देश में मंदी छाई हुई है। ये हर देश के लिए चिंतित इंसान को दिख रही है लेकिन सरकार और भक्तों को नहीं दिखती है। उनके हिसाब से देश में सब चंगा सी। हो सकता है कि ये मंदी सरकार को दिख भी रही हो तो भी वो इसे मानने से मना कर दे रही है और बेतुके बयान दे रही है। सरकार उन सब बातों से मना कर देती है जो आम इंसान (भक्तों के अलावा) मानते हों। अब हाल ही में संसद द्वारा पास किए नागरिकता संशोधन एक्ट जिसे लेकर देश का हर वर्ग विरोध कर रहा है, यूवा, छात्र, बुजुर्ग, महिलाएं, सभी धर्म, जाति, तबके के लोग विरोध कर रहे हैं। लेकिन सरकार और भक्तों को नहीं दिख रहा है।
सभी लोग मान रहे हैं कि ये एक्ट खराब है लेकिन सरकार फिर भी इससे मना कर रही है। सरकार का कहना है कि लोग इसका समर्थन कर रहे हैं लेकिन ये समर्थन कहीं पर भी नजर नहीं आ रहा है सिवाय सोशल मीडिया के, बाकी सभी को तो विरोध ही दिख रहा है। सोशल मीडिया पर आईटी सेल और भक्तों के द्वारा इसका समर्थन जरूर किया जा रहा है। लेकिन इन सभी के बीच में मंदी फिर से गायब हो गई है। नागरिकता संशोधन एक्ट के आने से सभी का ध्यान मंदी से हटकर धरने पर चला गया है और लोग समझ ही नहीं पा रहे हैं कि इसकी जरूरत क्या है?
लगता है सरकार की रूचि किसी बढ़ती हुई चीज को कम करने में नहीं है। सरकार जानती है कि ये बात अच्छी नहीं है कि किसी भी बढ़ती चीज को आप रोकें। आखिर बढ़त में ही तो उन्नति है। सरकार चाहती है कि जो कुछ बढ़ रहा है, बढ़ता ही जाये। जैसे मंदी बढ़ रही है तो और बढ़े। महंगाई बढ़ रही है तो और बढ़े। प्याज के दाम अगर घटने लगें तो आलू के दाम उससे पहले ही बढ़ने शुरू हो जायें। बेरोजगारी बढ़ रही है तो और अधिक तेजी से बढे़। छात्रों में जितना असंतोष पहले से है, उससे कहीं ज्यादा बढ़े। छात्र असंतोष पहले बढ़ती फीस के कारण बढ़ रहा था तो अब ये छात्र असंतोष नागरिकता संशोधन एक्ट और एनआरसी के कारण बढ़ रहा है। सरकार को किसी भी चीज को घटाना पसंद नहीं है। इसीलिए यह सरकार किसी भी चीज को, चाहे वो मंदी हो, महंगाई हो, बेरोजगारी हो या फिर असंतोष और आंदोलन हो, उसे घटाने में विश्वास नहीं करती है।
जहां पीछे रह जाने की बात हो, वहां पर भी बढ़त हासिल कर लेने की कला मोदी जी और अमित शाह को बहुत अच्छे से आती है। अब इस नये एक्ट की ही बात करें, लगने को तो ये पीछे ले जाने वाला एक्ट लगता है। जिस ‘टू नेशन थ्योरी’ को अस्वीकार कर हम आगे बढ़ चुके थे, ये एक्ट उस पर वापस लौटने वाला रास्ता है। लेकिन मोदी-शाह को यही ‘टू नेशन थ्योरी’ पसंद है और वो इसी को सही मानते हैं। उन्हें दुख है कि इस ‘टू नेशन थ्योरी’ को जिसे सावरकर ने सबसे पहले रखा, उसे जिन्ना की पैदाइश मान लिया गया है। थ्योरी सावरकर की और बाजी मार गया जिन्ना ये तो गलत है।
खैर बात मंदी की है तो सरकार ने भी अब दबे पांव मंदी को मान लिया है और सरकार मंदी को कम करने के लिए बहुत सारे कदम उठा रही है। जैसे कि नागरिकता संशोधन एक्ट और इसके बाद आएगा नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजन, ये दोनों मिलकर ही हमारे देश को इस मंदी से पार दिलावाएंगे। देश में गलत फहमी फैलाई जा रही है कि ये जो सीएए है, एनआरसी है, ये मुसलमानों के खिलाफ है। अरे भाई, ये किसी के भी खिलाफ नहीं है। ये तो अपने देश को अमीरों का देश बनाने के लिए एक तरकीब है। ये एक्ट तो गरीबों को देश से भगाने के लिए लाया गया है और ये सीएए और एनआरसी तो देश की उन्नति के लिए, मंदी दूर करने के लिए, भारत को समृद्ध राष्ट्र बनाने के लिए मोदी फार्मूला है।