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हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019 को ये 5 कारण बनाते हैं बेहद अलग

21 अक्टूबर को महाराष्ट्र और हरियाणा की जनता विधानसभा चुनाव 2019 के लिए मतदान करने वाली है। 24 अक्टूबर को इन दोनों राज्यों में नई सरकार बनने जा रही है। ऐसे में दोनों मोजूदा मुख्यमंत्रियों के लिए ये साख का सवाल है। इसके साथ ही ये केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के लिए भी अहम चुनाव साबित होने वाले हैं। चुनाव आयोग की तरफ से विधानसभा चुनाव 2019 की तारीखों का ऐलान करने के बाद से ही दोनों राज्यों के नेताओं ने अपनी कमर कस ली है और जमकर राजनीति करनी शुरु कर दी है। 2014 में हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया था और कई कीर्तिमान रचे थे। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में 25 सालों के बाद शिवसेना के साथ भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन टूटा था और अकेले चुनाव लड़कर 122 सीटें जीती थी। तो वहीं पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने हरियाणा विधानसबा चुनाव में पूर्ण बहुमत से चुनाव जीता और सरकार बनाई थी।

विधानसभा चुनाव 2019 कई मायनों में अलग है, क्योंकि हर राज्य में राजनीतिक समीकरण बदल गए हैं। कई दोस्त दुश्मन बन गए हैं, परिवारों में लड़ाई हो गई है। मुद्दे बदल गए हैं, नेता बदल गए हैं, सवाल बदल गए हैं। तो ऐसे में ये नरेंद्र मोदी से लेकर सोनिया गांधी तक सभी के लिए एक बड़ा कठिन चुनाव होने वाला है। इसके पीछे कई कारण है, तो इस आर्टिकल में हम आपको ऐसे ही कारणों के बारे में बताएंगे।

2019 लोकसभा चुनाव के बाद पहला विधानसभा चुनाव

भारतीय जनता पार्टी ने 2019 लोकसभा चुनाव में 303 सीटें जीती थी, जिससे नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता साबित हो गई थी। लेकिन विधानसभा चुनाव में भी क्या ये लोकप्रियता बनी रहेगी या नहीं इस पर सवाल है। 2014 के चुनाव में पूरा देश कांग्रेस के घोटालों से परेशान था, क्या वो अब दोबारा से कांग्रेस पर भरोसा करने लगा है या नहीं? बीजेपी 2014 में अकेले लड़ी थी, लेकिन इस बार शिवसेना के साथ महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव लड़ रही है, तो इसका नुकसान होगा या फायदा? वहीं हरियाणा विधानसभा चुनाव में इनेलो पूरी तरह से बिखर गई है, कांग्रेस में आंतरिक कलह है, इससे विपक्ष कैसे निकलेगा?

370 और तीन तलाक के बाद पहला चुनाव

हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019 में तीन तलाक और 370 ने सबसे अहम रोल निभाना है। अनुच्छेद 370 और तीन तलाक जैसी प्रथा को संसद के जरिये मोदी सरकार ने खत्म करवा दिया है। इन दोनों के खत्म होने से सोशल मीडिया पर तो मोदी लहर साफ नजर आई थी, लेकिन ये लहर चुनाव नतीजों में बदलेगी या नहीं ये देखने वाली बात होगी। इसमें कोई दोराय नहीं है कि बीजेपी के द्वारा इन दोनों मुद्दों को विधानसभा चुनाव 2019 में पूरे जोर-शोर से उठाया जाएगा। पहले से ही भारतीय जनता पार्टी तीन तलाक और 370 को अपने चुनावी प्रचार में काफी ऊपर रखती रही है। अब ऐसे में इस कामयाबी का शोर तो पूरी बीजेपी की तरफ से मचना तय ही है। इनके तोड़ में विपक्ष की तरफ से क्या रणनीति अपनाई जाती है, उस पर नजर रखनी होगी। क्या विपक्ष इन दोनों का तोड़ पेश कर सकता है या फिर वो इस मुद्दे पर खोमाश हो लेगा।

गिरती अर्थव्यवस्था और बेरोजगारी

कई सालों से देखते आ रहे हैं कि लोकसभा चुनाव तो नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लड़ा जाता है, लेकिन विधानसभा चुनाव भी प्रधानमंत्री केही चेहरे पर लड़ा जाता है। ऐसे में केंद्र सरकार की रणनीतियों और योजनाओं का असर सीधा विधानसभा चुनाव 2019 में पड़ेगा। अब जहां सरकार के पास 370 और तीन तलाक जैसी उपलब्धियां हैं तो वहीं बेरोजगारी और अर्थव्यवस्था जैसी विफलताएं भी है। और इन्ही के बूते पर विपक्ष चुनाव मैदान में उतरने वाला है। ये कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष के लिए संजीवनी है। जहां अर्थव्यवस्था बुरी तरह से गिरी हुई है, महंगाई बढ़ गई है, प्याज के दाम फिर से आसमान छू रहे हैं प्याज की वजह से कई सरकारें और नेता रोए हैं। तो ऐसे में क्या मौजूदा दोनों मुख्यमंत्रियों को नुकसान होने की संभावना है? बेरोजगारी दशकों के निचले स्तर पर है तो जीडीपी भी कई साल पीछे खिसक गई है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी के लिए इन दोनों मुद्दों पर विपक्ष से कड़ी चुनौती मिलने वाली है।

अलग चेहरों पर खेला था 2014 में दांव

महाराष्ट्र और हरियाणा दोनों ही ऐसे राज्य है जिनमें एक तबके का बोलबाला ज्यादा रहता है। अगर बात करें महाराष्ट्र की तो ये मराठों का शहर माना जाता है और ज्यादातर मुख्यमंत्री भी इस राज्य में मराठा ही रहे हैं। लेकिन विधानसभा चुनाव 2014 में भारतीय जनता पार्टी ने देवेंद्र फड़नवीस को मुख्यमंत्री बनाया था, जो एक ब्राह्मण है। वो दूसरे गैर मराठा मुख्यमंत्री बने थे, तो ऐसे में क्या महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019 में फिर से देवेंद्र फड़नवीस पर दांव खेला जाएगा और क्या वो सफल होंगे? वहीं अगर बात हरियाणा की करें तो इस राज्य में जातों का दबदबा ज्यादा रहा है। राज्य में जातों ने ही राजनीति को अलग मुकाम पर पहुंचाया है, लेकिन 2014 में बीजेपी ने मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाया था, जो कि एक पंजाबी है। चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने पहले चेहरा नहीं बताया था, लेकिन इस बार सभी जानते हैं कि खट्टर ही भारतीय जनता पार्टी के चेहरे हैं और उन्हीं के नाम पर वोट लिए जाएंगे तो क्या ऐसे में जातों की राजनीति फिर से हावी होगी या मनोहर लाल खट्टर इसका तोड़ निकाल लेंगे?

राहुल गांधी के अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद पहला चुनाव

लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस को मिली शर्मनाक हार के बाद राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद लंबी बहस, चर्चा और कई नामों पर सोच विचार करने के बाद कांग्रेस पार्टी ने दोबारा से सोनिया गांधी को ही अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दे दी। ऐसे में जहां राहुल गांधी जनता के बीच में एक अध्यक्ष के रूप में जाते थे और जुड़ते थे, वो शायद सोनिया गांधी अपनी उम्र और सेहत की वजह से न कर पाएं। सोनिया गांधी ने 19 सालों तक पार्टी की कमान संभाली है, जिसमें से 10 साल पार्टी ने देश की सत्ता संभाली है। लेकिन अब के हालात शायद बदल गए हैं और सोनिया गांधी का शायद जनता से रिश्ता कमजोर सा हो गया है। और ऐसे में राहुल गांधी को बिना अध्यक्ष के जनता से कितना समर्थन मिलेगा ये कहा नहीं जा सकता है? तो ये भी एक अहम बात है जो हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019 को अलग बनाती है।