हमारे देश में सुरक्षा करने के लिए एक तरफ सेना है, जो बॉर्डर पर खड़ी है और दुश्मनों को पीछे धकेल रही है। वहीं दूसरी तरफ देश के अंदर सुरक्षा की जिम्मेदारी लिए पुलिस खड़ी है। जो कानून-व्यवस्था का ख्याल रखती है। ये दोनों ही अपना काम रोजाना करते हैं, लेकिन दोनों के सम्मान में बहुत अलग रवैया है। सेना के जवान को देखते ही खुद-ब-खुद उन्हें सैल्यूट करने का मन हो जाता है, जबकि पुलिस वालों को देखकर मन में कुछ ऐसा खास सम्मान नहीं आता है। हम पुलिस वालों से दूरी बनाते हैं और अक्सर सोचते हैं कि इनसे दर ही रहे। लेकिन इन दिनों दिल्ली की सड़कों पर एक अलग ही नजारा दिख रहा है, पुलिस वाले अपनी सुरक्षा की मांग कर रहे हैं। पुलिसवालों की पिटाई हो रही है और सब खामोश है।
दरअसल, पहले पुलिसवालों ने वकीलों को पीटा और फिर वकीलों ने पुलिसवालों को पीटना शुरु कर दिया। दोनों ने एक दूसरे को पीटा और अब दोनों ही आंदोलन कर सड़कों पर न्याय की मांग कर रहे हैं। पुलिस और वकीलों की ये जंग लंबी हो चुकी है।
ये झगड़ा तीस हजारी कोर्ट की पार्किंग से शुरु हुआ था और मीडिया की सुर्खियों से होते हुए अब सड़कों पर पहुंच गया है। जहां पर पुलिस और वकील का झगड़ा शुरु हुआ। मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर कई वीडियो फैले जिसमें वकीलों की पिटाई और लॉकअप में घुसकर पुलिसवालों को पीटते वकील, फिर एक बाइक पर पुलिस वाले को पीटा। इस वीडियो को देख काफी बुरा लगा, क्योंकि एक कानून का रक्षक है और एक कानून का पंडित। लेकिन दोनों ने ही कानून अपने हाथ में ले लिया है। पुलिस का काम कानून व्यवस्था बनाए रखना है, तो वहीं वकीलों का काम लोगों को न्याय दिलाना है। लेकिन जिस तरह की हरकतें दोनों ने की है वो बेहद शर्मनाक है।
पुलिसवालों को इस तरह पिटते हुए देख कर वकीलों पर गुस्सा काफी आया, क्योंकि वो जिस वर्दी में होते हैं उसकी एक वक्त पर काफी अहमियत हुआ करती थी। लेकिन क्या आपको पुलिसवालों पर दया आ रही है। क्या ऐसा अगर किसी आर्मी के जवान के साथ होता तो यही रवैया होता हमारा? शायद नहीं इसके पीछे की वजह क्या है? हम दो रक्षकों के साथ ऐसा सौतेला व्यवहार क्यों कर रहे हैं? इसके पीछे की वजह भी पुलिस खुद ही है। पुलिस ने अपनी ये छवि खुद ही बनाई हुई है। जनता से सीधे मुंह बात तक नहीं करने वाले पुलिसवालों पर आखिर जनता क्यों दया दिखाएगी?
अक्सर देखा होगा कि कहा जाता है कि पुलिस आपकी दोस्त है, लेकिन क्या पुलिस वालों ने आपको अपना दोस्त माना है। पुलिस वालों की छवि पैसा खाने वाली, घूसखोर, जनता को परेशान करने वालों की है। तो ऐसे में जनता क्यों उनके लिए आवाज उठाएगी। हां सबको गुस्सा आया क्योंकि ऐसा किसी के साथ भी होता तो आता, पुलिस के लिए कुछ खास नहीं था।
अक्सर आपने एक लाइन सुनी होगी, जानता है मेरा बाप कौन है? ये सबसे ज्यादा लोगों ने पुलिस वालों के लिए ही इस्तेमाल की है। कभी किसी के चाचा विधायक निकल आते हैं, तो पिताजी को फोन मिला कर धमकी दिलवाने वाली जनता के सामने पुलिस कुछ नहीं कर पाती लेकिन अगर एक गरीब इंसान हो तो उससे किसी भी तरह से धमका कर और परेशान कर के कुछ पैसा एंठने का काम करती है। कई बार आम जनता को बेरहमी से पीटने की वीडियो भी वायरल हुई है। तो ऐसे में जनता खामोश ही रहेगी। किसी को भी पुलिस वालों पर दया नहीं आएगी।
इसके अलावा जब आप अपनी कोई शिकायत लेकर भी पुलिस के पास जाते हैं, तो आसानी से शिकायत दर्ज नहीं होती है। कई चक्कर, कई सवाल, कई घंटों का इंतजार करने के बाद अगर आप थोड़ा कठोर बनेंगे तभी आपकी शिकायत लिखी जाएगी, खास कर छोटे मामलों में। कई बार तो वो ऐसे ही आपको भगा भी देते हैं। उसके बाद भी पुलिसवालों पर दया नहीं आएगी।
इसका ये मतलब बिल्कुल नहीं है कि वकील अपनी जगह पर सही थे। लेकिन पुलिस से आम जनता का पाला रोज ही पड़ता है, वकीलों से जनता का नाता कभी-कभी ही पड़ता है। ऐसे में पुलिस के बर्ताव से लगभग हर कोई परिचित होता है। जिस वजह से लोग समझते हैं कि पुलिस वाले कैसे होते हैं। पुलिस की धमक और रौब लोगों में डर पैदा करती है। जिस वजह से लोग दूर रहते हैं।