पूरे उत्तर भारत में मौसम करवट ले रहा है, अब गर्मी से राहत मिलने लगी है और सर्दी के सवागत के लिए लोग तैयार बैठे हैं। लेकिन उत्तर भारत का एक राज्य ऐसा है जो इस बदलते तापमान में भी तेज तापमान का सामना कर रहा है। जी हां ये राज्य है हरियाणा, यहां पर वैसे तो सर्दी आने वाली है, लेकिन हरियाणा वालों को महसूस थोड़ी लेट होगी। क्योंकि 21 अक्टूबर को हरियाणा के वोटर मतदान करने वाले हैं। हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019 की तारीखों का ऐलान होने के बाद ही यहां पर सियासी पारा बढ़ गया है। जोड़-तोड़, मुद्दे, आरोप-प्रत्यारोप, गठबंधन, बदजुबानी की रेस शुरु हो गई है।
हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019 की तारीखों के एलान के बाद अब सियासी शह और मात का खेल खेला जाएगा। लोकसभा चुनाव 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे के सहारे भारतीय जनता पार्टी ने सूबे की सभी 10 सीटों पर अपना कब्जा जमाया था। ऐसे में लोकसभा चुनाव 2019 के मात्र 4 महीने के अंदर ही ये हरियाणा के लोग एक बार फिर से मतदान करने वाले हैं। भारतीय जनता पार्टी ने साल 2014 के विधानसभा चुनाव में 47 सीटों पर अपना कब्जा किया था, और मनोहर लाल खट्टर को सरकार चलाने का जिम्मा दिया गया था। इस बार जहां एक तरफ नमो अगेन की तर्ज पर मनो अगेन का नारा दिया गया है, तो वहां भारतीय जनता पार्टी ने 75 पार का लक्ष्य भी सामने रख दिया है।
क्या विपक्ष ही बनेगा भारतीय जनता पार्टी का सारथी
ऐस में सवाल यहीं है कि देश की सियासत के बदले माहौल और हरियाणा में विपक्ष के बिखराव से क्या भारतीय जनता पार्टी अपना ये नारा भी लोकसभा चुनाव की तर्ज पर पूरा कर लेगी। हरियाणा में विपक्ष चुनाव के वक्त पूरी तरह से बिखरा हुआ नजर आ रहा है। सूबे में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस में आपसी खींचतान इस हद तक मची हुई है कि तारीखों के एलान से पहले ही पार्टी हाईकमान को कुमारी शैलजा को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपनी पड़ी है। तो वहीं ठीक चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी बगावती तेवर दिखाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के सामने सरेंडर करती थी।
जहां एक तरफ भारतीय जनता पार्टी ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाए जाने का मुद्दा बना लिया है तो वहीं इसके हटने पर मोदी सरकार का समर्थन करने वाले हुड्डा अब कांग्रेस पार्टी की उस समिति के मुखिया है जो उम्मीदवारों की टिकट फाइनल करेगी। हरियाणा की राजनीति के जानकार बताते हैं कि हुड्डा को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाए जाने से पार्टी में गहरा अंसतोष है। चुनाव से ठीक पहले अपने समर्थकों के साथ शक्ति प्रदर्शन करने वाले हुड्डा पर अपने समर्थकों को टिकट दिलाने में तरजीह देने के आरोप टिकट बंटवारे से पहले ही लगने शुरु हो गए है। ऐसे में कांग्रेस जो अंदरुनी खींचतान और उठापटक से जूझ रही है वो भारतीय जनता पार्टी को कितना चुनौती दे पाएगी ये देखना होगा।
चौटाला परिवार का क्या होगा?
इसके अलावा हरियाणा विधानसभा चुनाव में साख बचाने में जुटा चौटाला परिवार हरियाणा में सात बार मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाले परिवार विधानसभा चुनाव में बिखरा हुआ नजर आ रहा है। हरियाणा के पांच बार मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला के जेल में होने और पार्टी के साथ ही परिवार में दो फाड़ होने से चौटाला परिवार के समाने साख का संकट आ खड़ा हुआ है। सूबे में आमतौर पर चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय होता आया है। सूबे के सबसे मजूबत क्षेत्रीय दल ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल चुनावी बिसात पर अच्छी पकड़ रखती आई है, लेकिन इस बार चुनाव में वो कहीं भी लड़ाई में नजर नहीं आ रही है। लोकसभा चुनाव में पार्टी के उम्मीदवारों की बुरी तरह हारने से और इनेलो में दो फाड़ होना इसकी बड़ी वजह है।
ओम प्रकाश चौटाला के पौत्र दुष्यंत चौटाला के अलग होकर जननायक जनशक्ति पार्टी बनाने से पार्टी की धार कमजोर हो गई है और साल 2014 के विधानसभा चुनाव में इडियन नेशनल लोकदल भारतीय जनता पार्टी के बाद दूसरी नबंर की सबसे बड़ी पार्टी के रुप में 19 सीटों पर अपना कब्जा कर के पहुंची थी। लेकिन मौजूदा समय में पार्टी के पास सिर्फ 2 ही विधायक बचे है। लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी में ऐसी भगदड़ मची की पार्टी के एक दर्जन से ज्यादा विधायकों ने चौटाला परिवार का साथ छोड़कर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया। तो वहीं चार विधायक परिवार के ही दूसरी पार्टी जजपा में चले गए। इससे विपक्ष का बिखराव साफ नजर आता है।
विधानसभा चुनाव में अपनी साख की लड़ाई लड़ रहा चौटाला परिवार को इस समय अपने अपने मुखिया ओम प्रकाश चौटाला की कमी बेहद खल रही है जो जेबीटी घोटाले के मामले में जेल की सलाखों के पीछे है। ऐसे में अब सूबे की सबसे शक्तिशाली क्षेत्रीय पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल बीजेपी से लड़ने की बजाय उसके परिवार में ही चाचा-भतीजे की लड़ाई होती दिख रही है।
वहीं अगर बाकी दलों की बात करें तो इस बार बसपा, आम आदमी पार्टी, अकाली दल भी अकेले चुनाव में लड़ने वाले हैं और यहां पर मुकाबला भारतीय जनता के पक्ष में आसानी से जा सकता है, क्योंकि बीजेपी को हरियाणा विधानसभा चुनाव में बस अपने वोट बैंक को बचा कर रखने की जरूरत है। हरियाणा में विपक्ष इतना कमजोर है कि उसका खुद का वोट बैंक ही बंट जाएगा और अगर वो सही जगह पर नहीं पड़ा तो ये सभी दल अपना सिर पकड़ कर बैठने वाले हैं। तो कांग्रेस से लेकर चौटाला तक, मायावती से लेकर अरविंद केजरीवाल तक मैदान में तो सब है, लेकिन सब खाली बस्ते के हैं।