अयोध्या मसले पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आ जाने के बाद केवल देश ही नहीं, बल्कि इस वक्त पूरी दुनिया की नजर अयोध्या पर है। इसमें कोई शक नहीं कि राम जन्मभूमि की वजह से अयोध्या विख्यात रहा है, लेकिन इसके अलावा भी अयोध्या से जुड़े बहुत से ऐसे रोचक तथ्य हैं, जिनसे आमजन अवगत नहीं हैं। इस लेख में हम आपको अयोध्या से जुड़ी कुछ ऐसी ही बातें बता रहे हैं, जिनके बारे में शायद आप अब तक ना जानते हों।
मनु के पुत्र इक्ष्वाकु से अयोध्या और इसके सूर्य वंश की शुरुआत मानी जाती है। अयोध्या के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्राचीन भारत के तीर्थों का उल्लेख होने पर उसमें सबसे पहले नाम अयोध्या का सामने आता है। यह श्लोक इस प्रकार है- अयोध्या मथुरा माया काशि कांची अवंतिका, पुरी द्वारावती चैव सप्ततेता मोक्षदायिका।
सबसे बड़ी बात यह है कि प्राचीन तीर्थों में प्रयाग का तो नाम ही नहीं आता है। जैन परंपरा में भी जो 24 तीर्थंकर हुए थे, उनमें से 22 का संबंध इक्ष्वाकु वंश से ही था। 24 तीर्थंकरों में सबसे पहले तीर्थंकर आदित्यनाथ जो कि ऋषभदेव जी के नाम से जाने जाते हैं, उनके साथ चार और तीर्थंकर अयोध्या में ही जन्मे थे। बौद्ध मान्यताओं की बात करें तो इसके मुताबिक भगवान बुद्ध ने अयोध्या अथवा साकेत में 16 वर्ष बिताए थे। इस तरह से हिंदू धर्म के साथ बौद्धों और जैन संप्रदायों का भी यह बेहद पवित्र स्थल हुआ करता था।
संत रामानंद जो कि मध्यकालीन भारत में बेहद प्रख्यात हुए थे, जन्म तो उनका प्रयाग में हुआ था, मगर रामानंदी संप्रदाय का मुख्य केंद्र अयोध्या ही हुआ करता था। महर्षि वाल्मीकि ने जो रामायण में बाल कांड लिखा है, उसमें अयोध्या के बारे में उन्होंने लिखा है कि यह 12 योजन लंबी और 3 योजन चौड़ी थी।
चीनी यात्री ह्वेनसांग जो की सातवीं शताब्दी में भारत आए थे, उन्होंने अयोध्या को पिकोसिया कहकर संबोधित किया है। आइन-ए-अकबरी में भी अयोध्या का उल्लेख मिलता है, जिसमें इसकी लंबाई 148 कोस और चौड़ाई 32 कोस की बताई गई है।
त्रेतायुग में भगवान राम के इक्ष्वाकु वंश का होने का उल्लेख तो मिलता ही है, साथ में द्वापर युग में महाभारत एवं उसके बाद भी अयोध्या में सूर्यवंशी इक्ष्वाकु राजाओं के उल्लेख मिल जाते हैं। बृहद्रथ जो कि महाभारत में अभिमन्यु के हाथों मारा गया था, वह भी इक्ष्वाकु वंश का ही शासक था।
लव ने इसके बाद श्रावस्ती की स्थापना की थी। अगले 800 वर्षों तक इसका स्वतंत्र उल्लेख मिल जाता है। इसके बाद मगध साम्राज्य के मौर्य वंश से लेकर गुप्त वंश एवं कन्नौज तक के शासकों ने अयोध्या में राज किया। बाद में महमूद गजनी के भांजे सैयद सालार ने अयोध्या में तुर्क साम्राज्य की स्थापना कर दी। बहराइच में 1033 ईसवी में सैयद सालार मारा गया था। अयोध्या इसके बाद शकों ने अपना साम्राज्य स्थापित कर दिया। अयोध्या में 1440 ईस्वी में शक शासक महमूद शाह के शासन का विशेष तौर पर इतिहास में उल्लेख मिल जाता है।
मुगल सम्राट बाबर ने 1526 ईसवी में अयोध्या में मुगल राज्य की स्थापना की थी। बाबर के सेनापति ने 1528 ईसवी में यहां आक्रमण किया था, जिसके बाद उसने यहां मस्जिद का निर्माण कराया था। इसी बाबरी मस्जिद के ढांचे को मंदिर-मस्जिद विवाद की वजह से वर्ष 1992 में रामजन्मभूमि आंदोलन के दौरान ढहा दिया गया था।
अयोध्या के स्थापना के संबंध में पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि मनु एक नगर की स्थापना के लिए भगवान विष्णु के पास ब्रह्मा जी के साथ पहुंचे थे। तब विष्णु जी ने साकेत धाम में इसके लिए एक उपयुक्त जगह बसाई थी। इस नगर को बसाने के लिए ब्रह्मा जी और मनु के साथ भगवान विष्णु ने देव शिल्पी विश्वकर्मा को भी भेज दिया था। भगवान विष्णु को रामावतार लेना था, तो इसके लिए भी उपयुक्त स्थान के चयन के लिए साथ में उन्होंने महर्षि वशिष्ठ को भी भेजा था। ऐसी मान्यता है कि सरयू नदी के तट पर लीलाभूमि का चयन महर्षि वशिष्ठ ने ही किया था, जहां पर भगवान विश्वकर्मा द्वारा एक नगर का निर्माण किया गया था। यही अयोध्या के नाम से जाना गया। स्कंद पुराण बताता है कि अयोध्या भगवान विष्णु के चक्र पर आसीन है। बेंटली और पार्जिटर जैसे विद्वानों ने ग्रह मंजरी में अयोध्या के बारे में प्राचीन ग्रंथों के आधार पर लिखा है कि इसकी स्थापना ईसा पूर्व 2200 के आसपास हुई थी। भगवान राम का जन्म यहां 5114 ईस्वी पूर्व हुआ बताया जाता है।
अयोध्या से जुड़ी यह जानकारी हर भारतीय को जननी चाहिए। इसलिए इसे पढ़ने के बाद यदि आप इसे बाकी लोगों के साथ भी पढ़ने के लिए शेयर करते हैं तो यह एक सराहनीय कदम होगा।