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अगर वाराणसी में हुआ मोदी VS प्रियंका तो हार सकती है बीजेपी, ये है गणित

Politics Tadka Taranjeet 23 April 2019
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पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी इस बार चुनावी अखाड़ा बन रहा है। कई नामी चेहरे जो पिछले 5 सालों में सुर्खियों में रहे हैं, वो वाराणसी से चुनाव लड़ रहे हैं। इनमें कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा का नाम भी सामने आ रहा है, प्रियंका की तरफ से कई बार इस बात के संकेत दिए गए हैं। हाल ही में प्रियंका ने कहा कि अगर पार्टी अध्यक्ष और उनके भाई राहुल गांधी चाहेंगे तो वो वाराणसी से चुनाव लड़ने के लिए तैयार है। प्रियंका ने ये केरल के वायनाड में राहुल के समर्थन में चुनाव प्रचार करते वक्त कहा।

प्रियंका ने दिए हैं संकेत

आपको बता दें कि राहुल गांधी अपनी पारंपरिक सीट अमेठी के अलावा वायनाड से भी चुनाव लड़ रहे हैं। प्रियंका ने कहा कि अगर राहुल गांधी कहेंगे तो मैं चुनाव लड़ने के लिए तैयार हूं और मैं वाराणसी से लड़ूंगी। इसमें कोई दो राय नहीं है कि अगर पीएम मोदी के खिलाफ प्रियंका गांधी चुनाव लड़ती हैं तो भारत के चुनावी इतिहास में ये सबसे बड़ा मुकाबला हो सकता है, क्योंकि एक तरफ नरेंद्र मोदी चुनावी मैदान में होंगे तो वहीं गांधी परिवार का बड़ा चेहरा और कांग्रेस का ट्रंप कार्ड मानी जा रहीं प्रियंका गांधी उनके सामने होंगी। अगर प्रियंका वाराणसी से चुनाव लड़ती हैं तो हो सकता है कि कांग्रेस को इसका फायदा वहां की आसपास की सीटों पर हो सकता है।

क्या था 2014 का गणित

आपको बता दें कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी को 5,81,022 वोट मिले थे। तो वहीं दूसरे स्थान पर आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल रहे थे, जिन्हें 2,09,238 वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस के उम्मीदवार अजय राय को 75,614, बसपा को 60 हजार 579 वोट मिले थे। अगर ऐसे में सपा-बसपा-कांग्रेस तीनों के वोटों को भी जोड़ दिया जाए तो ये आंकड़ा 3लाख 90 हजार 722 वोट होता है।

वाराणसी में जातिगत समीकरण क्या कहता है

वहीं अगर बात जातिगत समीकरण की करें तो वाराणसी में सवा तीन लाख बनिया वोटर है जो कि बीजेपी के कोर वोटर माने जाते हैं। वहीं अगर नोटबंदी और जीएसटी के मुद्दे को अगर कांग्रेस भुना लेती है तो ये वोट बैंक कांग्रेस की तरफ खिसक सकता है। वहीं ब्राह्मणों की अगर बात करें तो ये संख्या ढाई लाख के करीब की है। विश्वनाथ कॉरीडोर और एससी/एसटी संशोधन बिल को लेकर इनमें भी सरकार के खिलाफ नाराजगी हो सकती है। जिसका फायदा चाहे तो कांग्रेस आराम से उठा सकती है। वहीं यादवों की संख्या डेढ़ लाख है और इस सीट पर पिछले कई चुनाव से यादव समाज बीजेपी को ही वोट देते आ रहे हैं, लेकिन अगर सपा इसमें कांग्रेस का समर्थन कर देती है तो ये वोट भी प्रियंका गांधी वाड्रा के पाले में खिसक सकता है।

सपा-बसपा समर्थन करें तो कांटेदार हो सकता है मुकाबला

वाराणसी में मुस्लिमों की संख्या 3 लाख के करीब है, ये वर्ग उसी को वोट करता है जो बीजेपी को हरा पाने में सक्षम होता है। इसके बाद भूमिहार 1 लाख 25 हजार, राजपूत 1 लाख, पटेल 2 लाख, चौरसिया 80 हजार, दलित 80 हजार और अन्य पिछड़ी जातियों के 70 हजार मतदाता हैं। इनके वोट अगर थोड़ा बहुत भी इधर-उधर होते हैं तो इस सीट का पूरा गणित बदल सकता है। आंकड़ों के इस खेल को देखने के बाद अगर बसपा-सपा प्रियंका के समर्थन में आती है और साझा उम्मीदवार उतारा जाता है तो कांग्रेस वाराणसी में पीएम मोदी को टक्कर दे सकती है। हालांकि मोदी ने जिस तरह से पिछले 5 सालों में जिस तरह से वाराणसी के विकास के काम किए हैं उन्हें नजरंदाज नहीं किया जा सकता है।

मोदी के प्रचार को रोक सकती है प्रियंका

साथ ही अगर प्रियंका वाराणसी से चुनाव लड़ती है तो वो एक तरह से नरेंद्र मोदी को वाराणसी में बांधने का काम कर सकती है, क्योंकि ऐसे में उन्हें वाराणसी में ज्यादा प्रचार करना होगा और वो बाकी देश में प्रचार से कट सकते हैं। जिसका फायदा भी कांग्रेस और विपक्षी दलों को हो सकता है।

Taranjeet

Taranjeet

A writer, poet, artist, anchor and journalist.