हमारे देश में मिड-डे मील की शुरुआत करने के पीछे का मुख्य उद्देश्य था कि गरीब स्कूल जाने वाले बच्चों को अच्छे पोषण से बना हुआ खाना मिल सके, ताकि कोई भी बच्चा कुपोषण का शिकार न हो पाए, लेकिन ये बात सिर्फ कहने और सुनने के लिए ही बाकी रह गई है, क्योंकि इस योजना कि वजह से बहुत से बच्चों को अपनी जान भी गंवानी पड़ गई है।
हम अक्सर कहते हैं कि बच्चे देश का भविष्य होते हैं, लेकिन हम अपने भविष्य के लिए किस दिशा में जा रहे हैं वो कोई नहीं जानता है। इसी भविष्य को सुधारने के लिए सरकारों के द्वारा सरकारी स्कूलों में मिड-डे मील योजना को चलाया जाता है। जो कि इस उद्देश्य पर काम करती है कि बच्चों को अच्छे पोषण वाला खाना मिले, ताकि कोई भी बच्चा कुपोषण का शिकार न हो और हम एक स्वस्थ भारत का निर्माण कर सके। लेकिन हाल ही में एक खबर चलाई गई जिसमें उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के एक सरकारी स्कूल में लगभग 100 छात्रों को मिड-डे मील के नाम पर रोटी और उसके साथ नमक दिया गया है।
वीडियो वायरल होने से हुआ खुलासा
इसका एक वीडियो भी खूब वायरल हुआ जिसमें देखा गया कि बच्चे स्कूल में फर्श पर बैठे हैं और वो नमक के साथ ही रोटियां खाते हुए दिखाई दे रहे हैं। इस खबर के सामने आने के बाद से एक बार फिर से मिड डे मील की पूरी व्यवस्था को सवालों के कठघरे में खड़ा कर दिया गया है। आखिर बच्चों को पौष्टिक आहार के नाम पर रोटी और नमक कैसे दिया जा रहा है? इतना ही नहीं जब मामला सामने आया तो ये भी खुलासा हुआ कि नमक और रोटी ही नहीं बल्कि नमक और और चावल भी दिया जाता है। यहां तक की जो दूध बच्चों के लिए आता है वो कभी उन्हें दिया ही नहीं जाता है, ऐसे ही फल भी उन बच्चों तक नहीं पहुंचते हैं।
ग्रामिणों का कहना है कि मिड डे मील का खाना स्कूल प्रशासन के लोग अपने घर पर ले जाते हैं और उसे बेचकर पैसे कमाने का काम करते हैं। जिसकी जगह पर बच्चों को नमक-रोटी या पानी जैसी दाल ही खाने के नाम पर दी जाती है। वहीं दूसरी तरफ यूपी की योगी सरकार का कहना है कि वो दिसंबर 2018 के आंकड़ों के अनुसार राज्य भर में 1.5 लाख से ज्यादा प्राइमरी और मिडल स्कूलों में मिड-डे मील देती है। इस स्कीम के तहत एक करोड़ से ज्यादा बच्चों को फायदा मिलता है। इस पूरी योजना की देखरेख की जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश मिड-डे मील अथॉरिटी के द्वारा की जाती है। यहां तक की इस अथॉरिटी की वेबसाइट पर मिड-डे मील का मेन्यू भी दिया गया है। इस मेन्यू के मुताबिक अगर देखा जाए तो दाल चावल, रोटी और सब्जी बच्चों को दी जानी चाहिए, यहां तक कि खास दिनों पर फल और दूध भी इन बच्चों के लिए मुहैया कराने की बात कही गई है।
हालांकि इस बात के सामने आने के बाद कुछ लोगों को, टीचरों को सस्पेंड जरूर कर दिया है। डीएम ने भी इस मामले पर संज्ञान लिया है, लेकिन जवाबदेही अभी भी तय होना बाकी है और ये धांधलेबाजी बच्चों के साथ कब से की जा रही है, इसका किसी के पास कोई जवाब नहीं है। देखा जाए तो केंद्र सरकार के मुताबिक मिड-डे मील योजना के तहत हर बच्चे को रोजाना कम से कम 450 कैलोरी देने की बात कही गई है। जिसमें कम से कम रोज के 12 ग्राम प्रोटीन भी शामिल होने चाहिए। ये भोजन हर बच्चे को कम से कम 200 दिनों तक दिया जाना है। गौरतलब है कि मीड डे मील में प्रशासन की लापरवाही का ये मामला पहली बार सामने नहीं आया है। कई बार इस तरह के मामले जिसमें भोजन की गुणवत्ता पर सवाल खड़े हुए हैं, लेकिन वो मामले सुर्खियों में आने से पहले ही गायब भी हो जाते हैं और असर कुछ नहीं होता है।
मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 900 से बच्चे हुए मिड-डे मील से बीमार
मानव संसाधन विकास मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक देशभर में 3 साल के अंदर मिड-डे मील खाने की वजह से 900 से अधिक बच्चों के बीमार होने की बात सामने आई है। मंत्रालय के पास इस अवधि में ही घटिया भोजन के संबंध में 15 राज्यों से और 35 केंद्र शासित प्रदेशों से शिकायतें मिलीं। लेकिन इन पर क्या कदम लिया गया ये मंत्रालय भी डकार गया है।
ये पूरी योजना एक घोटाले के जाल में जकड़ी हुई है, इस बात के तो साफ सबूत मिल गए हैं। बच्चों को दिए जाने वाले खाने की गुणवत्ता को कम कर के कुछ अधिकारी बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ तो कर ही रहे हैं, साथ ही सरकार के साथ भी धोखा कर रहे हैं। लेकिन ऐसा नहीं कह सकते हैं कि इसमें सरकार का कोई हाथ नहीं है, सरकार की भूमिका भी शक के घेरे में जरूर आती है। आखिर है तो ये भी एक स्कैम ही। इतने मामलों के बाद भी सरकार की तरफ से कोई ठोस कदम नहीं लिया जाना सबसे बड़ा सवाल बन कर सामने आया है।