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अर्नब के जेल जाने पर रोने वाले उत्तर प्रदेश में क्यों खामोश है?

लोकतंत्र स्थिति को देखकर खतरे में आ जाता है, साथ ही वो हमेशा पीड़ित की हैसियत भी देखता है। जैसे किसी एक पक्ष वालों के लिए आज लोकतंत्र खतरे में हैं तो दूसरे पक्ष वालों के लिए कल था। बस सबका अपना एजेंडा है और उस एजेंडा को जब नुकसान पहुंचता है तो लोकतंत्र खतरे में आ जाता है। ये सालों से ऐसी कहावत है जिसका इस्तेमाल राजनीतिक दल समय समय पर करते रहते हैं और जनता को निराश करते हैं। आपको लोकतंत्र राज्यों, सरकारों, नेताओं, और अब तो पत्रकारों के हिसाब से भी खतरे में नजर आ सकता है।

महाराष्ट्र और यूपी का पत्रकार अलग क्यों?

आजकल महाराष्ट्र में लोकतंत्र खतरे में हैं, लेकिन यूपी में सब सही है। महाराष्ट्र में अर्णब गोस्वामी को जेल में डाला गया तो वहां पर लोकतंत्र खतरे में आ गया और हर तरफ भारतीय जनता पार्टी ने मोर्चा खोल दिया और प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश में जब भाजपा नेता के बेटे ने एक पत्रकार के हाथ-पैर तोड़ दिए तो लोकतंत्र के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। यहां पर भाजपा को और राष्ट्रवादी पत्रकारों को ऐसा कुछ महसूस नहीं हुआ। क्योंकि यहां पर पत्रकार ने भाजपा के नेता के खिलाफ खबर लिखी थी। तो कैसे भाजपा कह सकती है कि आपातकाल है यूपी में और मुख्यमंत्री भी तो बहादुर खेमे वाला है।

त्रिपुरा में लोकतंत्र कमजोर नहीं हुआ

वहीं अगर बात करें एक और भाजपा शासित राज्य की तो त्रिपुरा में हाल ज्यादा ही गजब है। वहां पर तो एक अखबार ने घोटाले की खबर छापी तो उस अखबार की 6000 प्रतियां ही जब्त कर ली जिसके बाद उन सभी को जला दिया गया। आरोप लगाया गया कि राज्य के कृषि विभाग में 150 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ है और प्रतिबादी कलम नाम के एक अखबार ने पिछले तीन दिनों से इस रिपोर्ट को सीरीज में छापा था। वहीं सुबह बंटने जा रहीं अखबार की करीब 6,000 प्रतियां छीनकर जला दी गईं और अखबार को बंटने से पहले ही फूंक दिया गया, लेकिन तब भी लोकतंत्र खतरे में नहीं आया।

लोकतंत्र पर खतरा सिर्फ तभी पहचाना जाता है जब कोई ताकतवर आदमी जो सत्ता वालों का पक्ष लेता है वो फंस जाता है। नेता जी खुद फंस जाते हैं तब भी कहते हैं कि लोकतंत्र पर खतरा है और आजकल तो कई लोग खुद को देश बताते भी घूम रहे हैं। लोकतंत्र पर असली संकट तभी है जब किसी नेता पर संकट हो, पार्टी पर संकट हो, एजेंडे पर संकट हो या पार्टी को अघोषित प्रवक्ताओं पर संकट हो। वरना तो हाथरस में पत्रकारों के साथ जो हुआ वो सबके सामने हैं, पत्रकारों को पकड़ कर जेल में डाल दिया गया, गांव को बंद कर दिया गया और तब भी लोकतंत्र को कोई खतरा नहीं हुआ।

पत्रकारों पर मुकदमे करने पर लोकतंत्र मजबूत है?

खराब मिड डे मील पर रिपोर्ट करने वाले पत्रकार पर मुकदमा कर दिया, लेकिन लोकतंत्र मजबूत था। पत्रकारों पर बेहिसाब देशद्रोह कानून लगा दिया जाता है, लेकिन लोकतंत्र मजबूत है। जो सरकार के खिलाफ आवाज उठा रहा है वो मार दिया जा रहा है या जेल में डाल दिया जा रहा है। लेकिन लोकतंत्र मजबूत है। हां अगर सरकार के अघोषित प्रवक्ताओं को कुछ कहा तो लोकतंत्र खतरे में आ जाएगा। मशालें जल जाएंगी। पूरा दिन उस इंसान के लिए रोना रोया जाएगा। केंद्रीय मंत्री तक प्रेस वार्ता करने बैठ जाएंगे।