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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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जो जेल में होने चाहिए अब वो नहीं होंगे संसद या विधानसभा में!

राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने सभी सियासी दलों से पूछा है कि वो क्रिमिनल बैकग्राउंड वाले उम्मीदवार को टिकट क्यों देती है ?
Logic Taranjeet 21 February 2020

ये कोई नई बात नहीं है जब कत्ल, अपहरण, रेप करने वाले हमारे यहां चुनाव लड़ें और जीत कर संसद या विधानसभा में पहुंच जाएं। दशकों से भारत की राजनीति में ऐसे नेता रहे हैं हालांकि अब ये सिलसिला और भी बढ़ा है। अफसोस होता है जब कानून बनाने वाले ऐसे कुख्यात अपराधी हो। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद लगता है कि अब ये सिलसिला बंद हो जायेगा या कम से कम इसमें कमी आएगी। राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने सभी सियासी दलों से पूछा है कि वो क्रिमिनल बैकग्राउंड वाले उम्मीदवार को पार्टी कि टिकट क्यों दी जा रही है? अब उन्हें इसकी वजह बतानी होगी और जानकारी अपनी वेबसाइट पर भी देनी होगी।

43 फीसदी सांसद आपराधिक मामलों में फंसे हैं

क्या इस फैसले के बाद अब भी कोई दल किसी अपराधी को टिकट देने का साहस करेगा? मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, मौजूदा लोकसभा के 542 सांसदों में से 233 यानी 43 फीसदी सांसदों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे लंबित हैं। 159 यानी 29 प्रतिशत सांसदों के खिलाफ हत्या, बलात्कार और अपहरण जैसे गंभीर मामले लंबित है। तो क्या इस तरह के होंगे देश के कानून निर्माता? ये गांधी का देश हैं इसमें इस तरह के नेताओं के आने से सोचिए कि राजनीति का स्तर किस हद तक गिरा है। इसे हमारा दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि आज देश की राजनीति और उस राजनीति में शामिल पार्टियां दागियों से भरी पड़ी है।

सुप्रीम कोर्ट चाहता है क्रिमिनल बैकग्राउंड वाले उम्मीदवार के चुनाव लड़ने पर रोक

सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला स्वागत योग्य है और इसका एक फायदा ये भी होगा कि अगर राजनीतिक पार्टियों ने कोर्ट के निर्देश का पालन नहीं किया तो चुनाव आयोग ऐसे मामलों का संज्ञान लेकर खुद कार्यवाही कर सकता है या फिर ऐसे मामलों को अदालत तक ले जा सकता है। इतना ही नहीं अब सियासी दलों को ये बताना ही होगा कि उन्होंने ऐसे उम्मीदवार क्यों चुनें जिनके खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले लंबित हैं।

ये समझ नहीं आता कि हमारे महान लोकतंत्र की राजनीति में इतने अपराधी तत्वों को क्यों शरण मिलने लगी है। गुजरे कुछ दशकों से राजनीति में अपराधी तत्वों के आने का सिलसिला बढ़ता ही चला जा रहा है। पहले नेताओं के अपराध में लिप्त होने की बातें तो छिप भी जाती थीं या फिर कह सकते है कि ये सूचनाएं आम आदमी तक नहीं पहुंचती थी। लेकिन, अब राजनीतिक पार्टियां और उनके नेता ऐसा चाहकर भी नहीं कर पाते क्योंकि जन प्रतिनिधित्व कानून में कई बार हुए बदलावों के बाद अब स्थितियां ऐसी बन गई हैं कि कम से कम चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति को किसी भी चुनाव का नामांकन भरते वक्त ये खुलासा तो करना ही पड़ता है कि क्या वो किसी तरह के अपराध में लिप्त तो नहीं है?

नामांकन रद्द हो सकता है

अगर कानूनन उसके अपराध चुनाव न लड़ पाने की स्थितियां पैदा करने वाले होते हैं तो ऐसा नामांकन कई बार रद्द भी हो जाता है। राजनीति को तो अब कमाने-खाने का धंधा मान लिया गया है। बहुत से असरदार लोगों को लगता है कि वो राजनीति में आकर अपने काले कारनामें छिपा लेंगे और वो सफेदपोश हो जाएंगे। देखा जाए तो राजनीति में सिर्फ उन्हीं लोगों को आना चाहिए जो समाज सेवा के प्रति गंभीर हों। उन्हें किसी तरह का लालच न हो। अगर इससे इतर सोच वाले लोग राजनीति में आते हैं तो फिर स्थिति बिगड़ती है। दरअसल अब अधिकतर सियासी दलों का एकमात्र लक्ष्य सीट जीतने पर ही रह गया है और इस कारण से सियासी दल अपराधी तत्वों को टिकट देने से परहेज नहीं करते हैं।

ये बेहद गंभीर स्थिति है और इसी मानसिकता के कारण ही राजनीति में आपराधिक छवि के लोग आ रहे हैं। इन्हें राजनीति में मान-सम्मान भी मिलता है। यहां कुछ जिम्मेदारी जनता की भी है उसे भी इन लोगों को वोट देने से पहले सोचना चाहिए। मतदाताओं को आपराधिक बैकग्राउंड वाले उम्मीदवारों को तो किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं करना चाहिए। क्योंकि जनता गुंडे- मवालियों को चुन लेती है तो सियासी दलों को भी लगता है कि उनके फैसले पर जनता ने मोहर लगा दी।

Taranjeet

Taranjeet

A writer, poet, artist, anchor and journalist.