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पावन धाम वाराणसी के वो ८८ घाट जिनसे जुड़े है कई अनजान रहस्य

वाराणसी शहर उत्तर प्रदेश के गंगा घाट के किनारे बसा हुआ शहर है। वाराणसी का नाम करण यहाँ पर स्थित दो नदियों के नाम से हुआ है जिनमे एक है वरुणा और दूसरी असी नदी है। वाराणसी बनारस और काशी के नाम से भी पहचाना जाता है। वाराणसी को हिन्दू धर्म में सर्वाधिक मान्यता दी गई है। वाराणसी दुनिया के प्राचीनतम शारो में से एक शहर है।

वाराणसी में कुल ८८ घाट है। वाराणसी के कई सारे घाट ऐसे है जिनका पुनर्निर्माण ईस्वी १७७० के पश्चात् हुआ था। ईस्वी १७७० में ऐसा माना जाता है की तब वाराणसी शहर का शासन काल मराठा साम्राज्य के हाथ में था। यहाँ आज भी कई घाट ऐसे है जो मराठा,पेशवा,होलकर और भोसले आदि  के संरक्षण में है। यहाँ के अधिकांशतः घाट ऐसे जो पौराणिक कथा से जुड़े हुए है। यह के कुछ घाट निजी स्वामित्व वाले है।
                 

आइये अब हम इन घाटों का रहस्य जानते है

 अस्सी घाट :  

अस्सी घाट गंगा नदी के दक्षिण में स्तिथ घाट है। इस घाट पे भगवान शिव की शिव लिंग की पूजा होती है।यहाँ आये हुए श्रद्धालु भगवान की पूजा के पहले घाट पे स्न्नान करते है। ऐसा कहा जाता है कि सुप्रसिद्ध कवि श्री तुलसीदासजी ने रामचरित मानस की रचना की थी।यह घाट काफी प्रसिद्ध है।

गंगा महल घाट :

बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में राजा प्रभुनारायण सिंह के शासन काल में एक बड़ा ही विशाल भवन बनवाया गया । जिसका नाम गंगा महल था और उसी भवन के नाम से इस घाट का भी गंगा घाट पड़ा। यह प्राम्भा में अस्सी घाट का एक भाग था जो आज अलग होकर गंगा महल घाट के नाम से जाना जाता है।

 रीवा घाट :

दरअसल इस घाट को पहले लालमिसिर घाट के नाम से जाना जाता था। क्योंकि पंजाब के राजा रणजीत सिंह के पुरोहित लालमिसिर ने यह एक विशाल भवन बनवाया था। जिससे इस घाट का नाम लालमिसिर घाट पड़ा लेकिन ईस्वी १८७६ में महाराज रीवा ने इस महल को खरीद लिया जिससे इस घाट का नाम रीवा घाट पड़ा। ऐसा माना जाता है। यह घाट भी अस्सी घाट का ही एक हिस्सा है।

तुलसी घाट :

 तुलसी घाट को लोलार्क घाट के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह उसका पुराण नाम है। इस घाट पे भगवान सूर्य का मंदिर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि स्त्रियों संतान प्राप्ति के लिए इस घाट में डुबकी लगाती है। १६वीं शताब्दी में  इस घाट का नाम बदलकर तुलसी 1घाट कर दिया गया जो की संत श्री तुलसी दास जी के नाम से लिया गया था।

  भदैनी घाट :

यह घाट ज्यादा प्रख्यात नहीं है ,क्योंकि यहाँ स्नान के लिए कोई विशेष सुविधा नहीं है। एक मुहल्ले के नाम भदैनी से घाट का नाम  भदैनी पड़ा था। इस घाट पे सांस्कृतिक और धार्मिक कार्य बोहोत कम होते है। इस घाट का पानी नगरजनो के उपयोग में आता है।  

वच्छराज घाट :

ईस्वी १८०० में काशी के बड़े व्यापारी श्री वच्छराज ने इस घाट का निर्माण करवाया था। इस घटा में गंगा मंदिर ,शिव मंदिर,जैन मंदिर और गोपाल मंदिर आदि स्थित है। इस घाट पे जैन समुदाय के धार्मिक काम अधिक होते है। उनके द्वारा इस घाट को काफी मान्यता दी जाती है।

  ललिता घाट :

इस घाट का निर्माण १९वीं शताब्दी में हुआ था। इसे राणा बहादुर शाह नामक नेपाली राजा ने अपने शासन काल में बनवाया था। इस घाट का नाम देवी ललिता के नाम पर रखा गया है। ऐसा माना जाता है कि ललिता देवी दशा-महाविधा नामक दस देवी-देवताओं के एक समूह में से एक है।इस घाट पे ललिता देवी का मंदिर है। और हाँ यह पर एक सुप्रसिद्ध नेपाली मंदिर भी है।

  जानकी घाट :

यह घाट किसी अशर्फी सिंह ने इस घाट का निर्माण करवाया था।परन्तु उन्होंने इस पक्का नहीं बनवाया था। इसे बिहार के सुरों की महारानी कुंवर ने पक्का करवाया था। इसका पुनर्निर्माण ईस्वी १८७० में हुआ था। ऐसा कहा जाता है की सुरसंड के लोग देवी सीता बोहोत पूजते थे। यहाँ की महारानी भी सीता(जानकी) की भक्त थी। इसलिए इस घाट को जानकी घाट नाम दिया गय।

 माता आनंदमयी घाट :

इस घाट को आन्नदमयी नामक किसी देवी अंग्रेजों के खरीद किया और इसका पुनः निर्माण करवाया तबसे इस घाट का नाम आनंदमयी घाट रखा गया था। इस घाट का पुनः निर्माण ईस्वी १९४४ में हुआ था। इस घाट पर माता आन्नदमयी नामक एक आश्रम भी है। जहा कुंवारी कन्याओ को मुफ्त में शिक्षा दी जाती है। इस घाट का पानी एकदम स्वच्छ है।

जैन घाट :

जैन घाट का पक्का निर्माण जैन समुदाय के लोगो ने ईस्वी १९३१ करवाया था। ऐसा माना जाता है कि यहाँ केवल जैन समुदाय के लोग ही स्न्नान कर सकते है। इस घाट पे दिगम्बर भगवान का भव्य मंदिर है। सामान्यतः यहाँ केवल जैन समाज के लोग दिखाई देते है। लेकिन यह पर्यटक आ सकते है।

पंचकोटा घाट :

इस घाट का निर्माण बंगाल (पंचकोट ) के राजा द्वारा किया गया था। इससे इसे पंचकोटा के नाम से जाना जाता है। घाट से थोड़ी दुरी पर राजा द्वारा बनवाया गया महल और बैग बगीचे है। भले घाट पक्का है। और धार्मिक है परन्तु इस घाट को उतनी मान्य नहि दी गई है। इससे इस घाट पैर जल्दी कोई धार्मिक क्रिया नहीं होती है। आस-पास के बच्चे यहाँ खेलने आया करते है।

प्रभु घाट :

इस घाट का निर्माण २०वीं शताब्दी के राजा निर्मल कुमार के नियंत्रण में हुआ था। दूसरे घटो की भांति इस घाट का भी पुनः निर्माण हुआ ह। यह घाट भी किसी धार्मिक या सांस्कृतिक कार्यो में उपयोग में नहीं आता है।यहाँ के धोबी इस घाट पे अक्सर कपड़े धोया करते है। इस घाट पे पवित्र स्नान नहीं होता है।

निसादराज घाट  :

इस घाट का निर्माण निसाद जाती के लोगो ने किया था। यह घाट पहले पूर्व घाट का एक हिस्सा था।इस घाट पर केवल एक ही शिव मंदिर है उसके अलावा यहाँ कोई दूसरे मंदिर का निर्माण नहीं हुआ है।घाट के आस-पास मुस्लिम संप्रदाय के लोग निवास करते है। और वही लोग इस घाट पर स्न्नान आदि करते है।

चेत सिंह घाट :

इस घाट का निर्माण कार्य कशी के पूर्व राजा बलवंत सिंह ने करवाया था। यह घाट पहले शिवाला घाट का ही एक हिस्सा था। इसका नाम कारण महाराजा प्रभु नारायण के पूर्वज चेत सिंह के नाम पर किया गया था। ईस्वी १७८१ में वारेन होस्टिंग और राजा चेत सिंह के बीच प्रसिद्ध युद्ध उसी घाट के किले में हुआ था। जिस युद्ध में राजा की हार हुई और अंग्रेजों  उस किले पे कब्ज़ा कर लिया था। १९वीं शताब्दी में राजा प्रभु नारायण जी इस किले और घाट का पुनर्निर्माण करवाया था। और उस घाट को नागा बाबाओ के हवाले कर दिया था।  

शिवाला घाट :

इस घाट का निर्माण भी राजा बलवंत सिंह के द्वारा हुआ था। यह घाट पहले काफी बड़ा था इसे कई खंडो में बाँटा गया था। इस घाट पे कशी के राजा के द्वारा  भगवान ब्रह्महेन्द्र मठ बनवाया गया जो दक्षिण भारतीय तीर्थ यात्रियों के निवास स्थान का प्रबंध किया गया है। इस घाट पे ” बुढ़वा मंगल ” नामक बोहोत ही प्रख्यात मेला लगता है जिसको देखने के लिए देश-विदेश के लोग बोहोत दूर-दूर से आते है।

निरंजनी घाट :काशी

इस घाट पे नागा साधुओ का प्रसिद्ध अखाडा है।  के राजा ने ईस्वी १८९७ में इस अखाड़े का निर्माण करवा के उसे नागा साधुओ को दान में दे दिया था। ईस्वी १९५८ में इस घटा का पुनर्निमाण हुआ था। देखने में यह घाट बोहोत ही स्वच्छ एवं सुंदर है। इस घाट पे किसी भी प्रकार का धार्मिक कार्य नहीं किया जाता है।

कर्नाटक घाट :

यह घाट २०वीं शताब्दी के पहले हनुमान घाट का ही भाग था। इसका मैसूर राज्य के लोगो के योगदान से हुआ था। इसलिए इसको मैसूर घाट के नाम से जाना जाता है।लेकिन आज इसे कर्नाटक घाट के नाम से जाना जाता है। यहाँ मैसूर राज्य के लोगो द्वारा बनवाया गया है और यहाँ एक शिव मंदिर भी है। यहाँ स्न्नानार्थियो की संख्या अधिक मात्रा में पायी जाती है।

दंड्डी घाट :

बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में वाराणसी के व्यवसायी लल्लू जी अग्रवाल ने इस घाट की रचना करवाई थी। इस घाट पे दंड्डी स्वामियों का मठ है जिससे इस घाट का नाम दंड्डी घाट रखा गया था। इस घाट का सर्व प्रथम उल्लेख ईस्वी १८६८  में शेरिंग ने किया था। यह का जल स्थानीय लोगो के स्न्नान आदि के उपयोग में आता है।

महानिर्वाणी घाट :

इस घाट का नाम यहाँ स्थित नागा के साधुओ के प्रसिद्ध अखाड़े महानिर्वाणी के नाम पैर पड़ा था। इस अखाड़े की स्थापना बीसवीं शताब्दी में हुई थी। इससे पहले यह चेत सिंह के किले का एक हिस्सा था। ऐसा माना जाता है कि सांख्य दर्शन के प्रसिद्ध आचार्य श्री कपिल  मुनि यहाँ रहा करते थे।  

गुल्लारीआ घाट :

इस का घाट का निर्माण भी वाराणसी व्यवसायी लल्लू जी अग्रवाल ने किया था ,इस घाट के पास ही एक विशाल गुल्लर का वृक्ष है जिससे इस घाट का नाम गुलरिया घाट पड़ा। हालाँकि इस घाट को किसी भी प्रकार का धार्मिक महत्व नहीं दिया गया है। ऐसा कहा जाता है कि यह घाट दंड्डी घाट का एक अंग था।

 हनुमान घाट :

इस घाट की स्थापना गोस्वामी तुलसी दास जी नई करवाई थी। इस घाट पे हनुमान जी एक विशाल मंदिर है। जिससे इस है का नाम हनुमान घाट पड़ा है। इस घाट को पहले रामेश्वर घाट के नाम से जाना जाता था। जो आज बदलकर हनुमान घाट रखा गया है। यह नागा साधुओ का काफी बड़ा अखाडा है। इस उल्लेख सर्व प्रथम १८३१ में जेम्स प्रिंसेप ने किया था। ऐसा कहा जाता है कि रामेश्वर शिव को द्वादस ज्योतिर्लिंगो मे पूजा जाता है।

 वाराही घाट :

इस घटा का निर्माण १८ वीं शताब्दी में हुआ था यहाँ पे वाराही माता का प्रसिद्ध मंदिर होने के कारण इस घाट को वाराही घाट कहा जाता है। ऐसा कहा जाता हैकि इस घाट पे स्न्नान के बाद वाराही माता के मंदिर के दर्शन के लिए जाए तो उसकी साडी विपत्ति यों का नाश होता है। यह घाट पहले त्रिपुरभैरवी के नाम से जाना जाता था और यह घाट तब कच्चा था जिससे इसके पुनर्निर्माण के बाद इसे वाराही घाट के नाम से जाना जाता है।  

 हरिश्चंद्र घाट :

सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र ने सत्य की रक्षा के लिए  इस स्मशान घाट पे खुद को बेच दिया था। यह घाट दोनों स्मशान घाटो में से एक है। १५-१६ वीं शताब्दी में यह सती के शव का प्रमाण यह दर्शाया गया है। तब भी यहाँ स्मशान घाट थे। ऐसा खा जाता है इस घाटी पे ३ शिव मंदिर है।

 लाली घाट :

इस घाट का पुनर्निर्माण राजा विजयनगरम द्वारा हुआ था। इस घाट को लल्ली घाट के नाम से भी जान जाता है। बिहार के प्रसिद्ध संत श्री लाली बाबा यही रहा करते थे। जिसके कारण इसका नाम लाली घाट पड़ा था। यह घाट हरिश्चंद्र घाट के पास है जिसके कारण शिव यात्री यहाँ स्न्नान आदि करने आते है।

केदार घाट :

दार घाट का नाम केदारेश्वर महादेव के सुप्रसिद्ध मंदिर के नाम से पड़ा है। केदारेश्वर महादेव की पूजा द्वादस ज्योतिर्लिंगों में की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि यह पूजा पाठ करने से मानो केदारनाथ के दर्शन पूजन का फल मिलता है। केदारेश्वर शिव को विश्वनाथ के अग्रज माना जाता है।  

चौकी घाट :

इस घाट का नाम किसी राजा महाराजा के नाम से किंतु घाट पर आयी हुई चौमुखी गली के नाम से पड़ा है। जिसका एक मार्ग केदाररेश्वर दूसरा मानसरोवर तीसरा मार्ग सोनपुर और चौथा मार्ग घाटी पे जाता है। इस घाट का निर्माण १९वीं शताब्दी में कुमार स्वामी मठ के स्वामित्व में हुई थीं।

 विजयनगरम घाट :

इस घाट की स्थापना राजा विजयानगरम के शासन काल में बनवाया गया था। इस कारण इस घाट को विजयानगरम घाट खा जाता है। २०वीं शताब्दी में राजा ने इस घाट को और भवन को कशी के संत श्री करपात्री जी दान में दे दिया था। और इस भवन में वे निवास करने लगे। इससे वर्तमान में इस भवन को करपात्री आश्रम के नाम से जान जाता है।

नारद घाट :

इस घाट का पुराण नाम कवाई घाट था जिसका उल्लेख जेम्स प्रिंसेप ने ईस्वी १८३१ में किया था। ऐसा कहा जाता है कि १९वीं शताब्दी के मध्य में इस घाट पे नारदेश्वर शिव के मंदिर का निर्माण हुआ था जिससे इस घाट का नाम बदलकर नारद घाट रखा गया। ऐसा माना जाता है की यहाँ शिव की स्थापना स्वयं देवर्षि नारद ने की थी। इस घाट का पुनर्निमाण ईस्वी १९६५ में हुआ था।

 क्षेमेश्वर घाट :

ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव की भक्त क्षेमक ने इस घाट पर क्षेमकेश्वर मंदिर की स्थापना की थी। ऐसा कहा जाता है कि क्षेमक एक राक्षस था। १९वीं शताब्दी में इस घाट का पुनर्निर्माण हुआ था। इस घटा को कोई किसी भी प्रकार की धार्मिक वृत्तियों में जोड़ा गया है।  ऐसा कहा जाता है कि सिर्फ गौड जाती के लोग ही क्षेमेश्वर जी की पूजा अर्चना करते है।

 मानसरोवर घाट :

मानसरोवर घाट का उल्लेख १७वीं शताब्दी में हुआ था। इस घटा का निर्माण राजस्थान के राजा मानसिंह ने बनवाया था। इस घाट के समीप ही एक मानसरोवर की स्थापना भी की गई है। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ स्न्नान करने से मानो हिमालय में स्थित कैलाश मानसरोवर का पुण्य मिलता है।

 राजा घाट (अमृतराओ पेशवा द्वारा पुनः निर्माण ) :

इस घटा की स्थापना ईस्वी १८०७ में पेशवाओ के राजा अमृतराव जी ने करवाई थी। इससे इसको अमृतराव घाट के नाम से जाना जाता था फिर इसका नाम बदलकर राजा घाट क्र दिया गया। यह एक प्रसिद्ध मठ की स्थापना हुई है जिसे अन्नपूर्णा मठ के नाम से जाना जाता है। जिसके द्वारा साधु-संतो और निसहाय लोगो को अन्न-वस्त्र दान दिया जाता है।

  पांडे घाट :

१९वीं शताब्दी में बिहार के बबुआ पांडे ने इस घाट का निर्माण करवाया था। इससे इस घाट का नाम पांडे घाट पड़ा है। ऐसा कहा जाता है कि १९वीं शताब्दी के पहले इस घाट को सर्वेश्वर घाट के नाम से जाना जाता था। इस घाट पे सर्वेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर है जिसके कारण इस घाट को सर्वेश्वर घाट कहा जाता था। इस घाट पे धोबी कपड़े धोने आते है।

 दिग्पतिया घाट :

यह घाट १८वीं शताब्दी के अंत बे पूर्वी बंगाल के राजा दिगपातिया जी ने अपनी देख-रेखा में हुआ था। इस घाट पर एक विशाल महल बनवाया गया है जो बंगाली वास्तुकला को दर्शाता है। आज के दौर में इस महल को कशी आश्रम के नाम से जाना जाता है। इस घाट को विशेष कोई महत्ता नहीं दिया गया है जिससे यहाँ के अधिकतर निवासी यहाँ स्न्नान क्रिया करने आतें है।

चौसठि घाट :

वैसे तो इस घाट की स्थापना १६वीं शताब्दी में ही हुई थी परन्तु जर्जर की स्थिति में इस घाट का पुनर्निर्माण कराया गया जिसे राजा दिग्पतिया जी ने बनवाया था। घाट पे स्थित चौसठि देवी के मंदिर के नाम से इस घाट का नामकारण हुआ था। ऐसा भी कहा जाता है कि बंगाली समुदाय के लोग पुत्र मुंडन की पूजन विधि इसी घाट पर करते है। और यहाँ धार्मिक और दैनिक स्न्नानार्थी यहाँ स्न्नान करते है।

 दरभंगा घाट :

इस घाट की स्थापना १८१२ में हुई थी। नागपुर के राजा के मंत्री श्रीधर मुंशी ने इस घाट और घाट पर स्थित महल का निर्माण करवाया था। जिसे दरभंगा के राजा ने खरीद लिया और उसका १९२० में पुनर्निर्माण करवाया जिससे इस घाट का नाम दरभंगा घाट पड़ा। इस घाट पर केवल एक शिव मंदिर ही स्थापित ह। इस घाट को धार्मिक मानता नहीं दी गई  है जिससे इस घाट पे केवल स्थानीय लोग ही आते है।

 राणा महल घाट :

१७वीं सकताब्दी में उदयपुर (राजस्थान) के राजा राणा जगत सिंह ने इस घाट पर एक विशाल महल बनवाया था। जिसका नाम राणा महल था। इसी से इस घाट का नाम राणा महल घाट पड़ा। घाट के महल में सुंदर राजस्थानी वस्तु कला का प्रदर्शन किया गया है। इस घाट पे स्थानीय लोग स्न्नानादि क्रिया करने आते है।

 मुंशी घाट :

इस घाट का निर्माण कार्य भी नागपुर के राजा के मंत्री श्रीधर मुंशी ने करवाया था जिससे इस घाट का नाम मुंशी घाट रखा गया था। ऐसा कहा जाता है कि ईस्वी १९२० में इस घाट का विभाजन हुआ था। गंगा के सभी नाविक अपनी नवें यही बांधते है क्योंकि ये नाविकों का केंद्र माना जाता है। दूसरे घाटों की तरह इस घाट को भी किसी प्रकार की महत्ता नहीं दी गई है।

अहिल्याबाई घाट :

ईस्वी १७८५ में इंदौर की महारानी आहिल्याबाई ने इस घाट और घाट पर स्थित महल का निर्माण करवाया था। पहले यह घाट प्राचीन काल में केवलगरीघाट के नाम से जाना जाता है। और अब यह घाट अहिल्याबाई घाट के नाम से जाना जाता है। महल के अलावा यह हनुमान मंदिर और २ शिव मंदिर भी है। ऐसा कहा जाता है कि घाट पर हर शाम बंगाली औरतें भजन-कीर्तन करती है।

 शीतला घाट :

१८वीं शताब्दी में इंदौर की रानी आहिल्याबाई ने इस घाट का निर्माण करवाया था। उन्नीसवीं शताब्दी के पहले तक यह घाट दशाश्चमेध घाट का ही एक हिस्सा था। कुछ वर्षो के पश्चात यहाँ प्रसिद्ध शीतला मंदिर का निर्माण हुआ था जिससे इस घाट का नाम शीतला घाट रखा गया था। इस घाट पे धार्मिक कार्यो महत्ता दिया जाता है।

दशाश्चमेध घाट :

यह घाट वाराणसी के मुख्य ५ घाटों मेसे एक है। इस घाट का निर्माण १७३५ में बाजीराव पेशवा ने करवाया था। पहले इस घाट की लम्बाई आहिल्याबाई घाट और राजेंद्र प्रसाद घाट तक थी । पौराणिक काल में  ब्रह्मा जी ने इसी घाट पे दस अश्वमेघ यज्ञ किए थे ।  जिससे इस घाट का नाम पड़ा था। धार्मिक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाय तो यह घाट बोहोत ही प्रसिद्ध घाट है। यहाँ सभी प्रकार के धार्मिक कार्य किए जाते है।

 प्रयाग घाट :

बंगाल के पोटिया की महारानी एच के ने ईस्वी १९०० में इस घाट का निर्माण करवाया था। कशीखंड में बताये अनुसार इस खंड को प्रयागतीर्थ भी खा गया है जिससे प्रेरित होकर इस घाट का नाम प्रयाग घाट रखा गया है ऐसा कहा जाता है कि गोदावरी नदी का इसी घाट पे गंगा नदी में संगम होता है।

राजेंद्र प्रसाद घाट :

मौर्य काल में इसे घोडा घाट के नाम से जाना जाता था क्योंकि यह घोड़ों के लेंन-देंन का केंद्र माना जाता था। ईस्वी १९८४ इस घाट का पुनर्निर्माण हुआ था। ऐसा माना जाता है की स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ० राजेंद्र प्रसाद के नाम पर इस घाट का नाम पड़ा था।

 मनमंदिर घाट :

१६वीं शताब्दी के  आमेर (राजस्थान ) के राजा मानसिंह ने इस घाट का निर्माण करवाया था। इसी कारण इस घाट का नाम मानमंदिर घाट पड़ा था। १८वीं शताब्दी तक यह घाट सोमेश्वर घाट के नाम से जान जाता था। यह घाट अपनी कला कृतियों के लिए पहचाना जाता है। इस घाट पर स्थित महल की कला-कृतियों देखने देश-विदेश लोग आते है।

 त्रिपुर भैरवी घाट :

इस घाट पर जाने वाली गली के भींच में त्रिपुरभैरवी माता का मंदिर बनाया गया था। इसी कारण घाट का नाम त्रिपुरभैरवी के नाम से जाना जाता है। इस घाट पर दो शिव मंदिर है। इस घाट पर मुंडन,विवाह और गंगा पुजाइ जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जाते है। इस घाट पर स्थानीय लोग स्न्नान करने आते है।

 मीर घाट :

काशी  के फौजदार मेरे रुस्तमअली ने १७३५ में घाट और घाट पर स्थित किले का निर्माण करवाया था। इसी कारण इसे मीर घाट के नाम से जाना जाता था। ऐसा कहा जाता है की यहाँ दो प्राचीन मठ भी है। इस घाट पर माता विशालाक्षी देवी का मंदिर है जो वास्तुशिल्प के लिए जाना जाता है।  इस घाट पर भी केवल स्थानीय लोग स्न्नान करते है।

मणिकर्णिका घाट :

इस घाट का पुनर्निर्माण पेशवा बाजीराव के सहयोग से सदा शिव नाइक ने किया था।यह घाट भी वाराणसी के मुख्य ५ घाटों मेसे एक है। इस घाट से लगते ही एक मणिकर्णिका कुंड है और उस कुंड की मान्यताओं के कारण ही इस घाट का नाम मणिकर्णिका घाट पड़ा। इस घाट को श्मशान घाट के रूप में जाना जाता है।

 नया घाट :

नया घाट का निर्माण बिहार राजा जय सिंह पाल ने करवाया था और घाट पर एक किले का निर्माण भी करवाया था। इससे इस नया घटके नाम से जाना जाने लग। इस घाट को पहले फुटेश्वर घाट के नाम से जान जाता था। इस घाट पर शिव मंदिर और उसके अलावा एक हुमां मंदिर भी है। इस घाट को भी महत्ता नहीं दी गई है यह भी केवल स्थानीय लोग ही आते है।

 खिड़की घाट :

यह घाट अभी तक कच्चा ही है। मोतीचंद्र जी इस घाट का प्रथम उल्लेख खिड़की घाट नाम से किया था। घाट के ऊपर एक पीपल वृक्ष है और एक शिव मंदिर भी है। यह घाट अभी कच्चा है इसी कारण यहाँ कोई स्न्नानार्थी नहीं आते है घाट पे कुछ साधु-संत रहते और वे लोग ही इसमें स्न्नान करते  है ।

सिंधिया घाट :

ईस्वी १८३५ में महारानी ग्वालियर की महारानी बेजा बाई के नेतृत्व में सिंधिया घाट का निर्माण हुआ था। इसलिए इस घाट को  सिंधिया घाट कहा  जाता है। इस घाट को पहले वरेश्वर घाट के नाम से जान जाता था। यहाँ ऐसी मान्यता है की अग्नि देव का जन्म इसी घाट पर हुआ था। इस घाट पर वीरेश्वर महादेव का मंदिर भी है। इसके अलावा यहाँ २ और प्रमुख मंदिर है। वाराणसी के मुख्य ५ घाटों में यह भी एक घाट है।  

 गंगा महल घाट २ :

 इस घाट का पक्का निर्माण ग्वालियर के महाराजा जियाजी राव ने ईस्वी १८६४ में करवाया था इस गंगा घाट पे एक विशाल महल होने के कारण इस घाट का नाम गंगा महल घाट पड़ा। इस घाट पर बना महल कलात्मक कृतियों के लिए प्रख्यात है। इस घाट पे सरे त्यौहार बड़ी ही धूम-धाम से मनाये जाते है। इस घाट पे कृष्णजन्माष्ठमी भी बड़े ही जोर-सोर से मनाया जाता है।

 संकठा घाट :

इस घाट का निर्माण विश्वम्भर दयाल जी अर्धांगिनी जी ने करवाया था। यह घाट पहले गानमहल घाट २के नाम से जाना जाता था लेनकि इस घाट के पुनर्निर्माण के बाद यह घाट संकठा घाट के नाम से जाना जाने लगा। क्योंकि इस घाट पर संकठा माता का बड़ा ही प्रसिद्ध मंदिर है। ऐसा कहा जाता है कि संकठा माता को कान्त्यायिनी माता के नाम से जाना जाता है।

नया घाट : 

घाट का पुनर्निर्माण २०वीं शताब्दी में हुआ था। बिहार के भभुआ के राजा नरसिंह जय पाल ने इस घाट का पक्का निर्माण करवाया था। इस घाट पे फुटेश्वर शिव का मंदिर है इस कारण इसे फुटेश्वर घाट भी कहा जाता था। इस घाट को धार्मिक महत्ता नहीं मिली है इसलिए केवल स्थानीय लोग ही यहाँ स्न्नान करने आते है।

गणेशा घाट :

इस घाट का पुनर्निर्माण ईस्वी १८०७ में पौंआ के राजा श्री अमृतराव पेशवा के नेतृत्व में हुआ था। इस घाट पर अमृत विनायक (गणेश) जी का मंदिर होने के कारण इस घाट को गणेश घाट कहा जाता है। इस घाट पे भजन कीर्तन ,पूजा-पाठ आदि किया जता है। इस घाट पे सभी सन्नार्थीयो का आवागमन होता है।

मेहता घाट :

ईस्वी १९०६ में कोलकाता के सामान्य निवासी बल्लभ राम सालिगराम जी इस ज़मीन को खरीद लिया और उस इस घाट का निर्माण करवाया था। जिससे इसे मेहता घाट के नाम से जाना जाने लगा। ऐसा कहा जाता है कि यह घाट पहले रामघाट का ही कच्चा हिस्सा था। इस घाट पे एक चिकित्सालय भी है। यह मंत्रविद्या भी सिखायी जाती है। इस घटको भी धार्मिक दृष्टि से कम महत्ता दी गई है। यह केवल स्थानीय लोग स्न्नान करते है।

 रामा घाट :

सत्तरवीं शताब्दी में औरंगज़ेब ने घाट पर स्थित मंदिर को नष्ट कर दिया था। और १८वीं शताब्दी में जयपुर के राजा सवाई मान सिंह जी इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया और इस मंदिर का नाम राम पंचायतन मंदिर पड़ा जिससे इस घाट को राम घाट के नाम से जाना जाने लगा। इस घाट पर चैत्र नवरात्री में बड़ी भीड़ होती है ऐसा कहा जाता है कि यहाँ नवरात्री की रामनवमी पर लोग संनादि करके भगवान राम के मंदिर में पूजा-अर्चना करते है। यह वैसे तो स्थानिय लोग ही स्नान करते है लेकिन विशेष पर्व दर्शनार्थी भी यहाँ स्न्नान करते है।

जटार घाट :

 इस घाट का निर्माण ग्वालियर के राजा जियाजी राव शिंदे के दीवान बालाजी जटार ने करवाया था। जिससे यह घाट को जटार घाट के नाम से जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस घाट को पहले चोर घाट के नाम से जाना जाता था क्योंकि यहाँ पे स्न्नान करने आये श्रद्धालुओ के सामान चोरी हो जाते थे जिससे इसे चोर घाट बोला जाता था। यहाँ के स्थानीय लोग यहाँ स्न्नान करते ह।

राजा ग्वालियर घाट :

इस घाट को भी ग्वालियर के राजा जियाजी राव शिंदे ने बनवाया था। इस घाट पर एक विशाल भवन भी बनवाया था।इस घाट को ग्वालिकार के राजा द्वारा बनवाया गया है। इसलिए इसे राजा ग्वालियर घाट कहा जाता है। इस घाट को धार्मिक महत्ता नहीं दिया गया है। घाट स्वच्छ है इसलिए स्थानीय लोग यहाँ स्न्नान करते है।  

पंच गंगा घाट : 

इस घाट में अदृश्य रूप में पांच नदियों का संगम पाया गया है। यहाँ यमुना,सरस्वती, किराणा और धूपपापा जैसी अलग-अलग चार नदियों का संगम होता है जिससे इसे पंच गंगा कहा जाता है। इस घाट का निर्माण ईस्वी १५८० में रघुनाथ जी टंडन के नेतृत्व में हुआ था। ऐसा कहा गया है कि काशी के प्राचीन घाटों में यह घाट भी सम्मिलित है। यह केवल एक ही घाट ऐसा है जिसकी सीढियाँ आदि काल से सुरक्षित है। इस घाट पे द्वी,त्रि और चतुर्थ यात्रा करने वाले श्रद्धालु यही से स्न्नान करके अपनी यात्रा प्रारंभ करते है।

ब्रह्मा घाट :

 ईस्वी १७४० के राजा नारायण दीक्षित ने दुर्गा घाट के साथ ही इस घाट का भी निर्माण करवाया था। ऐसी मान्यता है की जब शिव भगवान ने ब्रह्मा जी को धरती पे भेजा था तब ब्रह्मा जी इसी घाट पर निवास करते थे इसलिए इस घाट को ब्रह्मा घाट कहा जाता है। इस घाट पर एक ब्रह्म मंदिर और एक ब्रह्मेश्वर शिव मंदिर है। इस घाट को भी इतनी महत्वता नहीं प्राप्त हुई है।

बूँदी परकोटा घाट :

१९वीं शताब्दी में बूँदी के महाराजा सुरजन राव ने घाट एवं घाट पे स्थित मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। ईस्वी १९५८ में सरकार ने दोनों घाटों की मरम्मत गयी जिससे इस घाट पर प्रीतम सिंह घाट से बूँदी राजाओ के नाम से बूँदी परकोटा घाट के नाम से जाना जाता है। लोग इस घाट के पे स्न्नान करने के बजाय शीतला घाट पर स्न्नान करते है।    

हनुमानगढ़ी घाट :

इस घाट का निर्माण श्यामल दस जी के शिष्य टेकचंद्र ने करवाया था। इस घाट पर १९५० में हनुमान मंदिर की स्थापना की गई थी जिससे इस घाट को हनुमानगढ़ी घाट के नाम से जाना जाता है पहले यह घाट गया घाट का ही एक भाग था। इस घाट का उपयोग स्थानीय लोग स्न्नान आदि क्रियाओं में करते है । इस घाट पर व्यायामशाला भी है  कुश्ती,गदा आदि की शिक्षा दी जाती है।  

 तिलोचना घाट :

२०वीं शताब्दी में नगर निगम के लोगो ने इस घाट का पुनर्निर्माण करवाया था। यह घाट पूर्व में महत्ता घाट के नाम से जाना जाता था। इस घाट पर बद्रीनारायण मन्दिर स्थित होने के कारण इसे बद्रीनारायण घाट के नाम से जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ पोष माह में स्न्नान करने की मान्यता है। इस घाट को धार्मिक महत्वता दी गई है। इस घाट की स्वच्छता बनाए रखने के लिए यहाँ सोचालय भी बनाए गऐ है।

 गोला घाट :

२०वीं शताब्दी में नगर निगम के लोगो ने इस घाट का पुनर्निर्माण करवाया था। ऐसा माना जाता है की यहाँ प्राचीन काल में गल्ला मंडी लगती थी जिसे यहाँ के निवासी गोला मंडी कहा जाता था। जिससे इस घाट को गोला घाट कहा जाता है। इस घाट पे धोबी अपने कपड़े साफ करते है जिस वजह से यहाँ पे सन्नार्थीयो की संख्या कम है।

 नंदू घाट :

इस घाट का निर्माण ईस्वी १९४० बंगाल के रहवासी द्वारकानाथ चक्रवर्ती जी ने किया था। और यहाँ एक विशाल भवन भी बनवाया था। इस घाट पर नंदीश्वर शिव का मंदिर होने के कारण इसे नंदू घाट कहा जाता है। वर्तमान में इस घाट पर स्थानीय लोग स्न्नान करते है।

शुक्का घाट :

ईस्वी १९८८ में में सरकार की सहायता से सिंचाई  विभाग के लोगो ने इस घाट का पुनर्निर्माण करवाया था। वक्ष के अनुसार इस घाट को शुका घाट के नाम से दर्शाया गया है। इस घाट पर धोबी कपडा देते है। और यहाँ बोहोत काम सन्नानर्थी आते है।

 तैलीयानाला घाट :

शुका घाट के साथ ही इस घाट का भी निर्माण हुआ था। इस घाट को भी सिंचाई विभाग के लोगी ने ही किया था। ऐसा कहा जाता है की इस घाट पे नगर का पुराना नाला आके मिलता है। जिसे ये लोग टेलियानाला के नाम से पहचानते है। इस से इस घाट का नाम तैलीयानाला घाट के नाम से जाना जाता है। इस घाट पर बोहोत ही कम स्न्नानार्थी आते है और यहाँ पर भी धोबी कपड़े धोते है।  

 प्रहलाद घाट :

इस घाट की रचना २०वीं शताब्दी के नगर निगम द्वारा हुई है। ऐसा कहा जाता है भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद की रक्षा उसके राक्षस पिता हिरण्यकश्यपु से की थी। इस लिए घाट का नाम प्रहलाद घाट रखा गया। इस घाट को धार्मिक महत्वता मिली है इसलिए यहाँ श्रद्धालुओ की संख्या अधिक मात्रा में पायी जाती है।

राजा घाट (महिसासुर राज घाट) :

ईस्वी १९८८ में इस घाट का पुनर्निर्माण सिंचाई विभाग के द्वारा हुआ था। प्राचीन समय में यह राजाओ का निवास स्थान माना जाता था जिससे इस घाट का नाम राजा घाट रखा गया है। घाट के सामने महिसासुर नामक तीर्थ स्थल ह। जिसके कारण इसे महिसासुर घाट के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ अधिक मात्रा में सन्नार्थीयो भीड़ लगती है और घाट की स्वच्छता को ध्यान में रखते हुए यहाँ सुलभ शौचालय भी बनवाए गए है।

अदिकेसवा घाट :

इस घाट का पुनर्निर्माण १९०६ में ग्वालियर के राजा नरसिंह राव शितोले ने करवाया था। यहाँ ऐसी मान्यता है की भवन शिव की आज्ञा से ब्रह्मा जी कशी में आये तो वे सर्वप्रथम यहाँ ही आये थे और उन्होंने स्वयं की मूर्ति बनाई थी। जिसे उन्होंने इस घाट पर स्थापित किया था। जिसे आदिकेशव मंदिर के रूप में जाना जाता है। जिससे इस घाट का नाम करण हुआ और इस घाट को आदिकेशव घाट कहा जाता है।

 रानी घाट :

इस घाट का निर्माण ईस्वी १९८८ में सिंचाई विभाग द्वारा हुआ था। यह घाट पहले राजा घाट का हिस्सा था। ईस्वी १९३७ में इस घाट पे लखनऊ की रानी मुनिया साहिब ने जानकीकुंज नामक मंदिर स्थापना की थी। जिससे इस घाट का नाम रानी घाट पड़ा था। लेकिन इस घाट पे स्थानीय लोगो के अलावा कोई नहीं आता है।

अग्निश्वर घाट :

इस घाट का पुनर्निर्माण ईस्वी १९६५ में सरकार द्वारा हुआ था। इस घाट को यहाँ के प्रमुख घाटों मेसे एक घाट माना जाता है। घाट के पास में ही अग्नीश्वर महादेव का मंदिर है जिसके कारण इस घाट को अग्नीश्वर घाट कहा जाता है ऐसा माना जाता है कि पहले इस घाट पर लकड़ी और बालू का लेन-देन होता था। जिसे अब बंद करवा दिया है।

दुर्गा घाट :

इस घाट का निर्माण ईस्वी १७४० में  नारायण दीक्षित के द्वारा हुआ था। इस घाट की तलहटी पर ब्रह्मचारिणी दुर्गा माता का मंदिर होने के कारण इस घाट को दुर्गा घाट कहा गया है। इस घाट पर धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का पर्व हमेशा से ही मनाया जाता है। स्थानीय लोगो के साथ ही यहाँ तीर्थयात्री का आवागमन लगा रहता है।

लाल घाट :

राजस्थान के महाराजा के द्वारा १९वीं शताब्दी पहले घाट का निर्माण किया था। ईस्वी १९३५ में बलदेव दास बिड़ला ने इस घाट पे निवास के लिए इस घाट को खरीद लिया था। इस घाट को धोबिया घाट के नाम से जाना जाता है। वैसे तो यहाँ के लोग यहाँ सन्ना क्रिया करते है लेकिन माघ मास में यह सन्नार्थीयो की संख्या अधिक हो जाती है।