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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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क्या एक बार फिर बीजेपी का जुगाड़ झारखंड चुनाव में भी काम आएगा?

बीजेपी ने अगर झारखण्ड में राष्ट्रवाद के सहारे एक बार फिर स्थानीय समस्याओं से ध्यान बंटाने की कोशिश की तो नतीजे उलटे पड़ सकते हैं।
Logic Taranjeet 5 November 2019

राजनीतिक दलों को सबसे बड़े सबक चुनावों के जरिये ही मिलते हैं, तभी समझ आता है कि जनता का रुख सत्तापक्ष की तरफ है या फिर विपक्ष की तरफ। जनता के मुद्दे भी उसी वक्त में समझ पाते हैं। अभी हाल ही में संपन्न हुए महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव नतीजों में से बीजेपी और कांग्रेस दोनों को सबक मिला है। ये खासकर भारतीय जनता पार्टी के लिए हैं, क्योंकि बड़ी मुश्किल से ही वो इन दोनों राज्यों में सरकार बना पा रहा है। हरियाणा में तो बीजेपी को चौटाला का साथ मिल गया तो सरकार बन गई, लेकिन महाराष्ट्र में मामला रोज उलझता और सुलझता है।

महाराष्ट्र और हरियाणा है अलर्ट का सिंबल

भारतीय जनता पार्टी ने आम चुनाव के ही तेवर को आगे बढ़ाया था और राष्ट्रवाद का मुद्दा ऊपर रख कर चुनाव के अंत तक टिकी रही। लेकिन इन दोनों राज्यों के चुनाव से ये तो साफ हो गया कि अब इस मुद्दे में ज्यादा जान बची नहीं है। लोगों ने इसे पूरी तरह से खारिज तो नहीं किया पर उतना अपनाया भी नहीं है। महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे बीजेपी नेतृत्व के लिए कई मामलों में अलर्ट हैं – खास तौर पर इसलिए भी क्योंकि जल्द ही बीजेपी अगले विधानसभा चुनाव की तैयारी तेज करने वाली है।

पहले तो झारखंड में भी महाराष्ट्र और हरियाणा के साथ ही चुनाव होने वाले थे, लेकिन अब ये चुनाव नवंबर-दिसंबर में होने वाले हैं। इसके बाद दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, और बिहार जैसे राज्यों में अगले साल चुनाव होने हैं। साल 2015 में हुए दिल्ली और बिहार के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था।

वहीं अगर बात करें झारखंड की तो ये सुनने में आया है कि वहां पर क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर पर बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोधी फैक्टर खड़ा हुआ है। ऐसे में बीजेपी ने अगर राष्ट्रवाद के सहारे एक बार फिर स्थानीय समस्याओं से ध्यान बंटाने की कोशिश की तो नतीजे उलटे पड़ सकते हैं, जैसा कि हरियाणा और महाराष्ट्र में हुआ था। ये ठीक है कि वो निर्दलीयों की मदद से सरकार बनाने में कामयाब हो गई है – लेकिन इस बात का भी ध्यान देना होगा कि एक ही बीजेपा के जुगाड़ हर बार काम नहीं आएगा।

बीजेपी के जुगाड़ हर बार काम नहीं आएंगे

राष्ट्रवाद– हां राष्ट्रवाद एक मुद्दा जरूर है, लेकिन इसकी भी एक सीमा है। ऐसा तो नहीं कह सकते कि लोगों ने इस मुद्दे को खारिज किया है लेकिन ये मेन कोर्स नहीं हो सकते हैं। इन्हें खाने की थाली में सलाद की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं।

370- ये एक गंभीर मुद्दा था, अब नहीं है क्योंकि आपने अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया है। लोकल चुनाव में कश्मीर का मुद्दा हर बार पेट नहीं भरेगा, इस अपने ऐजेंडे में साइड में रखिये। क्योंकि हां ये मुद्दा जरूरी है लेकिन झारखंड के किसान को क्या करना कि आप कश्मीर में क्या करते हैं। ये भी आपकी थाली में बस मसाले का काम करेगा अगर ज्यादा डाल देंगे तो मिर्ची लगेगी।

तोड़-फोड़– बीजेपी के जुगाड़ में सबसे ऊपर ये रहता है, चुनाव के वक्त पर बीजेपी दूसरे दलों के नेताओं को बड़ी तेजी से अपनी तरफ खींच लेती है। बदले में उन्हें बड़े ओहदे भी गिफ्ट करती रहती है। लेकिन ये हर जगह पर नहीं चलता है। इसका जीता जागता उदाहरण सतारा का है। हालांकि महाराष्ट्र में ऐसे 19 उम्मीदवार चुनाव हार गये हैं, जो दूसरे दल से बीजेपी में गए।

डबल रोल- बीजेपी के अध्यक्ष अभी भी अमित शाह ही है, लेकिन वो साथ में गृहमंत्री भी है। इस वजह से उनका आधा दिमाग सरकारी कामकाज में भी लगता है। हां कहने के लिए तो जेपी नड्डा कार्यकारी अध्यक्ष बनाये गये हैं लेकिन बीजेपी के बड़े फैसले तो अभी भी अमित शाह ही लेते हैं। वैसे भी अमित शाह के लिए कोई छोटा फैसला भी नहीं होता है। कहीं अमित शाह का जो ये डबल रोल है वो बीजेपी को भारी तो नहीं पड़ने लगा है? क्योंकि लंबे वक्त से अमित शाह को बीजेपी का चाणक्य कहा जा रहा है और उनके लिए कहते हैं कि वो पाकिस्तान में भी सरकार बनवा देंगे। लेकिन इस बार वो मेन पिक्चर से दूर नजर आ रहे हैं।

Taranjeet

Taranjeet

A writer, poet, artist, anchor and journalist.