भारतीय जनता पार्टी ने हैदराबाद नगर निगम चुनाव में जो एक्सपेरिमेंट किया था, उसके कई राजनीतिक मायने हैं। बिहार और पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में वक्त का फासला बहुत ज्यादा नहीं है। इसके बावजूद भाजपा ने मात्र एक नगर निगम चुनाव में अपनी पूरी ताकत लगा दी। अमित शाह, जे पी नड्डा, योगी आदित्यनाथ समेत लगभग सभी स्टार प्रचारक चुनाव प्रचार में लगे थे। अब जब भाजपा एक निकाय चुनाव को लेकर इस हद तक पैशनेट हो तो विपक्ष कैसे मुकाबला कर पाएगा। हैदराबाद में टीआरएस और ओवैसी से मुकाबला बड़े पैमाने पर था, लेकिन इसमें भी भाजपा काफी सफल हुई।
दरअसल ये चुनाव भाजपा के साथ-साथ असदुद्दीन ओवैसी के लिए भी अहम थे, क्योंकि उन्हें अपनी ताकत को आंकना था। क्या वो बिहार वाला कारनामा बंगाल में कर पाएंगे? वैसे भाजपा नेतृत्व को असदुद्दीन ओवैसी से पश्चिम बंगाल में तो चिराग पासवान जैसी उम्मीद कर रही होगी। जैसे वो नीतीश कुमार के खिलाफ एक प्रोफेशनल वोटकटवा की तरह पेश आये थे, ओवैसी भी ममता बनर्जी के खिलाफ वैसा ही कोई करिश्मा दिखा सकते हैं? असदुद्दीन ओवैसी बंगाल में चिराग पासवान साबित होंगे भी या नहीं, अभी नहीं कहा जा सकता है। लेकिन अगर वो थोड़े से भी अच्छे वोटकटवा का किरदार निभा पाये तो भाजपा को इसका लाभ जरूर होगा।
हैदराबाद और बंगाल में मिलते जुलते हाल
बिहार और बंगाल के बीच में हैदराबाद चुनाव पर भाजपा की पूरी ताकत झोंक देने की एक अहम वजह मिलती जुलती डेमोग्राफी है। हैदराबाद नगर निगम चुनाव में 40 फीसदी मुस्लिम आबादी भाजपा के एक्सपेरिमेंट की सबसे बड़ी वजह रही है। भाजपा ने पश्चिम बंगाल के लिए जो रणनीति तैयार की है, उसे आजमाने के लिए हैदराबाद का चुनाव काफी अहम था। क्योंकि पश्चिम बंगाल में भी भाजपा को 30 फीसदी मुस्लिम आबादी का सामना करना है।
मुस्लिम वोट बैंक ममता के बंगाल की सत्ता हासिल करने में सबसे बड़ा सपोर्ट सिस्टम रहे हैं। लॉकडाउन में ममता बनर्जी पर केंद्र जो सवाल खड़े करता था वो बाजारों के खुले रहने और सोशल डिस्टैंसिंग का पालन न होने को लेकर ही रहा है और असल में ममता बनर्जी मुस्लिम आबादी वाले इलाकों में सख्ती बरतने के पक्ष में नहीं रही है। ऐसे में बाबुल सुप्रियो, दिलीप घोष और कैलाश विजयवर्गीय जैसे नेता ऐसी ही तस्वीरें और वीडियो शेयर कर ममता बनर्जी पर हमला बोला करते रहे हैं।
ममता मुस्लिम आबाद से ही पहुंची थी सत्ता में
माना जाता है कि ये मुस्लिम आबादी ही है जिसमें पैठ बना कर ममता बनर्जी साल 2011 में सत्ता में आयीं और 2016 में शानदार वापसी की थी। साल 2006 तक वाम मोर्चा इस वोट बैंक को अपने साथ रखने में सफल रहता था। ऐसे में भाजपा की पहली कोशिश तो यही होगी कि वो मुस्लिम वोट बांटें। फिर चाहे वो लेफ्ट, ओवैसी किसी के भी पास जाए। फिलहाल ममता बनर्जी पर मुसलमानों का पक्ष लेने के कई आरोप लगे हैं। पश्चिम बंगाल में फिलहाल मुस्लिम आबादी 30 फीसदी के आसपास है। जो कि 100 सीटों से भी ज्यादा पर असर डालती है। ऐसे में कोई भी दल मुस्लिम वोट को दरकिनार नहीं कर सकता।
मुस्लिम समुदाय के बारे में अब तक माना जाता रहा है कि 2014 के बाद से वो उसी पार्टी को वोट देना पसंद करते हैं जो दल भाजपा को हराने में सक्षम नजर आता हो। हालांकि, 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव और 2019 के आम चुनाव में ये धारणा काफी गलत साबित हुई। असदुद्दीन ओवैसी को अपने बीच में पाकर मुस्लिम समुदाय को ऐसा लगने लगा है कि AIMIM कम से कम भाजपा के खिलाफ आवाज तो बन ही रही है। बिहार में ओवैसी की पार्टी के सफल होने की एक बड़ी वजह भी यही थी। अगर पश्चिम बंगाल में देखें तो मुस्लिम समुदाय के फायदे की तमाम स्कीमें चलाये जाने के बावजूद तृणमूल कांग्रेस के प्रति नाराजगी बढ़ी हुई है। ऐसे में हो सकता है कि लोग ओवैसी को अपना वोट दें।
ओवैसी भाजपा की बी-टीम साबित होगी
काफी लोग ये मान कर भी चलते हैं कि ओवैसी हर जगह भाजपा को फायदा पहुंचाने के लिए काम करते हैं। वो विपक्ष का मुसलमान वोट काट रहे हैं, जिससे भाजपा को फायदा होता है। असदुद्दीन ओवैसी के पश्चिम बंगाल को लेकर साफ तौर पर कुछ भी बताने से पहले ही बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी AIMIM को भाजपा की बी-टीम बता चुके हैं। असल में भाजपा पर जिस सांप्रदायिकता की राजनीति करने का इल्जाम लगते हैं, ओवैसी उस आग में घी का काम करते हैं और ओवैसी भाजपा के स्टैंड के प्रतिक्रिया पक्ष को हवा देते हैं। जिसका असर ये होता है कि दूसरी तरफ ध्रुवीकरण आसानी से हो जाता है। बिहार चुनाव में खुद ओवैसी ने भी इस चीज का हद से ज्यादा फायदा उठाया है।
लेटेस्ट एक्पेरिमेंट बंगाल में चलेगा क्या
बिहार की कामयाबी के बाद जोश से भरपूर असदुद्दीन ओवैसी की तरफ से ममता बनर्जी को चुनावी गठबंधन का प्रस्ताव दिया गया था ताकि भाजपा को रोका जा सके और मुसलमान वोटों का बंटवारा न हो सके। तृणमूल कांग्रेस ने इसे पूरी तरह खारिज कर दिया, वैसे भी तृणमूल कांग्रेस के नेता ओवैसी पर भाजपा की मदद से पश्चिम बंगाल में पांव जमाने की कोशिश के आरोप लगा चुके हैं।