नई दिल्ली: 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद हर तरफ बीजेपी का डंका बजा है| चुनाव कोई भी हो उसमें बीजेपी जीती है या फिर हारी तो उतने शर्मनाक तरीके से नहीं| हर चुनाव में स्थिति बेहतर रही लेकिन एक ही चुनाव है जो बीजेपी के लिए महज सपना बना हुआ है| वो है “यूपी के उपचुनाव” जिसमे जीतना बीजेपी के लिए अभी तक एक सपना है| गोरखपुर और फूलपुर हारने के बाद लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने यूपी जीत लिया लेकिन अब एक बार फिर से यूपी में उपचुनाव होने हैं| ऐसे में योगी ने हारने का रिकॉर्ड तोड़ने के लिए आरक्षण का दांव चला| वो दाँव था कि यूपी उपचुनाव से पहले 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जातियों का दर्जा देना था लेकिन योगी के इस फैसले के सामने बीजेपी ही आ गई जिससे उनका सपना टूट गया है|
हमारे देश में कोई भी चुनाव हो उसमे जातिगत समीकरण काम करता है इस बात को बिलकुल भी नहीं नकारा जा सकता है| और यूपी में तो शत-प्रतिशत इसपर ही चुनाव होते हैं| ऐसे में यूपी में आने वाले उपचुनावों को देखते हुए योगी सरकार ने आरक्षण का सहारा लिया| बसपा के खाते से दलित वोट हथियाने के लिए योगी ने फैसला लिया कि यूपी की 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल किया जाएगा| लेकिन योगी के इस फैसले के सामने खड़े हो गए राज्यसभा सांसद थावरचंद गहलोत| वही थावरचंद गहलोत जो इस समय पार्टी में सबसे बड़ा दलित चेहरा है| जिन्हें दिखाकर बीजेपी दलितों के वोट हासिल करना चाहती है|
योगी के फैसले को साफ़ तौर पर गलत करार देते हुए गहलोत ने राज्यसभा में मुद्दा उठाया| उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह से गलत है| सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री गहलोत ने इस आदेश को ‘असंवैधानिक’ बताते हुए उन्होंने कहा कि, अनुसूचित जाति की लिस्ट में किसी प्रकार का परिवर्तन करने का अधिकार केवल संसद को है, किसी भी प्रदेश सरकार को नहीं| मज़े की बात है कि इस आदेश के विरोध में सबसे पहले मायावती ने आवाज़ उठाई| और राज्यसभा में उनकी बात को क़ानूनी रूप देने के लिये खड़े हुए उनकी बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा| मिश्रा ने ये दलील भी दी कि संविधान में राष्ट्रपति तक को ये अधिकार नहीं है कि अनुसूचित जाति की लिस्ट में किसी प्रकार के छेड़छाड़ कर सकें| ऐसे में योगी सरकार को मुंह की खानी पड़ी वो भी अपनी पार्टी के सबसे बड़े दलित नेता से| अब योगी सरकार के पास केवल एक ही विल्कप है कि वो संसद को ये प्रस्ताव भेजें और केंद्र के सहारे यूपी में इसे लागू करवाएं|
यूपी सीएम ऐसा उपचुनावों के लिए ही करना चाहते हैं लेकिन और भी वजहें इसके पीछे है| सबसे बड़ी वजह है साल 2022 में होने वाले यूपी चुनाव| अभी तक यूपी में कोई भी चुनाव योगी के दमपर बीजेपी नहीं जीती है| ऐसे में खुद को कट्टर हिन्दू वाली इमेज को हटाकर योगी विकास पुरुष और सबका विकास वाली इमेज लेना चाहते हैं| वो चाहते हैं कि आगामी यूपी चुनाव सिर्फ और सिर्फ उनके चेहरे के नाम पर लड़ा जाए| ऐसे में सबसे पहले दलितों को बस में लेना जरूरी है क्योकि मायावती का ये सबसे बड़ा वोट बैंक है| इसके अलावा योगी दलितों को ये जताना चाहते हैं कि वो उनके बारे में सोचते हैं और वो यूपी में आरक्षण की गुंजाइश को बढ़ा रहे हैं| लेकिन ऐसा नहीं हो सका तो अब योगी को केंद्र के जरिये ही इसे लाना होगा| क्योकि उपचुनाव और उसके बाद यूपी चुनाव जीतना बीजेपी के लिए सबसे बड़ा टास्क है जिसे पूरा करने में योगी सभी से लग गए हैं|