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मव्वाली तक मन ना भरा भाजपा का अब किसानों को धमकाने पर उतर आई है

Logic Taranjeet 1 August 2021
मव्वाली तक मन ना भरा भाजपा का अब किसानों को धमकाने पर उतर आई है

किसान आंदोलन की मजबूती या फिर भाजपा सरकार की बौखलाहट देखनी है तो एक पोस्टर से साफ दिखती है। किसानों को आतंकवादी, नक्सलवादी, खालिस्तानी और मवाली कहने के बाद सत्तारूढ़ भाजपा सीधे-सीधे ‘देख लेने’ या ‘निपट लेने’ की धमकी देने पर उतर आई है।

जी, हां आप ये कार्टून देखिए। ये भाजपा उत्तर प्रदेश के ऑफिशयल ट्विटर हैंडल पर 29 जुलाई को प्रसारित किया गया और अभी तक बरकरार है। इसे देखकर कोई भी कह सकता है कि ये सीधे-सीधे किसान नेता राकेश टिकैत को धमकी ही है। और ओ भाई जरा संभल के जइयो लखनऊ में के नाम पर साफ कहा जा रहा है कि उन्हें बाल पकड़कर घसीटा जाएगा और बाल पकड़कर घसीटने वाला भी कौन है ये भी कार्टून से स्पष्ट हो ही जाता है।

दरअसल संयुक्त किसान मोर्चा ने ऐलान किया है कि वो अब उत्तर प्रदेश समेत पांच अन्य राज्यों में अगले साल 2022 की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव में सीधा हस्तक्षेप करते हुए भाजपा को हराने का काम करेंगे। जैसा उन्होंने पश्चिम बंगाल के चुनाव में किया था। इसी मुहिम में उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड में अभी 26 जुलाई को किसान नेता राकेश टिकैत और योगेंद्र यादव लखनऊ पहुंचे और दोनों राज्यों में बड़ा आंदोलन शुरू करने की घोषणा की थी। ये आंदोलन 5 सिंतबर को मुजफ्फरनगर में होने वाली महापंचायत के साथ शुरू हो जाएगा। इसी दौरान राकेश टिकैत ने कहा कि अगर सरकार ने किसानों की मांगों को नहीं माना तो दिल्ली की तरह लखनऊ को भी घेरा जाएगा।

पश्चिम बंगाल में चुनाव हारने के बाद से है भाजपा में डर

राकेश टिकैत की इसी टिप्पणी से बौखला कर ही शायद भाजपा ने ये बेतुका कार्टून जारी किया है। दरअसल पश्चिम बंगाल के चुनाव परिणाम के बाद भाजपा में एक डर, एक बौखलाहट तो पैदा हुई ही है। भले ही भाजपा के नेता इससे कितना भी मना करते रहे। हालांकि वो भी जानते हैं कि किसान नेताओं की अपील का असर जब पश्चिम बंगाल के चुनाव में हुआ है, जहां सीधे तौर पर इस आंदोलन का असर यूपी से कम है तो जहां ये आंदोलन सीधे जुड़ा है तो उसका क्या असर होगा। आपको मालूम ही है कि राकेश टिकैत और उनकी भारतीय किसान यूनियन का पश्चिम उत्तर प्रदेश में कितना असर है। और गाजीपुर बॉर्डर पर भी आठ महीने से लगातार यूपी के किसानों का मोर्चा लगा है।

पंचायत चुनाव में असर दिख चुका है

आपने अभी यूपी के पंचायत स्तर के चुनाव में भी इसका असर देखा है। जिला पंचायत सदस्य के चुनावों में भाजपा, सपा से नीचे तीसरे नंबर पर खिसक गई। पहले नंबर पर निर्दलीय और दूसरे पर सपा रही। ये हाल तब है जब भाजपा यूपी की सत्ता में है। आमतौर पर माना जाता है कि जिसकी सत्ता होती है पंचायत चुनाव में उसी का दबदबा रहता है। हालांकि फिर यही बात साबित करने के लिए तमाम छल-बल से भाजपा ने जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में अपना कब्जा बना लिया। यही ब्लॉक प्रमुख चुनाव में दोहराया गया। इस दौरान हिंसा और उत्पीड़न की जैसी तस्वीरें सामने आईं, जैसे वीडियो वायरल हुए, उसने दिल दहला दिया।

आप कह सकते हैं कि राकेश टिकैत का दिल्ली की तर्ज पर लखनऊ को घेरने का बयान भी तो सीधे-सीधे धमकी है। लेकिन नहीं, धरना-प्रदर्शन, घेराव का अधिकार किसी का भी लोकतांत्रिक अधिकार है। ये अधिकार हमें हमारा संविधान देता है और उसकी पुष्टि सुप्रीम कोर्ट ने भी कई फैसलों में की है। और चेतावनी दिल्ली की तरह घेराव की दी गई है। और आप जानते हैं कि दिल्ली की सीमाओं- सिंघु बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों का आंदोलन 8 महीने से चल रहा है, लेकिन इस दौरान न दिल्ली में कोई गतिविधि ठप हुई, न दिल्ली के बाहर से आवागमन बंद हुआ है।

न किसी सामान की सप्लाई बाधित हुई है। आवश्यक सेवाएं ही नहीं अन्य सभी सेवाएं सुचारू ढंग से चल रही हैं। यानी किसानों ने इस बात का पूरा ध्यान रखा है कि किसी के काम में कोई रुकावट न आए। बल्कि उन्होंने तो अन्य लोगों की मदद ही करने की कोशिश की है। कोरोना की पहली लहर में लंगर खिलाने से लेकर दूसरी लहर में ऑक्सीजन के लंगर लगाने तक का काम किया है।

रुकावटें पैदा की प्रशासन ने और जिम्मेदार बनाया किसानों को

अगर बीच-बीच में जो थोड़ी बहुत बाधाएं या रुकावट या शोरगुल की खबरें आईं भी हैं तो वो पुलिस-प्रशासन की सख्ती या फिर भाजपाईयों की कारस्तानियों की वजह से हैं। ये भी सच है कि जब इतना बड़ा और इतना लंबा जनांदोलन चलता है तो थोड़ी-बहुत दिक्कत तो उठानी भी पड़ जाती है। यहां हमें किसान की दिक्कत का भी सोचना चाहिए जो आठ महीने से कभी सर्दी, कभी गर्मी और अब बरसातों की मार झेल रहा है।

इस दौरान न जाने कितने किसान मर गए। किस वजह से कि सरकार ने किसानों से बिना विचार-विमर्श किए जो तीन कृषि कानून बना दिए, उन्हें रद्द कर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी दी जाए। ताकि खेती-किसानी कॉरपोरेट के चंगुल में न फंस जाए और भारत का किसान अपनी जमीन पर ही बंधुआ मजदूर न बन जाए। साथ ही आम उपभोक्ता की थाली से भी रोटी गायब न हो जाए। टिकैत कहते भी हैं कि हमारा आंदोलन इस बात को लेकर है ताकि रोटी तिजोरी में बंद न हो।

कुल मिलाकर ये पूछा ही जाना चाहिए कि क्या एक सरकार या सरकार चला रहे दल को इस तरह की भाषा बोलने, ऐसे हिंसक कार्टून बनवाने और उसे जारी करने की इजाजत होनी चाहिए। देश के अन्नदाताओं को मवाली कहने वालों को एक बार फिर सोचने की जरूरत है कि वो जनता को क्या संदेश देना चाहते हैं।

Taranjeet

Taranjeet

A writer, poet, artist, anchor and journalist.