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मोदी सरकार में रोजाना तीन हजार बच्चे मरते हैं और 20 करोड़ लोग खाली पेट सोते हैं

भारत बदल गया है. अब वो इंडिया नहीं रहा बल्कि अब न्यू इंडिया बन गया है. भारत के नागरिक कैसे जीते हैं, कैसे रहते हैं और कैसे खाते हैं, अब तो ये कोई मुद्दा ही नहीं रहा. अब हमारे यहां गौमाता कैसे रहती हैं, क्या खाती हैं…. अब ये मुद्दा बन गया है. मोदी सरकार के न्यू इंडिया में जानवरों की जिंदगी पर लोग वोट करते हैं, इंसान उनके एजेंडे से बाहर हो गया है. इंसानों की जिंदगी यहां तक की लोग भी खुद अपने बच्चों की रक्षा के लिए बेहतर अस्पताल बनाने वाली सरकार को वोट करने की बजाय धर्म और राष्ट्र की रक्षा की बात करने वाली सरकार को ही चुनने में यकीन रखते हैं.

ऐसे में बेचारे राजनैतिक दल करें भी तो क्या करें, वो भी मुद्दा तो वहीं बनाएंगे जिसके आधार पर जनता वोट करती है. पापी वोट का सवाल है भाई ! पर इसके साथ साथ आज हम आपको भारत के एक और स्याह सच से रुबरु करा रहे हैं जिसे जानकर शायद आपको तकलीफ हो सकती है. आपके अंदर की वेदना जाग सकती है. शायद मंदिर, मस्जिद, हिंदू मुसलमान, गाय गोबर और कब्रिस्तान, पाकिस्तान से इतर कुछ सोचने को मजबूर कर सकती है.

हर दिन तीन हजार बच्चे मरते हैं कुपोषण से

संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से भारत पर रिपोर्ट जारी हुई है. रिपोर्ट शर्मसार करने वाली है. न्यू इंडिया की बात कहने वालों के गाल पर करारा तमाचा है. संयुक्त राष्ट्र की ओर से आर्थिक और सामाजिक विषयों पर शोध करती हुई एक रिपोर्ट आई है जिसके अनुसार भारत दुनिया का एक ऐसा देश है जहां हर दिन भोजन और पोषण के अभाव में तीन हजार बच्चे दम तोड़ है. ये सच्चाई है हमारे न्यू इंडिया की, जहां कुपोषण से हर दिन तीन हजार बच्चे तड़प तड़प कर मर जाते हैं. हम फिर भी बात हिंदू मुसलमान की ही करेंगे क्योंकि इन खबरों से हमारे उपर कोई असर नहीं पड़ने वाला है क्योंकि भारतीय नागरिकों के दिमाग में फर्जी राष्ट्रवाद और धर्मांधता का जहर कायदे से डाल दिया गया है.

20 करोड़ लोग सोते हैं भूखे

संयुक्त राष्ट्र संघ की इसी रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में रोजाना 20 करोड़ लोग भूखे सोते हैं. हमारे न्यू इंडिया में बातें तो बहुत बहुत बड़ी है लेकिन हकीकत बयां करती हुई इस रिपोर्ट को कैसे खारिज कर दिया जाए. वहीं हमारे देश में शहरी आबादी में निवास करने वाले 10 करोड़ लोगों को पीने के लिए साफ पानी भी मयस्सर नहीं है. वहीं बात करें ग्रामीण इलाकों की तो यहां की सत्तर फीसदी आबादी अशुद्ध जल पीकर अपना जीवन यापन कर रही है.

संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट का यह मानना है कि भारत में एक बार फिर से गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी आदि बढ़ती जा रही है. इन समस्याओं के बढ़ने से भारतीय अर्थव्यवस्था भी परेशानियों में फंस सकती है. विश्व में भारत की छवि तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था के तौर पर बनी हुई थी, अब शायद ये छवि समाप्त होने की ओर इशारा कर रही है.

जनता को इन सबसे कोई मतलब नहीं

सबसे दुभार्ग्यपूण अवस्था तो यह है कि भारत का कोई भी राजनीतिक दल इन समस्याओं पर न तो चिंतन करने को तैयार है और नहीं चर्चा करने को. सदन में प्रधानमंत्री भी आते हैं तो चटखारेदार बात करके और विपक्ष पर ताना कसके निकल जाते हैं. जनता के बीच भी गरीबी, बेरोजगारी, कुपोषण कोई मुद्दा नहीं है. मुद्दा तो सिर्फ मुसलमान और पाकिस्तान बना हुआ है. ऐसा लगता है कि भारत की जनता ने अपना भविष्य खुद ही तय कर लिया है. कहीं ऐसा तो नहीं कि देश एक अंधेरे रास्ते पर चल पड़ा है.