नागरिकता संशोधन बिल 2019 के तहत शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दी जाएगी। इस बिल के समर्थन में और विरोध में बहुत से लोग है। मोदी सरकार ने इस बिल के लिए कई पापड़ बेले हैं और अमित शाह काफी उग्र भी है। आपको बता दें कि मोदी सरकार के द्वारा पिछले कार्यकाल में भी ये बिल संसद में आया था, लेकिन विरोध की वजह से वापिस चला गया।
क्या है नागरिकता संशोधन बिल 2019?
नागरिकता संशोधन बिल 2019 के तहत किसी भी विदेशी व्यक्ति को भारत की नागरिकता दी जा सकेगी। इस बिल के तहत कोई भी हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी और ईसाई समुदाय के शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने के नियमों में ढील देने का प्रावधान है। आपको बता दें कि मौजूदा कानून (सिटिजनशिप एक्ट 1955) के तहत भारतीय नागरिकता के लिए कम से कम 11 साल भारत में रहना जरूरी होता है। नए बिल में पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों के लिए ये अवधि घटाकर 6 साल कर दी गई है। गृह मंत्री अमित शाह के अनुसार- ‘सीएबी’ में धार्मिक उत्पीड़न की वजह से बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में आने वाले हिंदु, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है।
कौन सा पहलू बना है विवादास्पद?
नागरिकता संशोधन बिल 2019 को मंजूरी मिलने से पड़ोसी देशों से भारत में शरण लेने के लिए आए हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता प्रदान की जाएगी। इस लिस्ट में मुस्लिम धर्म का जिक्र नहीं हैं। अब पहला विवाद तो इस बात को ही लेकर हो रहा है कि ये बिल मुस्लिमों के खिलाफ है और दूसरी बात ये हो रही है कि आखिर धर्म के हिसाब से ये कैसे तय हो सकता है कि किसे नागरिकता देनी है। यानी की अगर कोई मुस्लिम शरणार्थी है तो उसे नागरिकता नहीं देंगे और हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी, ईसाई हुआ तो नागरिकता दे दी जाएगी। इसी मुद्दे को ले कर विपक्षी पार्टियों का कहना है कि ये बिल मुसलमानों के खिलाफ है जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन कर रहा है। बस यही इस बिल का विवादास्पद पहलू है।
नागरिकता संशोधन बिल vs नेशनल रजिस्टर सिटिजन
नागरिकता संशोधन बिल के सामने आने से एक ये बहस भी शुरू हो गई है कि ये बिल एनआरसी का उल्ट है। जहां पर नागरिकता संशोधन बिल 2019 के तहत प्रवासियों को भारतीय नागरिकता दी जा रही है तो वहीं नेशनल रजिस्टर सिटिजन के तहत भारत में अवैध रूप से रहने वाले प्रवासियों को वापिस भेजने की बात है। एनआरसी के जरिए 19 जुलाई 1948 के बाद भारत में प्रवेश करने वाले अवैध निवासियों की पहचान कर उन्हें देश से बाहर करने का प्रावधान है।
कौन साथ, कौन खिलाफ?
नागरिकता संशोधन बिल 2019 पर कांग्रेस मोदी सरकार विरोध में खड़ी है। राहुल गांधी का कहना है कि धर्म के आधार पर किसी को नागरिकता नहीं दी जा सकती है। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा है कि यह बिल समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है, जिसका हक आर्टिकल 14 के तहत मिला हुआ है। वहीं ओवैसी का कहना है कि ये बिल भारत को इजराइल बना देगा। वहीं दूसरी ओर शिवसेना साथ और दूरी का खेल खेल रही है लोकसभा में वो साथ नजर आई लेकिन राज्यसभा के लिए दूरी बना ली। जेडीयू और बीजेडी ने पहले विरोध किया था, लेकिन बाद में समर्थन में आ गए। वहीं एआईएडीएमके और टीआरएस ने भी इस बिल का समर्थन किया है। भाजपा की दो अन्य सहयोगी शिरोमणि अकाली दल और एलजेपी ने भी इस बिल का समर्थन किया है। टीएमसी ने इसका विरोध किया है।
मोदी सरकार पर आरोप लगाया जा रहा है कि वो धर्म के आधार पर देश में भेदभाव कर रही है। आरोप है कि नागरिकता संशोधन बिल 2019 के जरिए मोदी सरकार उन हिंदुओं को भारत की नागरिकता देना चाहती है जो अवैध रूप से देश में आए थे और एनआरसी से बाहर हो गए हैं। तो वहीं दूसरी ओर, मुस्लिम लोगों को देश से वापस जाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं होगा, क्योंकि इस बिल के तहत मुस्लिमों को नागरिकता देने की बात नहीं कही गई है। इसका बहुत बड़ा विरोध नॉर्थ ईस्ट में चल रहा है, जिनका आरोप है कि इन लोगों को नागरिक बना कर भाजपा वहां की संस्कृति को खत्म करना चाहती है और हिंदू वोट मजबूत करना चाहती है।