफरत और असंतोष फैलाने के आरोप में चार्जशीट भी फाइल की थी, लेकिन दिल्ली सरकार ने अपनी मंजूरी नहीं दी। हर बार यही कहा गया कि दिल्ली सरकार ने कन्हैया कुमार को बचाने का काम किया है।
हालांकि सवाल तो ये उठता है कि दिल्ली पुलिस तो केंद्र के अधीन है, तो फिर दिल्ली सरकार इसमें रोड़ा कैसे बन सकती है? यहां आपके लिए ये जानना जरूरी है कि अगर दिल्ली पुलिस देशद्रोह के किसी मामले में किसी शख्स के खिलाफ चार्जशीट दायर करती है तो उसे पहले दिल्ली सरकार के कानून विभाग की मंजूरी लेनी होती है। इस मंजूरी के बाद फाइल लेफ्टिनेंट गवर्नर के पास भेजी जाती है, जिसके बाद पुलिस को मामले को आगे बढ़ाने के लिए हरी झंडी मिलती है। अगर दिल्ली सरकार की इजाजत न हो तो भले ही दिल्ली पुलिस चार्जशीट दायर कर दे, लेकिन कोर्ट उस पर कोई ध्यान नहीं देगा। पिछली बार यही हुआ. दिल्ली पुलिस ने तो चार्जशीट दायर कर दी, लेकिन केजरीवाल सरकार ने मंजूरी नहीं दी और मामला लटका रह गया। अब यही दो मुद्दे दिल्ली चुनाव में अरविंद केजरीवाल और पूरी आम आदमी पार्टी के लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं।