शिवसेना और सामना दोनों ही बेहतरीन चीजें हैं, जहां शिवसेना की राजनीति बाकी दलों से बहुत अलग है तो वहीं सामना भी बाकी राजनीतिक दलों के मुखपत्रों से भी अलग है। सामना का एडिटोरियल शिवसेना की पॉलिटिकल लाइन से सीधा जुड़ा होता है। शिवसैनिक भले ही उपद्रव का रास्ता छोड़ चुके हैं, लेकिन सामना के तेवर वैसे ही हैं। मुख्यमंत्री बनने से पहले तक उद्धव ठाकरे ही सामना के संपादक हुआ करते थे, लेकिन बाद में रश्मि ठाकरे को सामना की जिम्मेदारी मिली।
जबकि संजय राउत कार्यकारी संपादक हैं। सामना में आक्रामक संपादकीय की परंपरा बरकरार है। हालांकि अब इसमें दूसरे दलों के नेताओं के भी इंटरव्यू शामिल किए जाते हैं। शुरुआत एनसीपी नेता शरद पवार से हुई थी। माना जा रहा है कि भाजपा के नेता देवेंद्र फडणवीस भी शामिल हो सकते हैं।
इस वक्त सामना चर्चा में हैं क्योंकि उद्धव ठाकरे ने अपनी मन की बात की है। उद्धव ठाकरे ने सामना के जरिये अमित शाह और नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है। उद्धव ठाकरे ने बगैर नाम लिए ही एक बात कही है ‘मैं शांत हूं, संयमी हूं लेकिन इसका मतलब – मैं नामर्द नहीं हूं’! अब सहज तौर पर ये सवाल उठता है कि आखिर उद्धव ठाकरे अचानक मोदी-शाह को अपनी मर्दानगी क्यों दिखाने लगे हैं? कहीं बिहार चुनाव के नतीजों में कोई छिपा मैसज तो नहीं मिला है, या पश्चिम बंगाल में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी के साथ खड़े होने का जंग-ए-ऐलान है?
कंगना और अर्नब का मामला
उद्धव ठाकरे ने जैसे सामना के पिछले इंटरव्यू में मोदी-शाह को अपनी सरकार गिराने के लिए चैलेंज किया था, तो वहीं इस इंटरव्यू में भी वैसी ही बातों पर जोर दिया है, लेकिन कई बातें जवाबी हमले जैसी लगती हैं। पहले और दूसरे इंटरव्यू के बीच में 2 महत्वपूर्ण घटनाएं भी हुई हैं। एक एक्टर कंगना रनौत एपिसोड और दूसरी घटना है टीवी एंकर अर्नब गोस्वामी के खिलाफ मुंबई पुलिस का एक्शन। जिसमें भाजपा और शिवसेना में कड़ी लड़ाई हुई। कंगना रनौत के तू-तड़ाक वाले विस्फोटक वीडियो मैसेज के बाद उद्धव ठाकरे ने संयम की बात की थी।
बिहार चुनाव को लेकर भी शिवसेना ने भाजपा पर हमला किया था, जिसमें उन्होंने बिहार में भाजपा के मुफ्त वैक्सीन देने की बात को उठाया था और कहा था कि क्या बाकी का देश पाकिस्तान या बांग्लादेश है?
एक के बदले 10
उद्धव ठाकरे अपने लेटेस्ट इंटरव्यू में कहते हैं कि महाराष्ट्र ने मरी हुई मां का दूध नहीं पिया है। बाघ की संतान हैं, कोई भी महाराष्ट्र के आड़े आएगा या फिर दबाने की कोशिश करेगा तो क्या होगा, इतिहास में उदाहरण है। आपके पास प्रतिशोध चक्र है, हमारे पास सुदर्शन चक्र है। हम पीछे लगा सकते हैं। उद्धव ठाकरे का ये बयान अर्नब गोस्वामी के खिलाफ मुंबई पुलिस के एक्शन और सुशांत सिंह राजपूत केस की तरफ सहज तौर पर ध्यान खींचता है।
महाराष्ट्र में सीबीआई जांच को लेकर भाजपा और शिवसेना में टकराव रहा है। केंद्र में सत्ताधारी भाजपा ने जब बिहार के रास्ते सुशांत सिंह केस में नीतीश सरकार की सीबीआई जांच की सिफारिश मंजूर कर ली तो उद्धव ठाकरे सरकार के सभी लोगों को बहुत बुरा लगा था। जैसे ही टीआरपी को लेकर यही तरीका यूपी के रास्ते अख्तियार किया गया, महाराष्ट्र सरकार ने सीबीआई जांच के लिए सरकार की मंजूरी जरूरी कर दी।
सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग
केंद्र की मोदी सरकार पर सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए उद्धव ठाकरे कहते हैं कि सीबीआई का दुरुपयोग होने लगे तब ऐसी नकेल लगानी ही पड़ती है। हम नाम देते हैं, हमारे पास नाम हैं, माल-मसाला तैयार है। पूरी तरह से तैयार है लेकिन बदले की भावना रखनी है क्या? फिर जनता हमसे क्या अपेक्षा रखेगी। बदले की भावना से ही काम करना है तो तुम एक बदला लो हम दस लेंगे। संजय राउत के सवालों के जवाब में उद्धव ठाकरे कहते हैं कि मैं उनकी तरफ करुणा भरी नजर से देखता हूं क्योंकि जिन्हें लाश पर रखे मक्खन बेचने की जरूरत पड़ती है, वो राजनीति करने के लायक नहीं हैं।
क्या होंगे और एक्शन?
तो क्या समझा जाये अर्नब गोस्वामी जैसे पुलिस एक्शन और भी होंगे? NCB के एक्शन के बदले मिलते जुलते और भी एक्शन होंगे? क्या अब कंगना रनौत को भी अर्नब गोस्वामी जैसे एक्शन के लिए तैयार रहना चाहिये? अब तक जो राजनीति सुशांत सिंह राजपूत को लेकर चल हो रही थी, क्या अब ठीक वैसी ही राजनीति रिया चक्रवर्ती को लेकर भी शुरू हो सकती है? क्या मान कर चला जाये कि सुशांत सिंह राजपूत तो बिहार चुनाव में मुद्दा नहीं बने, लेकिन रिया चक्रवर्ती अगले साल पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में मुद्दा बन सकती हैं?
बंगाल चुनाव की तरफ है ठाकरे की नजर
क्या उद्धव ठाकरे के ये तेवर पश्चिम बंगाल चुनाव का मौका देख कर और ममता बनर्जी के सपोर्ट में दिखायी दे रहा है और आगे चल कर ये और भी विस्फोटक रूप ले सकता है? बिहार में तो हल्का-फुल्का ही रहा, लेकिन पश्चिम बंगाल में तो साफ साफ दिखायी देता है कि राष्ट्रवाद के साथ भाजपा हिंदुत्व का मुद्दा भी जोर शोर से उठाएगी।
लव जिहाद को लेकर हालिया बेचैनी और भाजपा शासित राज्यों में एक्शन भी यही इशारा कर रहा है। उद्धव ठाकरे का इंटरव्यू भी भला हिंदुत्व पर सवाल जवाब के बिना पूरा कैसे माना जा सकता है। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने लव जिहाद पर शिवसेना के रुख में बदलाव पर हैरानी जतायी है। दरअसल, शिवसेना की तरफ से संजय राउत ने कहा है कि पहले बाकी राज्य सरकारें कानून बनायें, फिर उनका अध्ययन करने के बाद महाराष्ट्र में विचार किया जाएगा।
हिंदूत्व पर पहले जैसे ही है विचार
भाजपा नेतृत्व को निशाना बनाते हुए उद्धव ठाकरे कहते हैं कि वो हिंदू लड़की से मुस्लिम लड़के की शादी का विरोध करते हैं, तो आपने महबूबा मुफ्ती के साथ गठबंधन क्यों किया? नीतीश कुमार, चंद्रबाबू नायडू और ऐसी अलग अलग राजनीतिक विचारधारा वाली पार्टियों के साथ आपने गठबंधन किया है। क्या ये लव जिहाद नहीं है? हिंदुत्व को लेकर शिवसेना के स्टैंड में बदलाव के आरोपों पर भी उद्धव ठाकरे ने खुल कर बोला है।
हिंदुत्व कोई धोती नहीं जो बदल ली जाये, ये हमारे खून और नसों में है। मैं अपने पिता और दादा के हिंदुत्व में यकीन रखता हूं। बाल ठाकरे कहते थे कि मुझे मंदिर में घंटा बजाने वाला हिंदू नहीं चाहिए, मुझे आतंकियों को खदेड़नेवाला हिंदू चाहिये। हिंदुत्व मतलब सिर्फ पूजा-अर्चना करना और घंटा बजाना है क्या? इससे कोरोना नहीं जाता और ये सिद्ध हो गया है।