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नाम है इसका थ्वाईट्स ग्लेशियर, पिघला तो मौत के मुंह में समा जाएंगे करोड़ों जिंदगियां

प्रकृति ही जीवन है। प्रकृति हमें सब कुछ देती है। प्रकृति हमारे जीवन का आधार है। प्रकृति से छेड़छाड़ बहुत महंगा पड़ रहा है। जलवायु में बदलाव आ रहे हैं। जलवायु में आने वाले बदलाव बड़े ही घातक साबित हो रहे हैं। प्रकृति की हर चीज इससे प्रभावित हो रही है। थ्वाईट्स ग्लेशियर पर भी इसका बड़ा ही बुरा असर पड़ रहा है। दुनियाभर में इसकी वजह से खतरा मंडरा रहा है। कई प्राकृतिक आपदाएं जलवायु परिवर्तन की वजह से देखने के लिए मिल चुकी हैं।

हाल ही में उत्तराखंड में भी एक ऐसी ही दुखद घटना घटी है। चमोली में ग्लेशियर टूटा है। बाढ़ के पानी की वजह से बहुत सी जिंदगी खत्म हो गई है। अभी भी राहत और बचाव कार्य चल रहे हैं। यह जो ग्लेशियर टूटा था, इसका आकार बहुत ही छोटा था। दुनिया में बहुत बड़े-बड़े ग्लेशियर मौजूद हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण इनके पिघलने की रफ्तार भी अच्छी-खासी है। जिस दिन ये पिघल गए, तो उस दिन दुनिया का क्या होगा?

बड़ा ही खतरनाक ग्लेशियर

दुनिया का सबसे बड़ा ग्लेशियर अंटार्कटिका में थ्वाईट्स ग्लेशियर है। यही नहीं, इसे बहुत ही खतरनाक ग्लेशियर माना जा रहा है। इसकी वजह भी है। दुनियाभर के वैज्ञानिकों ने इस ग्लेशियर पर नजरें बना रखी हैं।

विकिपीडिया  में इसे एक बहुत ही बड़ा ग्लेशियर बताया गया है। इसके मुताबिक यह बहुत ही तेज गति से बह रहा है। पश्चिमी अंटार्कटिका में यह मौजूद है। 2 किलोमीटर प्रति वर्ष की सतह गति से यह ग्लेशियर बह रहा है। जहां यह ग्लेशियर है, वह बहुत ही दुर्गम जगह है। वैसे, 2018 तक मुश्किल से 25 लोग ही यहां पहुंच सके थे। जलवायु परिवर्तन का असर इस पर पड़ रहा है।

टूट गया था एक खंड

तापमान में बढ़ोतरी हो रही है। इस वजह से ग्लेशियर पिघल रहा है। समुद्र की सतह धीरे-धीरे बढ़ रही है। वर्ष 2002 में इसका एक टुकड़ा इससे टूटकर अलग हुआ था। इसका नाम B-22 था। इसकी लंबाई 85 किलोमीटर की थी। चौड़ाई भी इसकी 65 किलोमीटर की थी। क्षेत्रफल इसका 5 हजार 490 वर्ग किलोमीटर था। भारत का जो सिक्किम राज्य है, उससे यह सिर्फ 22 प्रतिशत ही कम था।

बेहद विशालकाय है ये

समुद्र पर यह ग्लेशियर तैर रहा है। कई किलोमीटर तक यह समुद्र में डूबा हुआ भी है। इस ग्लेशियर की चौड़ाई जानकर आप हैरान रह जाएंगे। यह करीब 468 किलोमीटर चौड़ा है। इसका आकार बहुत ही विशालकाय है। इसे एक विशालकाय दैत्य की तरह आप कह सकते हैं। मजबूत से मजबूत जहाज इससे टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो सकते हैं।

हो चुका है बड़ा छेद

इसका क्षेत्रफल भी हैरान कर देने वाला है। यह एक लाख 92 हजार वर्ग किलोमीटर है। इतना बड़ा ग्लेशियर पिघल रहा है। तापमान बढ़ने से पिघलता ही जा रहा है। जिस दिन यह पिघल गया, तो क्या यह दुनिया बच पाएगी? नासा के वैज्ञानिकों ने इसका अध्ययन किया है। उन्होंने देखा है कि इसके अंदर छेद होते जा रहे हैं। उनका कहना है कि एक बहुत बड़ा छेद इसमें हो गया है। यह छेद इतना बड़ा है कि अमेरिका के शहर मैनहट्टन के भी यह दो तिहाई आकार के बराबर का है।

अमेरिका और ब्रिटेन के बीच करार

इसका अध्ययन करना वैज्ञानिकों के लिए आसान नहीं रहा है। बड़ी मेहनत उन्हें करनी पड़ी है। मौसम इस ग्लेशियर के आसपास बहुत ही तूफानी तरह का रहता है। ऐसे में सेटेलाइट तस्वीरें यहां की साफ नहीं आ पाती हैं। अमेरिका और ब्रिटेन के बीच इसे लेकर एक करार हुआ था। यह करार इस ग्लेशियर की फोटो निकालने के लिए था। इंटरनेशनल थ्वाईट्स ग्लेशियर कोलैबोरेशन के नाम से इसे जाना जाता है।

आएगी भारी तबाही

इसके पिघलने की वजह से चिंता बढ़ती जा रही है। यह यदि पिघल गया तो 2 से 5 फ़ीसदी तक समुद्र का जलस्तर बढ़ जाएगा। इस वजह से तटीय इलाकों को पानी में डूबने से कोई बचा नहीं पाएगा। कई देशों की करोड़ों की आबादी इससे प्रभावित हो सकती है। बड़ी आबादी मौत के मुंह में समा सकती है। मौत से यदि बचना है, तो फिर इन्हें यहां से विस्थापित होना पड़ेगा।

अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

ग्लेशियर पिघलने का असर अर्थव्यवस्था पर भी पड़ सकता है। इसकी वजह से दुनिया महामंदी की चपेट में आ सकती है। जल प्रलय इसके कारण आ सकता है। ताजे पानी का 90 फ़ीसदी हिस्सा अंटार्कटिका की बर्फ से आता है। बर्फ पिघला तो कहीं जलस्तर बढ़ेगा, तो बाकी इलाकों में पानी कम हो जाएंगे। नदियां भी इसकी वजह से सूख सकती हैं।

यही वजह है कि इस ग्लेशियर का पिघलना खतरनाक है। यह कयामत लेकर आ सकता है। तभी तो वैज्ञानिक भी थ्वाईट्स ग्लेशियर को डूम्सडे ग्लेशियर भी कह रहे हैं।