भारत की राजनीति में जितना महत्व सत्ता पक्ष का है, उतना ही विपक्ष का। सत्ता पक्ष और विपक्ष में हमेशा आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहता है। वर्तमान स्थिति पर भी यदि आप नजर डालें तो दोनों के बीच वाक युद्ध चलता दिख रहा है। ऐसे में एक उस दौर की भी बातें याद आ जाती हैं, जब विपक्ष भी प्रधानमंत्री के साथ खड़ा हो गया था। प्रधानमंत्री की जय के नारे विपक्ष ने भी लगाए थे। उस वक्त भारत की प्रधानमंत्री थीं इंदिरा गांधी। इंदिरा गांधी की जय के नारे से पूरा सदन गूंज उठा था। सत्ता पक्ष और विपक्ष के सदस्यों ने मिलकर इंदिरा गांधी की जय के नारे लगाए थे।
आपको यह जानकर हैरानी जरूर हो रही होगी कि आखिर विपक्ष प्रधानमंत्री की जय के नारे कैसे लगा सकता है। दरअसल, इंदिरा गांधी ने उस वक्त काम ही ऐसा किया था, जिसकी वजह से वे मां दुर्गा के प्रतिरूप के रूप में देश और दुनिया के सामने आई थीं। अमेरिका की बिना परवाह किए उस वक्त प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान में अपनी सेना भेज दी थी। पूर्वी पाकिस्तान को अलग करने को लेकर जो यह लड़ाई चली, उसमें इंदिरा गांधी बिल्कुल भी पीछे नहीं हटीं। अमेरिका ने लाख धमकियां दी, लेकिन इंदिरा गांधी पूरी निडरता के साथ आगे बढ़ती रहीं। अमेरिका की हर चेतावनी को नजरअंदाज किया और दिखा दिया कि भारत की ताकत क्या थी। इंदिरा गांधी के इस कदम से दुनियाभर में भारत का मान बढ़ा था। लड़ाई यह तभी रुकी थी, जब पाकिस्तान दो टुकड़ों में बट गया था और बांग्लादेश नामक एक नए देश का जन्म हो गया था।
बन गया इतिहास
इसके बाद जब लोकसभा की कार्यवाही शुरू हुई थी तो एक अलग ही नजारा यहां देखने को मिला। उस दिन जो हुआ वह भारत की संसद में इतिहास ही बन गया। लोकसभा के सभी सदस्य उठकर खड़े हो गए। उन्होंने टेबल बजाया। उन्होंने हवा में कागज उछाले और जोर-जोर से नारा लगाया ‘जय बांग्ला, जय इंदिरा गांधी।’ यही नहीं, राज्यसभा के सदस्यों ने भी एक साथ खड़े होकर प्रधानमंत्री का अभिवादन किया था।।इंदिरा गांधी को उस वक्त प्रधानमंत्री बने केवल आठ महीने ही हुए थे। जो विपक्ष इंदिरा गांधी की जय के नारे लगा रहा था, उसी विपक्ष को हराकर इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी थीं। बड़ा ही कठिन था यह उनके लिए, क्योंकि कांग्रेस के दो फाड़ हो गए थे। इंदिरा गांधी की स्थिति उस वक्त बेहद कमजोर मानी जा रही थी, लेकिन इंदिरा गांधी ने जो कर दिखाया, उसकी वजह से लोग उन्हें मां दुर्गा की तरह साहसी मानने लगे थे।
पीएम को और अधिकार देने की बात
एक अंग्रेजी अखबार में 18 दिसंबर, 1971 को यह खबर प्रकाशित की गई थी कि डीएमके, जनसंघ, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और कांग्रेस के सभी नेताओं ने मिलकर प्रधानमंत्री की सराहना की है। केवल मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी उस वक्त इस सराहना से दूर रही थी। भारत की ओर से जब पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई 1971 के दिसंबर में शुरू की गई थी तो उस वक्त पूरा विपक्ष सरकार के साथ खड़ा हो गया था। उस वक्त विपक्ष के नेता और जनसंघ के अटल बिहारी वाजपेयी ने तो यहां तक कह दिया था कि प्रधानमंत्री को यदि जरूरत हो तो और भी अधिकार दे दिए जाएं। भारत के इस पूर्व प्रधानमंत्री ने उस वक्त कहा था कि यदि दुश्मन के खिलाफ सरकार को हालात से निपटने के लिए और ताकत की जरूरत है तो हमें प्रधानमंत्री को और अधिकार देने से हिचकना नहीं चाहिए। हम पूरा सहयोग करने के लिए तैयार हैं। बस दुश्मन के खिलाफ प्रधानमंत्री को पूरी जीत हासिल करनी होगी।
चुनाव तक टालने का समर्थन
पाकिस्तान के साथ 13 दिनों तक भारत की लड़ाई चली थी। इस माहौल में विपक्ष पूरी तरह से सरकार के साथ खड़ा रहा। अमेरिका और पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने की बात विपक्ष की ओर से की जाती रही। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के रवैये पर तो लालकृष्ण आडवाणी के साथ जनसंघ के कई नेताओं ने अमेरिकी दूतावास के सामने विरोध-प्रदर्शन तक कर दिया था। उस वक्त यह भी मांग सामने आई थी कि 1971 में जो विधानसभा चुनाव होने हैं, उन्हें टाल दिया जाए। इस बात पर भी जनसंघ के नेता अटल बिहारी वाजपेयी और स्वतंत्रता पार्टी के नेता पीके देव सहमत हो गए थे और कहा था कि इस मुद्दे पर वे प्रधानमंत्री के साथ हैं।
इससे दुखी हुए अटल बिहारी वाजपेयी
वैसे, जब बांग्लादेश नामक एक अलग देश बन गया और पाकिस्तान ने भी बिना किसी शर्त के समर्पण कर दिया तो प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से जब युद्ध विराम की घोषणा की गई तो अटल बिहारी वाजपेयी इससे खुश नहीं थे। उनका मानना था कि पश्चिमी पाकिस्तान तक इस लड़ाई को ले जाना चाहिए था, ताकि पाकिस्तान की आक्रामकता उससे हमेशा के लिए खत्म ही कर दी जाती।
इन्होंने कहा इंदिरा गांधी को दुर्गा
जब युद्ध विराम हो गया था तो उसके बाद सदन में युद्ध पर चर्चा चल रही थी। इस दौरान अटल बिहारी वाजपेयी ने इंदिरा गांधी की तारीफ करते हुए कहा था कि बहस को छोड़िए और इंदिरा गांधी की भूमिका पर बात कीजिए। वह किसी दुर्गा से कम नहीं थीं। इस तरह से उस वक्त विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी लगातार इंदिरा गांधी के साथ खड़े दिखे थे। किसी राष्ट्रीय हित के मुद्दे पर ऐसी एकजुटता का आजकल प्राया अभाव ही देखने को मिलता है।