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क्यों लगता है कि यूपी में मोदी से बढ़े हो गए हैं योगी आदित्यनाथ?

मुख्यमंत्री बन जाने के बाद भी योगी आदित्यनाथ विवादों में घिरे रहते हैं। कभी अपने फैसलों और फरमानों को लेकर तो कभी बयानबाजी के लिए, लेकिन अब वो पहली बार 4 सालों में अपनी नाकामियों के लिए भी सबके निशाने पर आ गए हैं। राजनीतिक विरोधियों को अगर एक तरफ भी कर दें, तो भी योगी आदित्यनाथ के कैबिनेट साथी ही उत्तर प्रदेश में Covid 19 महामारी के दौरान खराब व्यवस्था और अफसरों के रवैये पर सवाल उठाते नजर आए। नतीजा ये हुआ कि दिल्ली से संघ और भाजपा दोनों के नेताओं ने लखनऊ पहुंच कर Uttar Pradesh CM Yogi Adityanath के चार साल के कामकाज को लेकर पहली बार अंदरूनी फीडबैक लिया है।

फीडबैक में क्या मिला ये तो मालूम नहीं चल सका है, लेकिन ये बात साफ होने लगी है कि कुछ खेमों में धधकती आग का जो धुआं रह रह कर निकलने लगा था, उसे मिल जुल कर बुझाने की पूरी कोशिश हुई है और काफी हद तक कामयाबी भी मिली है। एक बात और भी साफ हो चुकी है कि भारतीय जनता पार्टी के अंदर फिलहाल कम से कम उत्तर प्रदेश के अंदर तो कोई योगी आदित्यनाथ को पसंद करे या न करे, लेकिन नजरअंदाज नहीं कर सकता है। शायद ये काम तो अब मोदी और शाह की जोड़ी भी नहीं कर सकती है। और देखा जाए तो उत्तर प्रदेश के आगामी चुनाव (Uttar Pradesh Election 2022) के हिसाब से यही Bhartiya Janta Party के लिए सही भी है। 

संघ और भाजपा के नेताओं ने की मुलाकातें

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की तरफ से फीडबैक लेने के लिए सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले और भाजपा की तरफ से संगठन महासचिव बीएल संतोष के साथ उपाध्यक्ष और यूपी प्रभारी राधामोहन सिंह भी लखनऊ में कई दिनों तक बैठे रहे। दत्तात्रेय होसबले ने जहां 50 से ज्यादा संघ के लोगों से मुलाकात और कइयों से फोन पर बात की, तो वहीं बीएल संतोष और राधामोहन सिंह ने दोनों डिप्टी सीएम केशव मौर्य और दिनेश शर्मा सहित 15 मंत्रियों से भी विस्तार से बातचीत की। योगी आदित्यनाथ सरकार के कोरोना संकट के बीच कामकाज को लेकर पत्र लिखने वाले नेताओं से भी संपर्क किया और उनसे भी बात की।

एक तरफ ये सब चल रहा था और दूसरी तरफ योगी आदित्यनाथ अपने कामकाज में लगे थे। बीएल संतोष से तो उनकी भेंट भी हुई, लेकिन दत्तात्रेय होसबले तो बगैर मिले ही लौट गये क्योंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लखनऊ से बाहर थे। योगी आदित्यनाथ की तारीफ में बीएल संतोष का ट्वीट आने के बाद बहुत सारी चर्चाओं पर तो विराम लग ही गया था। अब मीडिया में खबरें देने वाले सूत्रों ने भी साफ कर दिया है कि भाजपा नेतृत्व अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले किसी बड़े बदलाव का जोखिम नहीं मोल लेने जा रहा है। हां मामूली फेरबदल तो होते ही रहते हैं, ये मामूली फेरबदल की कवायद भाजपा MLC Arvind Sharma के इर्द गिर्द घूम रही है।

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संघ सरकार्यवाह बैरंग क्यों लौट गये

योगी आदित्यनाथ को गोरक्षपीठ की गद्दी के साथ ही गोरखपुर संसदीय सीट की विरासत भी मिल गयी थी और तभी से वो अपनी शर्तों पर राजनीति करते आये हैं। ये ठीक है कि 5 बार सांसद रहने के बावजूद भाजपा नेतृत्व या संघ में किसी ने योगी आदित्यनाथ को मोदी कैबिनेट में राज्य मंत्री के लायक भी नहीं समझा, लेकिन जब उनका मुख्यमंत्री बनने का मन हुआ तो कोई रोक पाने की स्थिति में भी नहीं रहा था। ऐसा भी नहीं कि योगी आदित्यनाथ के यूपी के मुख्यमंत्री बनने की बात साल 2017 के विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद शुरू हुई, पहले भी संघ की बैठकों में ऐसी चर्चाएं हो चुकी थीं और गोरखपुर क्षेत्र में हुई ऐसी ही एक मीटिंग में तो करीब करीब आम सहमति ही बन चुकी थी।

ये भी सच है कि योगी आदित्यनाथ जिस तरीके से अपनी जिद पर अड़ियल बन जाते रहे हैं, ये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी सुहाता नहीं था। संघ को भी मालूम था कि योगी आदित्यनाथ ने हिंदू युवा वाहिनी सिर्फ अपना जनाधार बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि बाजपा और संघ के सामने अपनी ताकत का अहसास कराने के लिए बनाई थी। साल 2002 में ही योगी आदित्यनाथ ने हिंदू युवा वाहिनी बनाई थी और विधानसभा चुनाव में ये भी जता दिया कि वो क्या चीज हैं।

दरअसल साल 2002 के विधानसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ के विरोध के बावजूद भाजपा ने शिवप्रताप शुक्ला को ही गोरखपुर से अपना अधिकृत उम्मीदवार बनाया, लेकिन योगी आदित्यनाथ ने अखिल भारत हिंदू महासभा की तरफ से राधा मोहन दास अग्रवाल को मैदान में उतार दिया। जम कर चुनाव प्रचार किया और भाजपा उम्मीदवार शिवप्रताप शुक्ला हार गए थे। साल 2017 के यूपी चुनाव से पहले भाजपा ने इलाके में ब्राह्मणों की नाराजगी से बचने के लिए शिवप्रताप शुक्ला को राज्य सभा भेजा और Uttar Pradesh का वित्त राज्य मंत्री भी बनाया था।

अभी भी वैसी ही ताकत है योगी आदित्यनाथ की

हालिया जोरआजमाइश में भी योगी आदित्यनाथ ने फिर से साबित कर दिया है कि उनकी ताकत अब भी वैसे ही बरकरार है और इसे महज एक उदाहरण से समझा जा सकता है। दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से गहन विचार विमर्श के बाद संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले लखनऊ पहुंचे तो बात और मुलाकातों का सिलसिला भी शुरू हो गया।

मीटिंग में भाजपा के संगठन मंत्री सुनील बंसल भी कई नेताओं के साथ शामिल हुए। योगी आदित्यनाथ को ये बात बहुत बुरी लगी कि उनको मीटिंग में नहीं बुलाया गया। बुलाया तो यूपी भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को भी नहीं गया था, लेकिन वो शांत रहे। योगी आदित्यनाथ फिर सोनभद्र के दौरे पर निकल गये और दत्तात्रेय होसबले लखनऊ में रुक कर संघ के नेताओं से संपर्क और फीडबैक लेते रहे। योगी आदित्यनाथ का दत्तात्रेय होसबले इंतजार करते रहे लेकिन वो लखनऊ नहीं लौटे और सोनभद्र से मिर्जापुर चले गए और फिर वहां से गोरखपुर रवाना हो गए।

कोई और भाजपा मुख्यमंत्री नहीं कर सकता ऐसा काम

अगर संघ और भाजपा के रिश्तों को ध्यान से देखें तो ये कोई मामूली वाकया नहीं है। भाजपा के किसी भी मौजूदा मुख्यमंत्री की इतनी हिम्मत नहीं है कि वो संघ के सीनियर पदाधिकारी को ऐसे नजरअंदाज करे। दत्तात्रेय होसबले तो एक तरह से प्रशासिनक प्रमुख हैं औप सरसंघचालक का पद तो अभिभावक जैसा और दार्शनिक तरीके का होता है। सरसंघचालक अभी मोहन भागवत हैं और यूपी को लेकर अभी उनके साथ भी एक मीटिंग होनी है।

तो अरविंद शर्मा को जो मिलेगा वो योगी की कृपा से

Ex- IAS Arvind Sharma भाजपा में  जाने के बाद जनवरी में ही जब वीआरएस लेकर लखनऊ पहुंचे अरविंद शर्मा विधान परिषद के लिए नामांकन भर रहे थे, यूपी कैबिनेट में उनको कोई बड़ी भूमिका मिलने के कयास लगाये जाने शुरू हो गये थे और कोरोना संकट के बहाने ही सही, जून शुरू हो गया है, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो सका है। न तो अरविंद शर्मा को कैबिनेट में जगह मिली और न ही कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी ही। ये जरूर है कि वाराणसी मॉडल की तर्ज पर कोविड 19 कंट्रोल का काम देख रहे हैं और इस काम में पूर्वांचल के 17 जिलों के जिलाधिकारी उनके परोक्ष रूप से रिपोर्ट भी करते हैं, औपचारिकताओं के तहत रिपोर्ट की एक कॉपी मुख्यमंत्री कार्यालय को भी भेजी जाती है।

सत्ता के गलियारों में हो रही चर्चाओं के जरिये मीडिया में खबरें तो यहां तक आ रही थीं कि अरविंद शर्मा को डिप्टी सीएम भी बनाया जा सकता है, लेकिन अब तो उसके भी संकेत जाते रहे हैं। आखिर ये सब क्यों हो रहा होगा योगी आदित्यनाथ ऐसा कुछ नहीं होने देना चाहते होंगे इसीलिए तो। अब अगर योगी आदित्यनाथ की कोई जिद है कि वो अरविंद शर्मा को ज्यादा कुछ नहीं देने वाले, तो क्या समझा जाये। साफ साफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ जाना ही तो समझा जाएगा।