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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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उत्तर प्रदेश का मुसलमान Voter किस पर मेहरबान, एक अनार सौ बीमार वाला हाल

उत्तर प्रदेश का मुसलमान Voter किस पर मेहरबान, एक अनार सौ बीमार वाला हाल

राजनीति में रूचि रखने वाले हर इंसान को इंतजार है तो UP Election 2022 के आने का, क्योंकि उस साल होने हैं देश के सबसे बड़े सियासी राज्य में विधानसभा चुनाव। अभी तो इस चुनाव में लगभग 9-10 महीनों का वक्त बाकी है, लेकिन राजनीतिक दलों को पता है कि ये चुनाव कितने बड़े है, तो मेहनत भी अभी से शुरु कर दी है। जैसा कि सभी को पता है कि यूपी इलेक्शन पूरी तरह से जाति और धर्म की राजनीति से ओतप्रोत है। उत्तर प्रदेश का मुसलमान वोटर उनका प्राथमिक अजेंडा है जिसको आकर्षित करने के लिए सभी राजनितिक पार्टियां अपना दम -ख़म लगा रही हैं।

खासकर देश की सबसे बड़ी चुनावी पार्टी भारतीय जनता पार्टी ने। योगी आदित्यनाथ दिल्ली में आकर शाह-मोदी से मिलते हैं। इससे पहले संघ और भाजपा के नेता सूबे के नेताओं के बात करते हैं। और कांग्रेस के एक कद्दावर नेता जितिन प्रसाद की भाजपा में एंट्री हो जाती है।

उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुसलमानों की चर्चा

जहां एक तरफ ये सब चल रहा है, तो वहीं सभी को अपने वोट बैंक मजबूत करने की याद तो जरूर आई होगी। जहां एक तरफ भाजपा ब्राहम्ण वोट पर अपने पेटेंट मानती है तो उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुसलमानों की चर्चा ना होना तो बेईमानी होती है। उत्तर प्रदेश का मुसलमान वोटर किसे वोट देगा ये सवाल अभी से उठने लगा है, क्योंकि एक अनार सौ बीमार वाला हाल जो यहां पर हो रहा है। ओवैसी, कांग्रेस, सपा, बसपा सभी दल फिर से मुसलमान वोटर पर डोरे डालने के लिए तैयार है।

क्या है UP Election 2022 को लेकर Congress Party की तैयारी

ये तो काफी दिनों से देखने को मिल रहा है कि प्रियंका गांधी वाड्रा मुस्लिम वोटों के लिए काफी मेहनत कर रही है। सीएए के दौरान हुए विरोध प्रदर्शनों में वो पुलिस के एक्शन का शिकार हुए लोगों को सहानुभूति देने के लिए भी पहुंची थी। इतना ही नहीं वो गोरखपुर अस्पताल वाले डॉक्टर कफील खान से लेकर माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के मामले तक में भाजपा को कठघरे में खड़ा करती रही है। आने वाले चुनाव में तो ये नजारा और भी नए रूप में दिख सकता है। विधानसभा चुनावों में अभी 8-9 महीनों का वक्त बाकी है, लेकिन कांग्रेस की तरफ से मुस्लिम उलेमाओं के साथ बैठक और उनके सम्मेलन पर काफी जोर दिया जाना शुरु हो गया है।

क्या प्रियंका गांधी वाड्रा का भरपूर जोर काम आएगा यूपी में मुस्लिम वोटों को खींचने में ?

सलमान खुर्शीद और नसीमुद्दीन सिद्दीकी जैसे नेताओं की मदद से कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा यूपी में मुस्लिम वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के लिए पूरा जोर लगा रही हैं, भले ही ये अखिलेश यादव और मायावती के साथ किसी चुनावी समझौते के मकसद से भी किया जा रहा हो।

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UP Election 2017 और Loksabha Election 2019 के मायावती के असफल प्रयोग किस ओर जाएंगे?

मुस्लिम वोट हासिल करने के इरादे से मायावती अब तक 2 बार पूरी ताकत झोंक चुकी हैं। साल 2017 के चुनाव में पश्चिम यूपी में तब बसपा में रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी और पूर्वी उत्तर प्रदेश में अंसारी भाइयों की मदद से मायावती ने दलित-मुस्लिम गठजोड़ खड़ा करने की पूरी कोशिश की थी। और वहीं साल 2019 के आम चुनावों में भी अखिलेश यादव के साथ गठबंधन कर प्रधानमंत्री बनने का उनका सपना उनकी आंखों के ही सामने खत्म हो गया ता। क्योंकि तब भी उनके UP के दलित मुस्लिम गठजोड़ की हवा निकल गई थी।

अखिलेश यादव भी रेस में काफी आगे है

सारी कवायद एक तरफ और समाजवादी पार्टी की तैयारी एक तरफ रख दी जाए। यूपी के पंचायत चुनाव के नतीजों ने काफी हद तक तस्वीर भी साफ कर दी है।

समाजवादी पार्टी ने वैसे तो पूरे प्रदेश में अच्छे प्रदर्शन का दावा किया है, लेकिन ज्यादा महत्वपूर्ण अयोध्या, काशी और मथुरा से आए नतीजे हैं, वो इसलिए क्योंकि इन क्षेत्रों में भाजपा का बोल बाला ज्यादा होना चाहिए था, लेकिन अखिलेश यादव ने इन इलाकों में पूरी महफिल लूट ली।

जैसा भाजपा के नेतृत्व का रवैया रहता है तो मान सकते हैं कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में दिल्ली की ही तरह भड़काऊ और जहरीले बयान सुनने को मिल सकते हैं। सीएए के विरोध में जब शाहीन बाग धरने से जोड़ते हुए भाजपा नेताओं ने अरविंद केजरीवाल पर जोरदार हमला बोल दिया तो आम आदमी पार्टी के नेता ने साफ तौर पर बोल दिया था कि अगर दिल्लीवासी उनको आतंकवादी मानते हैं तो वोटिंग के दिन वो भाजपा के नाम का ईवीएम बटन दबा दें। इसके बाद भाजपा की सारी कवायद की हवा निकल गई।

निश्चित रूप से साल 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा की कोशिश मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण को रोकने की होगी और एक बार फिर किसी नए अंदाज में सही श्मशान और कब्रिस्तान जैसी बहस देखने को मिल सकती है।

लेकिन इन सबके बीच में सरकारों को अपने मुख्य काम पर ध्यान केंद्रित करने की भी उतनी ही जरूरत है। इस वक्त वो मुख्य काम कोरोना वायरस से लड़ने का है। एक बार पहले भी हम कोरोना वायरस को दरकिनार कर चुनाव कराने की भूल कर चुके हैं और नतीजा बहुत खराब निकला था।

Taranjeet

Taranjeet

A writer, poet, artist, anchor and journalist.