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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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ये दिल वालों की दिल्ली के साथ क्या हो रहा है आखिर किसने नजर लगा दी !

ये कौन हैवान थे,जो दिल्ली को नर्क बना गए? क्या कसूर था रतन लाल का? वो तो लोगों की जान बचाने के लिए आया था और अपनी ही जान गंवा बैठा। आखिर किसने नजर लगा दी !
Blog Taranjeet 29 February 2020

क्या आपने उस मां की आवाज सुनी जिसका बेटा मर गया, क्या आपने उस बाप के दिल को समझा जिसने अपने बेटे के जनाजे को कांधा दिया हो। उस बेटे का रोना कानों में पड़ा जिसका बाप अब इस दुनिया में नहीं रहा। उस बीवी की टूटी हुई चूड़ियां देखीं। अशफाक हुसैन की 14 फरवरी को शादी हुई थी, उसके सीने में 5 गोलियां लगी। अभी तो मेहंदी का रंग भी बीवी के हाथों से नहीं हटा होगा। क्या देखी उसकी बीवी की आंखें, यकीन मानिए जवाब नहीं दे पाएंगे उसकी आंखों से निकलने वाले सवालों का। सिर्फ 11 दिन में वो लड़की विधवा हो गई। अंकित शर्मा के शरीर पर 400 बार वार हुआ था, उसकी लाश नाले में से मिली। उस मां को कोई जवाब दे सकता है जो अपने बेटे के उस शरीर को देख रही होगी। 85 साल की अकबरी, 9 महीने की मासूम बच्ची और उसकी मां को घर के अंदर ही जिंदा फूंक दिया।

ये कौन हैवान थे, जो दिल्ली को नर्क बना गए? क्या कसूर था रतन लाल का? वो तो लोगों की जान बचाने के लिए आया था और अपनी ही जान गंवा बैठा। उसके बच्चों को जवाब दे सकता है कोई? राम सुमरत – रिक्शा चला कर परिवार का पेट पालने वाला बाप जो अपने 15 साल के बेटे की लाश लेकर घूमेगा। राहुल सोलंकी घर से दूध लेने गया था और वापिस नहीं आया। दीपक, महताब, मुदस्सर इनका क्या कसूर था? मुदस्सर के बेटे का चेहरा देखा है आपने? 10 साल का मासूम है और पापा से हर चीज की जिद्द करता था, लेकिन उसके पापा अब कफन में लिपट कर चले गए। क्या कोई इस कमी को पूरा कर सकता है?

सोचिये मुदस्सर के बेटे पर क्या बीत रही होगी और खजूरी का वो बीएसएफ जवान जिसका घर फूंक दिया गया। किसी ने देखा उसका राष्ट्रवाद और बस मजहब देखा और फूंक डाला। पीटते रहे लोग देशभक्ति का ढोल। क्या मिला? जो लोग कपड़ों से पहचान लेते हैं उनके लिए जीटीबी अस्पताल में लाशों की पहचान करना भी मुश्किल हो गया था। वहां पर न कोई हिंदू था, न मुस्लिम था, सिर्फ इंसानों की लाशों का ढेर थी। न उसमें कोई बीजेपी का नेता था, न उसमें कोई आप का नेता था और न उसमें कोई कांग्रेसी था। पता है उसमें कौन था? आप और मैं और हम जैसे आम लोग।

जो अपने बच्चों के सपनों में रंग भरने की कोशिश कर रहे थे, अपनी बीवियों की जरूरतों को पूरा कर रहे थे। जो अपने माँ-बाप की लाठी बन रहे थे और अब या तो दफ्न हो गए या फिर चिता पर जल गए। हमने उन सब सपनों को एक साथ अपाहिज बना दिया और जिनके लिए हमारे अपने कट गए वो पता है क्या कर रहे थे – लाशें गिन रहे थे। हिसाब लगा रहे थे, हमारे कपड़ों से हमें पहचान रहे थे। ताकि मुआवजा देकर हमारे अपनों की लाशों का बही खाता तैयार कर सके। किसी ने 10 लाख, तो किसी ने एक करोड़ में लाशों का सौदा किया उन्होंने आपकी लाशों से नहीं पूछा कि वो हिंदू है या मुसलमान और इनके लिए आपने हिंदू मुसलमान के बीच की दरार को बड़ा कर दिया।

26 सालों से दिल्ली में रहता हूं लेकिन ऐसा पहली बार देखा है, कलेजा फट सा गया। ये दिल्ली कभी ऐसी तो न थी, दिल वालों की दिल्ली को किसकी नजर लग गई। हम दिल्लीवाले तो ईद और होली साथ मनाते थे। कभी बिरयानी तो कभी गूंजिया खाते थे। अब ये कौन लोग आ गए जो हमें जान के दुश्मन बना गए। गली में शोर मचने पर हम अपने आंगन में आ जाते थे, घंटों गप्पे लड़ाते थे। गली में एक साथ क्रिकेट खेलते थे अब ये लोगों की जान से हम कब से खेलने लगे। हमारी दोस्ती की मिसालें दी जाती हैं लेकिन ये दुश्मनी कब से पनप गई। हमेशा अखबारों में दिल्ली का जिक्र जरूर होता था, लेकिन मजहब के नाम पर कोई खबर छपने की उम्मीद नहीं थी। ये नफरत तो दिल्ली की फितरत नहीं थी। दिल्ली सहमती नहीं थी, लेकिन अब ये दिलवालों की दिल्ली नहीं रही।

मंदिर-मस्जिद वालों ने दिल्ली का दिल तोड़ दिया और आप उन्हें अपना समझ रहे थे। आपको लगा कि वो आपके खुदा और भगवान की रक्षा करेगा। भगवान, अल्लाह के लिए कब किसी की जरूरत पड़ गई, हमारी इबादत ही उनके लिए काफी है। और जिन लोगों ने ये किया है न वो गली के गूंडे हैं और यकीन मानिए न तो अल्लाह, न राम इन गूंडों से खुश होगा। अगर तुम लोगों का हिंदू मुसलमान बनने का खूनी खेल हो गया हो तो अब इंसान बन जाओ और हंसती खेलती दिल्ली को उसकी जान लौटा दो।

Taranjeet

Taranjeet

A writer, poet, artist, anchor and journalist.