महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019 की तैयारियां पूरे जोर-शोर से चल रही है, हर राजनीतिक दल अपनी पूरी ताकत लगा रहा है। महाराष्ट्र में राजनीति अपने चरम पर है। ये चुनाव कई मायनों में और कई लोगों के लिए अहम है, चाहे फिर वो नरेंद्र मोदी के लिए हो, उद्धव ठाकरे हो, राहुल गांधी-सोनिया गांधी हो या फिर शरद पवार हो। इन चुनावों से बहुत से दलों, नेताओं का चुनावी भविष्य तय होना है। पहले ही नरेंद्र मोदी ने कई नेताओं को चुनावी सफर खत्म कर दिया है, अब बचे हुए नेता जीत को तरस रहे हैं और अपनी पारी को संभालने में लगे हैं। इन्हीं नेताओं में उद्धव ठाकरे भी शामिल है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019 में भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना के गठबंधन में उद्धव ठाकरे छोटा भाई बन कर सामने आए हैं।
क्यों ठाकरे परिवार छोटा भाई बनने को हुआ तैयार
ऐसा पहली बार हो रहा है कि महाराष्ट्र में कोई चुनाव हो रहा है, जिसमें ठाकरे परिवार खुद भी पहली बार लड़ रहा है। लेकिन शिवसेना गठबंधन में छोटा भाई बन कर संतोष कर रहा है। ऐसा पहली बार हो रहा है कि विधानसभा चुनाव में शिवसेना भारतीय जनता पार्टी से कम सीटों पर चुनाव लड़ रही है। हमेशा से महाराष्ट्र की राजनीति पर पकड़ बनाए रखने वाली शिवसेना काफी लाचाड़ सी नजर आ रही है और मजबूरी में दबे सुर में भाजपा की बात को माने जा रही है।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019 में भाजपा-शिवसेना गठबंधन में उद्धव ठाकरे छोटा भाई बनने की बात पर राजी हो गए हैं, क्योंकि वो इस बात को जानते हैं कि अगर उन्हें राजनीति में बने रहना है तो इस वक्त भारतीय जनता पार्टी की बात माननी ही होगी। कट्टर हिंदुत्व की राजनीति करने वाली शिवसेना को ये मालूम हैं कि उसके लिए कांग्रेस और एनसीपी में दरवाजे बंद हैं, राज ठाकरे के साथ भी उनका कुछ नहीं होने वाला है। इसलिए ये उनकी मजबूरी ही है कि वो भारतीय जनता पार्टी की बात मान रहे हैं।
क्या है गणित
भारतीय जनता पार्टी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019 में 164 सीटों पर और शिवसेना 124 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली है। 288 सीटों की महाराष्ट्र विधानसभा में अब भाजपा का पलड़ा शिवसेना की तुलना में भारी है। आपको बता दें कि शिवसेना की स्थापना 1966 में हुई थी और इस दल ने 1989 में गठबंधन करना शुरू किया था और हमेशा से ही भारतीय जनता पार्टी से अधिक सीटों पर ही चुनाव लड़ी है। इन दोनों दलों के गठबंधन की पहली सरकार साल 1995 में बनी जब शिव सैनिक मनोहर जोशी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। जिसके बाद साल 2014 में दोनों ने अपने रास्ते अलग-अलग कर लिए थे। उस चुनाव में भाजपा को 122 सीटें मिली थी और वो सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई थी और शिवसेना को सिर्फ 63 सीटें ही मिलीं थी। लेकिन शिवसेना ने भाजपा को ही समर्थन दे दिया और सरकार बनाने में मदद की। इसी वजह से इस बार गठबंधन में उद्धव ठाकरे छोटा भाई बनकर ही संतुष्ट है।
पहली बार आदित्य ठाकरे हैं मैदान में
साल 2012 में पार्टी के संस्थापक बाल ठाकरे की मौत के बाद उनके बेटे उद्धव ठाकरे ने पार्टी की कमान संभाली थी। इस बार वो अपने बड़े बेटे आदित्य ठाकरे को चुनाव लड़ने के लिए सामने ला रहे हैं, ताकि जनता उनके साथ जुड़ सके। शिवसेना प्रमुख पहले की तरह महाराष्ट्र में घूमते हुए नहीं दिख रहे हैं, लेकिन आदित्य ठाकरे राज्य में जगह-जगह पर दौरा करते हुए नजर आ रहे हैं। हालांकि अभी उन्हें अपना लोहा मनवाना बाकी है। वो अपने परिवार से पहले शख्स होंगे, जो दक्षिण मुंबई की वर्ली सीट से चुनाव लड़ेंगे। इसी वजह से गठबंधन में उद्धव ठाकरे छोटा भाई बन कर रह गए हैं, क्योंकि वो इस समय कोई रिस्क नहीं लेना चाहते हैं।
पिछली बार 2014 में दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन सिर्फ 3 सीटों के चलते टूटा था। भाजपा की ओर से शिवसेना को 148 सीटें दी जा रही थीं, लेकिन शिवसेना 151 पर अड़ी हुई थी। इस बार उद्धव ठाकरे ये जानते थे कि भाजपा उन्हें 135 सीटें देने के मूड में नहीं है, जो संजय राऊत जैसे उनके साथी चाहते थे। और भारतीय जनता पार्टी इस वक्त अपने पूरे फॉर्म में हैं, ऐसे में उनके साथ गठबंधन न कर के खतरा लेना शिवसेना के लिए बेवकूफी हो सकती थी। जिसे उद्धव ठाकरे ने समझा और वो भारतीय जनता पार्टी के सामने झुक गए।