अयोध्या की विवादित जमीन ने भारत में धर्म की राजनीति का एक बड़ा महत्वपूर्ण बीज बोया था। अयोध्या के विवाद ने कई नेताओं को अर्श पर पहुंचाया तो कईयो को फर्श पर भी ला दिया।
अयोध्या की विवादित जमीन 100 सालों से विवाद का कारण बनी हुई है। इस जमीन का विवाद कई बार दंगों में भी बदला है। अब तक कई हजार लोग इस जमीन विवाद की वजह से मारे गए हैं। अयोध्या की विवादित जमीन ने भारत में धर्म की राजनीति का एक बड़ा महत्वपूर्ण बीज बोया था। अयोध्या के विवाद ने कई नेताओं को अर्श पर पहुंचाया तो कईयो को फर्श पर भी ला दिया। लोग जेल गए, दंगों की आग में झुलसें, कोर्ट से लेकर संसद तक, ये एक ऐसा मुद्दा रहा है जिस पर हमेशा ही निगाहें टिकी रहती है।
कुछ लोगों ने मंदिर का पक्ष लिया तो कुछ ने मस्जिद ने तो कुछ पढ़े-लिखे लोगों ने कहा कि न मंदिर बनाओ न मस्जिद कोई स्कूल, यूनिवर्सिटी, अस्पताल बना दो। लेकिन हमारे नेता इसके लिए राजी नहीं होंगे क्योंकि इससे राजनीति का मुद्दा खत्म होगा। अयोध्या के विवाद पर हर पार्टी ने जमकर राजनीति की है। इस विवाद की असल जड़ क्या थी, कहां से ये मामला उपजा और 100 सालों में अयोध्या की विवादित जमीन पर क्या क्या हुआ? इस आर्टिकल में हम आपको यही बताएंगे।
- सवा सौ साल पहले हुए मंदिर मस्जिद झगड़े के पहले बाबरी मस्जिद के दरवाजे के पास बैरागियों ने एक चबूतरा बना रखा था। साल 1885 में महंत रघुबर दास ने अदालत से मांग की कि चबूतरे पर मंदिर बनाने की इजाजत दी जाए, लेकिन ये मांग खारिज कर दी गई।
- साल 1946 में विवाद खड़ा हुआ कि बाबरी मस्जिद शियाओं की है या सुन्नियों की, जिसमें फैसला हुआ कि बाबर सुन्नी था इसलिए सुन्नियों की मस्जिद है।
- साल 1949 में प्रदेश सरकार ने मस्जिद के बाहर राम चबूतरे पर राम मंदिर बनाने की कवायद शुरू कर दी, लेकिन वो नाकाम रही थी। जिसके बाद अयोध्या की विवादित जमीन पर राम, सीता, लक्ष्मण की मूर्तियां मिली। जिसके बाद विवाद को बढ़ता हुआ देख विवादित जमीन को बंद कर दिया गया।
- साल 1950 से इस जमीन के लिए अदालती लड़ाई का एक नया दौर शुरू हो गया था और आज की तारीख में जो भी पक्षकार है वो इसी के बाद खड़े हुए थे। 16 जनवरी, 1950 को गोपाल दास विशारत अदालत गए और कहा कि मूर्तियां वहां से न हटें और पूजा करने की अनुमति दी जाए। अदालत ने कहा कि मूर्तियां नहीं हटेंगी, लेकिन ताला बंद ही रहेगा और पूजा सिर्फ पुजारी ही करेगा। जनता बाहर से दर्शन कर सकेगी।
- साल 1959 में निर्मोही अखाड़ा अदालत पहुंचा और वहां अपना दावा पेश किया, जिसके बाद साल 1961 में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड भी अदालत पहुंचा और वहां पर मस्जिद का दावा पेश किया।
- साल 1986 में फैजाबाद के जिला जज ने जन्मभूमि का ताला खुलवा के पूजा की इजाजत दे दी, जिसके बाद एक कमेटी का गठन हुआ, जिसे बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का नाम दिया गया।
- साल 1989 में वीएचपी नेता देवकीनंदन अग्रवाल ने रामलला की तरफ से मंदिर के दावे का मुकदमा किया और नवंबर में मस्जिद से थोड़ी दूर पर राम मंदिर का शिलान्यास किया गया था।
- 25 सितंबर 1990 को बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से एक रथ यात्रा शुरू की और इस यात्रा को अयोध्या तक जाना था। इस रथयात्रा से पूरे देश में हिंदूत्व की एक लहर उठी और लोगों में एक नया जुनून पैदा किया गया था। इसके नतीजे में गुजरात, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश में दंगे भड़क गए और कई इलाकों में कर्फ्यू लगाया गया। लेकिन आडवाणी को 23 अक्टूबर को बिहार में लालू यादव ने गिरफ्तार करवा लिया था।
- 1990 में ही कारसेवक मस्जिद के गुम्बद पर चढ़ गए और गुम्बद तोड़ दिया गया था। जिसके बाद वहां पर पहली बार भगवा फहराया गया था और पूरे देश में अलग अलग हिस्सों में दंगे भड़क गए थे।
- साल 1991 में जून में आम चुनाव हुए और यूपी में बीजेपी की सरकार बन गई।
- साल 1992 में धर्म संसद में कारसेवा की घोषणा हुई और नवंबर में कल्याण सिंह ने अदालत में मस्जिद की हिफाजत करने का हलफनामा दे दिया था। लेकिन 6 दिसंबर 1992 को लाखों कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद पर हमला कर दिया और उसे पूरी तरह से गिरा दिया था। कारसेवक 11 बजकर 50 मिनट पर मस्जिद के गुम्बद पर चढ़े थे और करीब 4.30 बजे मस्जिद का तीसरा गुम्बद भी गिर गया था। इस घटना के बाद मुख्यमंत्री कल्याण सिंह नेजिम्मेदारी ली थी और इस्तीफा दे दिया था।
- साल 2003 में हाईकोर्ट ने अयोध्या की विवादित जमीन पर खुदाई करवाई ताकि पता चल सके कि क्या वहां पर कोई राम मंदिर था।
- साल 2005 में यहां पर आतंकवादी हमला हुआ।
- 30 सितंबर 2010 को पहली बार इस विवाद पर फैसला आया और इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने आदेश पारित कर अयोध्या की विवादित जमीन को राम लला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बराबर बांटने का फैसला किया था। जिसे सभी पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया है।
- मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को बातचीत से सुलझाने का फैसला किया। लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला और अंत में कोर्ट ने फैसला दिया कि अयोध्या के विवाद को जमीन का मामला माना जाएगा और आस्था से नहीं देखा जाएगा।