जिस दिन से केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 समाप्त किए जाने की घोषणा की है, उस दिन से देश के कई अन्य राज्यों की कहानियां भी सामने आने लगी है, जहां जाने के लिए भारत के दूसरे राज्यों के नागरिकों को वीजा लेना पडता है. कई लोगों को ऐसा लगता है कि अपने देश के ही किसी हिस्से में घूमने और जाने के लिए वीजा. क्या ये बात सही है या फिर ये सोशल मीडिया के झूठ तंत्र का ही एक हिस्सा है. आइए, आज हम आपको अवगत कराते हैं इन तथ्यों से.
भारतीय संविधान के अनुसार भारत का कोई भी नागरिक भारत के किसी भी राज्य में निवास करने और वहां रोजगार करने की पूरी पात्रता रखता है लेकिन कुछ विशेष शर्तों में भारत के उत्तर पूर्वी हिस्से के तीन राज्य मिजोरम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश में बसने के लिए वहां की राज्य सरकार से अनुमति प्राप्त करनी पड़ती है, जो कि एक प्रकार का वीजा होता है. इसे आंतरिक वीजा भी कहते हैं. इस आंतरिक वीजा को कानून के शब्दों में इनर लाइन परमिट के नाम से जाना जाता है.
यह इनर लाइन परमिट ठीक वैसे ही होता है जैसे कि हमें विदेश जाने के लिए वीजा ऑन अराइवल लेना पड़ता है. यह उस देश के शासन की अनुमति होती है कि हम उनके देश में जा सकते हैं. ठीक ऐसा ही इन तीन उत्तर पूर्व के राज्यों में भी लागू होता है.
इनर लाइन परमिट ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाया हुआ कानून है.
यह एक प्रकार का आधिकारिक यात्रा दस्तावेज है जो एक निश्चित समय के लिए एक संरक्षित क्षेत्र में अपने ही देश के नागरिकों को कुछ दिनों के लिए यात्रा की इजाजत देता है. इनर लाइन परमिट पर्यटन और नौकरी दोनों के लिए जारी किया जाता है.
ब्रिटिश शासन के खात्मे के बाद भारत की सरकारों ने इस परमिट सिस्टम को जारी रखा. इसके पीछे यह तर्क दिया जाता है कि चूंकि ये सभी राज्य सीमावर्ती राज्य हैं एवं अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे हुए हैं. इस वजह से यह राज्य बेहद संवेदनशील होते हैं.
इनर लाइन परमिट सिस्टम के पीछे एक तर्क यह भी दिया जाता है कि इन राज्यों की अपनी अलग सभ्यता, संस्कृति, बोलचाल और रहन सहन है. बाहरी लोगों के बसने की वजह से इनकी संस्कृति के विलुप्त होने का खतरा है. इनर लाइन परमिट सिस्टम की वजह से इनके संरक्षण का तर्क दिया जाता है.
बीच बीच में यह मांग होती रही कि अपने ही देश में एक भारतीय नागरिक का वीजा लेने का यह कानून सही नहीं है. अब इसे समाप्त किए जाने की जरुरत है लेकिन उत्तर पूर्व राज्यों के नेताओं और क्षेत्रीय दलों ने इसका विरोध किया. पहले कश्मीर जाने के लिए भी इनर लाइन परमिट की व्यवस्था दी लेकिन पंडित जवाहर लाल नेहरु की सरकार इस सिस्टम को समाप्त कर दिया. वहीं पूर्वात्तर राज्यों के विरोध के बावजूद वहां इस व्यवस्था को जारी रखा गया.