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राहुल जी 10 दिन बाद भी क्यों मेहनत की, एक ट्वीट ही कर देते!

दिल्ली में हिंसा ने 50 से ज्यादा लोगों की जान ले ली। अब माहौल शांत हैं और लोग अपनी जिंदगी वापिस पटरी पर ला रहे हैं। लेकिन 10 दिनों के बाद एक इंसान को याद आया कि वो मुख्य विपक्षी दल का नेता है और नरेंद्र मोदी के सामने प्रधानमंत्री पद के लिए खड़ा होता है। जी हां ये हमारे अपने राहुल गांधी है। 10 दिलों के बाद वो दंगों वाले इलाकों में जाते हैं और कांग्रेस के कई नेताओं के साथ वहां का जायजा लेते हैं। आखिर राहुल बाबा को याद आ गया है कि उन्हें सरकार से सवाल भी करना है लेकिन एक सवाल तो उन पर भी उठता है कि अब तक वो कहां थे? मुद्दा ये नहीं है कि राहुल गांधी ने क्यों नहीं बोला एक कांग्रेसी नेता होने के नाते वो न बोलते तो समझ आता क्योंकि तमाम नेताओं ने और पार्टी अध्यक्ष तक ने सवाल किए। लेकिन राहुल गांधी खुद को नरेंद्र मोदी का कंपीटिशन बताते हैं।

सवाल तो सोनिया गांधी को अपने बेटे से करना चाहिए

हालांकि सवाल तो सोनिया गांधी से भी पूछा जाना चाहिए कि उन्होंने अमित शाह और अरविंद केजरीवाल से पूछा लेकिन अपने बेटे से भी पूछ लेती कि वो कहां थे? आखिर वो भी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष थे और रह रह कर बात आती है कि दोबारा अध्यक्ष बन सकते हैं। 23 फरवरी की रात से दिल्ली में दंगे हुए और 26 फरवरी को सोनिया गांधी ने प्रेस कांफ्रेंस बुलायी और केंद्र सरकार से सवाल किया कि 72 घंटे तक एक्शन क्यों नहीं लिया गया। प्रेस कांफ्रेंस में सोनिया गांधी ने गृह मंत्री अमित शाह का इस्तीफा भी मांग लिया था।

अगले दिन सोनिया गांधी और कई कांग्रेस के बड़ नेताओं ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को ज्ञापन दिया। सोनिया गांधी के साथ पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी थे। वो दोबारा मीडिया के सामने आए। 24 फरवरी को राहुल गांधी ने ट्विटर पर दिल्ली हिंसा को लेकर एक एक पोस्ट जरूर किया था। वहीं प्रियंका गांधी ने महात्मा गांधी की दुहाई देते हुए शांति की अपील की थी और कहा था कि हिंसा रोकने की जिम्मेदारी हम सबकी है। ट्विटर पर ही राहुल गांधी की अपील भी मिलती जुलती ही रही।

सोनिया गांधी की प्रेस कॉन्फ्रेंस के 7 दिन बाद आए राहुल

सोनिया गांधी की प्रेस कांफ्रेंस और राष्ट्रपति को ज्ञापन देने के करीब हफ्ते भर बाद राहुल गांधी दिल्ली के हिंसा प्रभावित इलाकों में पहुंचे। राहुल गांधी के साथ कांग्रेस नेताओं का एक प्रतिनिधि मंडल भी रहा जिसमें मुकुल वासनिक, कुमारी शैलजा, अधीर रंजन चौधरी, केसी वेणुगोपाल, रणदीप सुरजेवाला, के. सुरेश और गौरव गोगोई शामिल थे। उत्तर पूर्वी दिल्ली के बृजपुरी इलाके में पहुंचे राहुल गांधी ने वो स्कूल भी देखा जो हिंसा के दौरान आगजनी का शिकार हुआ था। स्कूल से बाहर आकर राहुल गांधी ने मीडिया से वही सारी बातें कहीं कि हिंदुस्तान को बांटा और जलाया जा रहा है और हिंसा-नफरत तरक्की के दुश्मन हैं।

कांग्रेस ने संसद में भी दिल्ली हिंसा का मुद्दा उठाया है और राहुल गांधी भी संसद परिसर के बाहर हुए कांग्रेस के विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए थे। विरोध प्रदर्शन के दौरान भी गृह मंत्री अमित शाह के इस्तीफे की मांग की गई। अब 10 दिन बाद जब राहुल गांधी दिल्ली की सड़कों पर उतरे हैं तो क्या सोनिया गांधी वाले सवाल उनका पीछा नहीं करेंगे? ये ठीक है कि दिल्ली में दंगा रोकने की पहली जिम्मेदारी गृह मंत्री होने के नाते अमित शाह की बनती थी और मुख्यमंत्री होने की वजह से अरविंद केजरीवाल की बनती थी, लेकिन क्या राहुल गांधी की ऐसी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती थी?

सुरजेवाला ही पढ़ देता आपका बयान

जो बातें राहुल गांधी ने दिल्ली के दंगा प्रभावित इलाकों में जाकर कही है, वैसा बयान तो वो भी सोनिया गांधी की तरह एक प्रेस कांफ्रेंस बुला कर जारी कर सकते थे। या फिर उनकी अनुपस्थिति में कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ही पढ़ कर सुना सकते थे और कुछ नहीं तो राहुल गांधी ट्विटर पर ही बयान पोस्ट कर देते। दिल्ली हिंसा पर महज एक ट्वीट के बाद राहुल गांधी की तरफ से ट्विटर पर भी कोई अपील या बयान नहीं आया। हां, हाई कोर्ट के जज के तबादले या जन्म दिन की बधाइयों के साथ साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सोशल मीडिया छोड़ने वाले ट्वीट पर भी रिएक्ट जरूर किया है।