TaazaTadka

अपने साथ सायनाइड का कैप्सूल लेकर क्यों चलती थी UP की ये CM?

आजादी के बाद कांग्रेस में एक वक्त ऐसा भी आया था, जब पंडित जवाहरलाल नेहरू पार्टी के अंदर कुछ नेताओं के लगातार बढ़ते हुए कद से बहुत ही परेशान रहने लगे थे। उत्तर प्रदेश में चंद्रभानु गुप्ता नामक एक नेता का बढ़ता हुआ कद भी नेहरू को बहुत ही बेचैन कर रहा था। ऐसे में पार्टी वर्ष 1963 में कामराज प्लान लेकर सामने आई थी। इसके मुताबिक वैसे नेता जो पुराने हो गए थे, उन्हें पद छोड़ने के लिए कहा गया था। इसके पीछे तर्क यह दिया गया था कि इससे राज्य में पार्टी को मजबूती मिलेगी। इसके बाद चंद्रभानु गुप्ता तो हट गए, मगर अब सवाल यह खड़ा हो गया कि आखिर उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनेगा कौन? चौधरी चरण सिंह, हेमवती नंदन बहुगुणा, कमलापति त्रिपाठी जैसे बड़े-बड़े दावेदार इस पद के लिए मौजूद थे। खुद चंद्रभानु का ग्रुप भी इस वक्त बेहद क्रोधित नजर आ रहा था।

ऐसे में उस वक्त कांग्रेस ने एक गजब का फैसला लिया। उसने एक महिला को मुख्यमंत्री बना दिया। उस वक्त तक देश में किसी भी राज्य में कोई महिला मुख्यमंत्री नहीं बनी थी। जिसे कांग्रेस ने मुख्यमंत्री बनाया, वह थीं सुचेता कृपलानी। सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश की रहने वाली भी नहीं थीं। वह एक बंगाली थीं। दिल्ली में उनकी पढ़ाई हुई थी। यूपी से किसी तरह का कोई नाता नहीं होने के बावजूद कांग्रेस ने उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया था। कुछ समय के लिए तो कांग्रेस के इस कदम से विद्रोही शांत हो ही गए थे।

सुचेता कृपलानी के बारे में

सुचेता कृपलानी जिनके पिताजी एक डॉक्टर थे और जिनकी पढ़ाई इंद्रप्रस्थ और सेंट स्टीफेंस कॉलेज से हुई, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में लेक्चरर के तौर पर वे सेवा दे रही थीं। इसी दौरान जेबी कृपलानी से जब उनकी शादी हो गई तो उन्होंने अपना नाम बदलकर सुचेता कृपलानी कर लिया था। आजादी की लड़ाई में भी सुचेता कृपलानी का अहम योगदान रहा था। कांग्रेस में शामिल होने के बाद उन्होंने उषा मेहता और अरुणा आसफ अली के साथ भारत छोड़ो आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। बताया जाता है कि जब नोआखाली में आजादी के दौरान दंगे हो गए थे, तब महात्मा गांधी के साथ जो महिला वहां गई थी, वह सुचेता कृपलानी ही थी। संविधान सभा में भी महिलाओं के प्रतिनिधित्व का जिम्मा सुचेता कृपलानी ने ही संभाला था। महिलाओं के अधिकारों को लेकर वे इस दौरान बेहद मुखर दिख रही थीं। गला भी इनका बहुत ही मधुर था और नेहरू के ट्रिस्ट विद डेस्टिनी स्पीच से पहले वंदे मातरम सुचिता कृपलानी ने ही गाया था।

पहली महिला मुख्यमंत्री

आजादी के बाद हालांकि कांग्रेस में बहुत कुछ बदलना शुरू हो गया। बहुत से लोगों को नेहरू के तौर तरीके पसंद नहीं आने लगे। उन्होंने अपनी पार्टियां बनानी शुरू कर दी। सुचेता कृपलानी के प्रति आचार्य जीबी कृपलानी भी उनमें से एक थे। उन्होंने भी कृषक मजदूर प्रजा पार्टी के नाम से एक अपना राजनीतिक दल बना दिया था। सुचेता कृपलानी ने 1952 का लोकसभा चुनाव लड़ा था और नई दिल्ली से जीत भी गई थीं। बाद में सुचेता की फिर से घर वापसी हुई और कांग्रेस ने 1957 में सुचेता कृपलानी को अपना उम्मीदवार बनाया। इस बार फिर से सुचेता कृपलानी जीत गईं। वर्ष 1962 में बस्ती से नेहरू ने सुचेता कृपलानी को विधानसभा चुनाव लड़ाया। इसमें वे जीत भी गईं। वर्ष 1963 में वे भारत के सबसे बड़े राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री के तौर पर भी सामने आईं।

वो 62 दिनों की हड़ताल

एक मुख्यमंत्री के तौर पर सुचेता कृपलानी अच्छी तरह से अपना शासन चला रही थीं। उसी दौरान एक बड़ी घटना घट गई। वेतन बढ़ाने के लिए सरकारी कर्मचारियों की उत्तर प्रदेश में एक बड़ी हड़ताल हो गई। यह हड़ताल 62 दिनों तक चली थी। इसके बावजूद सुचेता कृपलानी पीछे नहीं हटीं। उन्होंने वेतन बढ़ाया ही नहीं। बाद में उन्होंने 1971 में राजनीति को अलविदा कह दिया। कुछ वक्त तक तो उन्होंने सामान्य जीवन व्यतीत किया, मगर 1974 में उन्होंने इस संसार को अलविदा कह दिया।

जब पहुंचीं नोआखली

सुचेता कृपलानी के बारे में एक ऐसी बात एक किताब में लिखी गई है, जिसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते होंगे। जी हां, ग्रेट वुमन ऑफ मॉडर्न इंडिया नाम की एक सीरीज में सुचेता कृपलानी के बारे में यह बताया गया है कि जब आजादी के बाद दंगों के वक्त वे महात्मा गांधी के नोखाअली में घूम रही थी तो उस वक्त उनके पास साइनाइड का कैप्सूल भी हुआ करता था। वह इसलिए कि उस वक्त वहां के हालात इतने खराब थे कि महिलाओं के साथ कुछ भी घटित हो सकता था। सुचेता कृपलानी के बारे में ये बातें यदि आपको अच्छी लगे तो इसे अपने दोस्तों को भी बताना ना भूलें।