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Tripura High court Verdict: तुम तो हिन्दू हो , पशु बलि का हक़ सिर्फ मुसलमानों को है

IMAGE DISTRIBUTED FOR HUMANE SOCIETY INTERNATIONAL - Every five years, the world’s largest animal sacrifice takes place at the Gadhimai Temple in Nepal. The month-long festival has raised controversy due to the large number of animals killed – up to 500,000 over two days. This year, Humane Society International (HSI) successfully petitioned India’s Supreme Court to stop animals at the border. In coordination with Animal Welfare Network Nepal, HSI sent a delegation to patrol the site and confiscate any animals brought in illegally. The team also met with Nepal’s president and prime minister to discuss the situation. To date, more than 2,500 animals have been saved. In this photo, a buffalo is brought to be the first sacrifice during the Gadhimai Festival in Bara, Nepal on Friday, November 28, 2014. (Kuni Takahashi/AP Images for Humane Society International)

हमारे देश में कभी कभी कोर्ट के भी अजीब फरमान सामने आते रहते हैं, जो धर्म की आड़ में एक नई राजनीति को पैदा कर जाता है। एक फैसला आता है त्रिपुरा हाई कोर्ट की तरफ से इंडियन हिपोक्रेसी साफ नजर आती है। इस फैसले में मंदिर की प्रथा को बैन कर दिया जाता है। दरअसल ये प्रथा बैन होनी चाहिए भी थी, क्योंकि इसके तहत जानवरों की बलि ली जाती है। तो कोर्ट ने इसे बैन कर दिया, लेकिन इसके साथ ही एक नई बहस को जन्म दे दिया है। त्रिपुरा हाई कोर्ट के फैसले के बाद से हिपोक्रेसी की बू आने लगी है। जहां मंदिरों में पशु बलि बैन की गई है तो कोर्ट ने बकरीद पर लाखों की संख्या में कटने वाले बकरों के बारे में एक शब्द नहीं कहा है। क्या मुसलमान को बलि देने का हक है? पहले जानते हैं कि कोर्ट का क्या फैसला आया है, फिर चर्चा करेंगे नकली सेक्युलरिज्म पर भी।

क्या कहता है त्रिपुरा हाई कोर्ट का फैसला

दरअसल त्रिपुरा हाई काेर्ट ने राज्य के सभी मंदिराें में जानवराें या पक्षियाें की बलि पर राेक लगा दी है। मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायमूर्ति अरिंदम लोध की एक खंडपीठ ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए शुक्रवार को ये आदेश दिया। त्रिपुरा हाई काेर्ट ने कहा कि राज्य सरकार सहित किसी भी व्यक्ति काे किसी भी मंदिर या उसके सपास जानवराें या पक्षियाें की बलि नहीं देने दी जाएगी। हाई कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार किसी धार्मिक प्रथा से जुड़ी आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक या धर्म निरपेक्ष गतिविधि काे ही रेगुलेट कर सकती है। धार्मिक स्थल की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति वाली गतिविधियाें तक ही सरकार की भूमिका सीमित है। माता त्रिपुरेश्वरी मंदिर में राेज एक बकरा देना या अन्य माैकाें पर दूसरे मंदिराें में जानवर देने की इजाजत संविधान नहीं देता है। बलि के लिए जानवर देने का अधिकार धर्म का अभिन्न और आवश्यक हिस्सा नहीं है।

हां हाई कोर्ट की ये बात बिलकुल सही है और इससे इत्तेफाक रखना भी चाहिए की जानवर की बलि देना धर्म का जरूरी अंश नहीं है। लेकिन क्या ये फैसला सिर्फ हिंदू धर्म के लिए ही लागू होता है? क्या इस फैसले से ये माना जा सकता है कि मुसलमान को जानवर की बलि देने का हक है? ये मुद्दा जानवर से जुड़ा है इसमें हिपोक्रेसी क्यों, वो भी कोर्ट के द्वारा? क्या ये नकली सेक्युलरिज्म की आड़ में हम दोहरे मापदंड़ तय करते रहेंगे। इस फैसले के खिलाफ तो कांग्रेस पार्टी ने भी बोला है कि जानवरों की कुर्बानी ईद पर भी बंद हो। अगर हमारे देश में हिंदू को कुर्बानी देने के लिए कोर्ट की बात माननी पड़ेगी तो मुसलमान को जानवर की बलि देने का हक है नहीं।

वैसे भी अल्लाह जानवर की नहीं इंसान से उसकी प्यारी चीज की कुर्बानी मांगता है। नकली सेक्युलरिज्म इतना हावी नहीं होना चाहिए कि वो भेदभाव पर उतर आए। अगर मुसलमान के लिए आस्था जरूरी है मुसलमान को जानवर की बलि देने का हक है तो एक हिंदू मंदिर में जहां पर सालों से प्रथा चली आ रही है वहां पर रोक लगाना भी सही नहीं है। रोक लगे तो फिर हर तरफ लगे एक को रोक कर दुसरे को आजादी देना उचित नहीं है। ईद में बकरे की कुर्बानी पर रोक लगनी चाहिए और मंदिर में पशु की कुर्बानी पर। जानवरों के साथ बर्बरता कर के कोई भी इंसान अपनी आस्था साबित नहीं कर रहा है। त्याग करना है तो किसी बेजुबान जानवर का मत करो अपनी कीमती चीज का करो।

हर रोज कोशिश की जाती है कि हिंदू मुसलमान में एकता बनी रहे, वैसे ही नेता इसे भड़काने का काम करते रहते हैं, लेकिन अब कोर्ट के एक हिपोक्रेसी से भरे फैसले से फिर सोशल मीडिया पर हिंदू मुसलमान एकता खतरे में पड़ गई है। अपने अपने धर्म को ऊंचा बताने की जंग छिड़ गई है। और अब नकली सेक्युलर लोग भी खामोशी तान कर कहीं बैठे हैं क्योंकि न तो वो इसके पक्ष में बोल पा रहे हैं और न खिलाफ में। अपनी बातों से मैं ये नहीं कहना चाहता की मुसलमान गलत है और हिंदू सही है, कोशिश हमेशा यही रहती है कि हिंदू मुसलमान एकता बनी रहे, लेकिन अपनी बात में यही रखना चाहता हूं कि क्यों मुसलमान को जानवर की बलि देने का हक है? बकरीद पर ये फैसला नहीं आता क्योंकि आस्था का मामला है और पशु की बलि पा कर न तो अल्लाह खुश होता होगा और न ही भगवान। तो सभी से यही आग्रह है कि अपनी आस्था, भक्ति, इबादत साबित करने के लिए एक बेजुबान जानवर की बलि मत दें।