पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनाव का सियासी पारा हर रोज बढ़ता ही जा रहा है। उसमें पामेला गोस्वामी और रुजिरा नरूला जैसी घटनाओं की वजह से दिलचस्पी बढ़ रही है। वहीं आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति भी धीरे-धीरे अपने चरम पर पहुंचती जा रही है। किसी पार्टी में फिल्म स्टार जुड़ते जा रहे हैं, तो किसी में क्रिकेट के खिलाड़ी अपनी किस्मत आजमाने के लिए आ रहे हैं। एक तरफ भारतीय जनता पार्टी अपने अपने सारे दांव लगाकर सत्ता में काबिज होने की कोशिश कर रही है। प्रधानमंत्री से लेकर गृहमंत्री समेत पूरी कैबिनेट बंगाल में जमी पड़ी है।
भाजपा ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले हिंदुत्व का कार्ड भी पूरी तरह से खेल दिया है। इससे माहौल बनाया जा रहा है और सांप्रदायिकता को पूरा बढ़ावा दे रहे हैं। इन सबके बीच सभी राजनीतिक दल अपने वोट
बैंक को मजबूत करने में लगे हुए हैं। ममता बनर्जी 200 से ज्यादा सीटें जीतने का दावा कर रही हैं और उनके इस दावे के पूरा दारोमदार मुस्लिम मतदाताओं पर टिका हुआ है। पश्चिम बंगाल की राजनीति में हिंदुत्व कार्ड के प्रयोग की वजह से राज्य का मुस्लिम मतदाता दोराहे पर आकर खड़ा हो गया है।
पश्चिम बंगाल चुनाव मेंके करीबियों में से एक फुरफुरा शरीफ दरगाह के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने अपनी अलग पार्टी बना ली है। मौलाना अब्बास सिद्दीकी की इंडियन सेक्युलर फ्रंट ने पहले ही कांग्रेस-वाम दलों के गठबंधन में शामिल होकर तृणमूल कांग्रेस का सिरदर्द बढ़ा दिया था। ऐसे में माना जा रहा है कि कांग्रेस-वाम दलों के साथ सीटों पर बात न बनने की वजह से वो फिर से एआईएमआईएम के पाले में आ गए हैं। एआईएमआईएम चीफ और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी राज्य में अपनी दस्तक दे दी है।
ओवैसी को लेकर पूछे जाने पर ममता ने कहा था कि ऐसे लोगों को महत्व नहीं देना चाहिए। ममता बनर्जी का ये जवाब ही तृणमूल कांग्रेस में मुस्लिम मतदाताओं को लेकर घर कर चुके डर को दर्शाता है। तृणमूल कांग्रेस के खास रहे मौलाना अब्बास सिद्दीकी का पार्टी को ठेंगा दिखाकर अब AIMIM के साथ खड़े हो जाना ममता बनर्जी की राजनीति के लिए बहुत भारी पड़ सकता है। पश्चिम बंगाल की 100 से ज्यादा सीटों पर मुस्लिम मतदाता एकजुट होकर जीत-हार का फैसला करने की ताकत रखते हैं। मौलाना अब्बास सिद्दीकी और असदुद्दीन ओवैसी का गठबंधन से निपटना ममता बनर्जी के लिए सबसे मुश्किल चुनौती होगा। इन दोनों के एक साथ आने से मुस्लिम मतदाताओं का टीएमसी से दूर होने की संभावना बहुत ज्यादा बढ़ गई है।
कांग्रेस-वाम दलों का गठबंधन भी थोड़ी संख्या में ही सही, लेकिन मुस्लिम वोटों में सेंध जरूर लगाएगा। इस स्थिति में तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी के लिए हालात बहुत मुश्किल होते जा रहे हैं। टीएमसी के कई बड़े नेता पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थाम चुके हैं और भाजपा के राज्य प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने पहले ही कह दिया है कि विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होने के साथ दलबदलुओं की संख्या और बढ़ेगी। ममता बनर्जी को चौतरफा सियासी मुश्किलें घेर रही हैं।
अनुमान के हिसाब से पश्चिम बंगाल में करीब 31 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं। राज्य में मुस्लिम आबादी का बड़ा हिस्सा उत्तर, दक्षिण और मध्य बंगाल में रहता है। इस स्थिति में पश्चिम बंगाल की करीब 100 सीटों पर मुस्लिम मतदाता किंगमेकर की अहम भूमिका निभाते हुए नजर आएंगे। लेकिन, अब्बास सिद्दीकी और ओवैसी के एक साथ आने और कांग्रेस-वाम दलों की वजह से इन मुस्लिम मतदाताओं में विभाजन होने की संभावना साफ नजर आ रही है। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान हो चुका है। आपको बता दें कि राज्य में 27 मार्च से 29 अप्रैल तक 8 चरणों में चुनाव होने हैं और 2 मई को नतीजे आएंगे।