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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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मध्य एशिया तक कश्मीर के इस पराक्रमी सम्राट की बोलती थी तूती

महान सम्राट ललितादित्य मुक्तपीड जिनके बारे में बहुत ही कम लोगों ने पढ़ा होगा। भारतीय इतिहास में दफन इस गुमनाक नायक की कहानी बहुत प्रेरणा देने वाली है।
Information Anupam Kumari 30 November 2019

भारत का इतिहास स्वर्णिम रहा है। भले ही बाहरी आक्रमणकारियों ने यहां आकर इस देश को लूटा, मगर इसके बावजूद इस देश में ऐसे वीरों और वीरांगनाओं की कमी नहीं रही, जिन्होंने अपनी अंतिम सांस तक मातृभूमि के लिए संघर्ष किया और हंसते-हंसते अपना प्राणों का उत्सर्ग भी कर दिया। इनकी वीरता देखकर तो दुश्मनों की भी आंखें फटी रही गई थीं। यहां हम आपको एक ऐसे में महान सम्राट ललितादित्य मुक्तपीड के बारे में बता रहे हैं, जिनके बारे में बहुत ही कम लोगों ने पढ़ा या सुना होगा। भारतीय इतिहास में दफन इस गुमनाक नायक की कहानी बहुत प्रेरणा देने वाली है।

ललितादित्य मुक्तपीड का परिचय

कार्कोटा वंश से नाता रखने वाले ललितादित्य मुक्तपीड ने 724 से 760 ईस्वी तक शासन किया। नाग की एक प्रजाति कार्कोटा के नाम से जानी जाती है और ललितादित्य मुक्तपीड नागवंशी कर्कोटक क्षत्रिय थे। इनकी वीरता और पराक्रम को देखकर विदेशी आक्रांताओं के तो पसीने छूट गये थे। बाहरी आक्रमणकारियों को इनको कैस्पियन सागर तक खदेड़ देने के लिए याद किया जाता है। इनका खौफ उस वक्त देश के दुश्मनों में इस कदर बैठ गया था कि इनके शासनकाल के दौरान वे हमारे देश की ओर आंख उठाकर भी देखने की गुस्ताखी नहीं कर पा रहे थे।

लहराती रही विजय पताका

ललितादित्य बेहद कुशल शासक के रूप में उभरे। अरब से आने वाले आक्रांताओं के तो उन्होंने दांत ही खट्टे कर दिये। उन्हें ललितादित्य ने हावी होने का एक भी मौका नहीं दिया। यही नहीं, तिब्बती सेनाओं का भी उन्होंने डटकर सामना किया और उन्हें पीछे धकेलने में कामयाब हुए। हर्ष के उत्तराधिकारी पंजाब के राजा के राजा यशोवर्मन को तो उन्होंने नाकों तले चने चबवा दिये। यह इनकी वीरता का ही नतीजा था कि इन्होंने अपने शासनकाल में कश्मीर का विस्तार मध्य एशिया से लेकर बंगाल तक कर दिया था। पराक्रमी तो ललितादित्य थे ही और इसमें कोई शंका भी नहीं होनी चाहिए, मगर इसके साथ उनकी लोकप्रियता भी जनता के सिर चढ़कर बोल रही थी। यही वजह थी कि पंजाब की ओर कूच करते वक्त जनता ने इनके अभिनंदन में पलकें बिछा दी थी। ललितादित्य मुक्तपीड की विजय पताका लहराते हुए बिहार, बंगाल और उड़ीसा तक जा पहुंची। यही नहीं, पश्चिम में भी इनका विजय रथ राजस्थान, गुजरात और मालवा होते हुए महाराष्ट्र तक पहुंच गया था।

अरबों को कुछ ऐसे खदेड़ा

अपनी किताब ‘एशियंट इंडिया’ में इतिहासकार आरसी मजूमदार ने ललितादित्य मुक्तपीड के बारे में लिखा है कि जैसे ही आठवीं शताब्दी की शुरुआत हुई, अरबी आक्रमणकारियों ने अपने नापाक मंसूबों के साथ काबुल घाटी में आक्रमण करना शुरू कर दिया। ऐसे में ललितादित्य ने अब अपना ध्यान कश्मीर की उत्तरी सीमाओं पर लगाना शुरू कर दिया। ये अरबी आक्रमणकारी सिंध के रास्ते उत्तर की ओर बढ़ने के फिराक में थे, मगर कश्मीरियों के साथ बौध्द भिक्षुओं की सहायता लेकर ललितादित्य ने न केवल उन्हें रोक दिया, बल्कि पश्चिम में कैस्पियन सागर तक इन्हें खदेड़ भी दिया। इससे अरबी आक्रमणकारी बेहद भयभीत हो गये थे और वे ललितादित्य के शासनकाल के दौरान दोबारा भारत पर आक्रमण करने का दुस्साहस नहीं कर सके।

सुखी एवं संपन्न राज्य

अपनी पुस्तक ‘कश्मीर’ में इतिहासकार गोपीनाथ श्रीवास्तव ने ललितादित्य मुक्तपीड के शासनकाल की जानकारी देते हुए लिखा है कि लोग इस वक्त बेहद सुखी जीवन व्यतीत कर रहे थे। न केवल खेती करना आसान था और नवीन तकनीकों का इसमें इस्तेमाल हो रहा था, बल्कि एशिया के लगभग सभी देशों के साथ व्यापार भी हो रहा था। जल की समुचित व्यवस्था तो थी ही, साथ ही इसका प्रबंधन भी बेहद कुशलता के साथ किया गया था। विदेशों में ललितादित्य की ओर से कई स्थानों पर विजय स्मृति स्थल भी निर्मित कराये गये थे। ललितादित्य की रुचि केवल युद्ध लड़ने और दुश्मनों को परास्त कर अपने साम्राज्य का विस्तार करने में ही नहीं, बल्कि कला और संस्कृत में भी अच्छी-खासी थी, तभी तो उन्होंने भगवान सूर्य को समर्पित मार्तण्ड मंदिर का निर्माण कश्मीर में करवाया था। यह मंदिर बहुत ही मजबूत है और अपनी सुंदरता के लिए विख्यात है। यही नहीं, ललितादित्य की ओर से कई बौद्ध विहारों भी स्थापित किये गये थे।

दोस्तों, हमारे इतिहास में ऐसे वीर योद्धा भरे पड़े हैं, जिनकी वीरता की दास्तां सुनकर आपको गर्व होगा कि किस तरह से इन्होंने अपनी कुशलता, अपनी वीरता और अपने पराक्रम से दुश्मनों की नींद हराम कर दी थी। यह अलग बात है कि इनमें से कई नायकों को हमारे इतिहास ने भुला दिया। यदि आपको वीर ललितादित्य मुक्तपीड की यह कहानी अच्छी लगी हो और इनकी वजह से आप अपनी संस्कृति पर गर्व करते हों तो इसे बाकी लोगों के साथ भी शेयर करके ऐेसा ही गर्व करने का मौका उन्हें भी जरूर दीजिए।

Anupam Kumari

Anupam Kumari

मेरी कलम ही मेरी पहचान