16 दिसंबर, 2012 की वो रात थी जब निर्भया गैंगरेप और हत्या का घिनौना मामला सामने आया था। पहली बार ऐसा लगा था कि पूरा देश अब महिलाओं के लिए आवाज उठा रहा है और देश में महिलाओं के लिए बेहतर कल बनेगा। सड़क से लेकर संसद तक हर तरफ सिर्फ आक्रोश ही आक्रोश था। ब्लात्कारियों के लिए फांसी की सजा की मांग की गई और 7 साल 3 महीने के बाद उन दरिंदों को फांसी पर लटकाया गया। एक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद निर्भया को इंसाफ मिला और बहुत से लोगों की जीत हुई। चाहे वो निर्भया के माता-पिता हो या फिर वो समाजसेवक जो 7 सालों से इस लड़ाई को लड़ रहे थे। लोगों में खुशी का माहौल है, लेकिन क्या इस सजा के बाद भी महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों पर रोक लगेगी?
निर्भया एक पैरा मेडिकल की छात्र थी और उसके साथ 16 दिसंबर की रात को चलती बस में 6 लोगों ने बर्बर्तापूर्ण दुष्कर्म किया था। जनदबाव में उस समय की सरकार ने निर्भया को इलाज के लिए सिंगापुर भेज दिया था लेकिन 29 दिसंबर 2012 को सिंगापुर में निर्भया ने आखिरी सांस ली। इस घटना के 9 महीने बाद निचली अदालत ने 5 दोषियों को फांसी की सजी दी और एक दोषी को नाबालिग होने की वजह से 3 साल के लिए सुधार गृह भेजा गया। इसके बाद पहले हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने भी इस सजा को बरकरार रखा था। ट्रायल के दौरान मुख्य दोषी राम सिंह ने तिहाड़ जेल में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। तब से मामला कोर्ट और न्यायिक प्रक्रिया के बीच संघर्ष कर रहा था। 4 बार तो डेथ वॉरंट भी निकला था, जिसमें से 3 बार दोषियों के वकील ने उसे रद्द करवा दिया था, लेकिन चौथी बार निकले डेथ वॉरंट को वो खत्म नहीं करवा सके और चारों को फांसी पर लटका दिया गया।
दोषियों को सजा मिलने के बाद निर्भया की मां आशा देवी ने खुशी जताई और कहा कि उनका 7 साल का संघर्ष आज पूरा हो गया है। 20 मार्च का दिन निर्भया के नाम, देश की बेटियों के नाम पर याद रखा जाएगा। आज उन्हें इंसाफ मिला है, लेकिन उनकी लड़ाई जारी रहेगी। आशा देवी ने कहा कि 7 साल के बाद हमें इंसाफ मिला है। न्याय जरूर मिलता है, देर से ही सही लेकिन मेरी बेटी के साथ इंसाफ हुआ है। देश के लोगों ने निर्भया के लिए लड़ाई लड़ी है। इस संबंध में निर्भया की वकील ने बताया कि आज हमें इंसाफ मिला है, जिस तरह से दोषियों ने निर्भया के साथ बर्बरता की थी उन्हें फांसी दी जानी जरूरी थी। वकील ने कहा कि देश के सिस्टम में बदलाव होने की जरूरत है, क्योंकि न्याय के लिए अगर सात साल तक इंतजार करना पड़ेगा तो दुख होता है।
वहीं राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने एक संदेश जारी कर कहा कि लगभग साढ़े सात साल बाद निर्भया को इंसाफ मिला है। मैं आशा करती हूं की वो जहां भी होंगी आज उनकी आत्मा को शांति मिलेगी। मैंने पिछले सात-आठ सालों में निर्भया के परिवार को जूझते, निराश होते, रोते देखा है मुझे आशा है कि आज उन्हें भी सांत्वना मिली होगी। रेखा शर्मा ने आगे कहा कि हम हारे नहीं, हम लड़ते रहें। अपराधियों को सबक मिले, उनके मन में डर हो। जो देरी हुई, वो आगे न हो, जिन लूप होल्स का अपराधियों को फायदा मिला, उस पर भविष्य में काम हो और सभी पीड़िताओं को न्याय मिले।
निर्भया के साथ जो इंसाफ हुआ है उससे पूरे देश की आंखें नम हैं लेकिन सच्चाई ये है कि क्या अब इसके बाद सब सही होगा। क्या ये सजा किसी गुनाह का अंत कर देगी। कई बड़े संगठन और समाजिक कार्यकर्ता अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्यवाई का मांग तो करते हैं लेकिन फांसी की सजा को अपराधों की रोकथाम में सार्थक नहीं मानते। इन लोगों का मानना है कि इससे महिलाओं की जान को खतरा हो सकता है। अपराधी पकड़े जाने के डर से महिला को जान से ही मार देगा। हाल-फिलहाल के कई मामलों में ऐसा देखा भी गया है। इन लोगों का मानना है कि जरूरत ऐसे मामलों में तत्काल सुनवाई की है और जल्द से जल्द सजा सुनाने की है। हमारे देश में दोषसिद्धि की दर बेहद कम है। निर्भया मामले के बाद सरकार ने जस्टिस वर्मा कमेटी बनाई जिसने कानून में कई सुधार किए और पॉक्सो एक्ट भी अस्तित्व में आया लेकिन तमाम दावों और वादों के बाद भी फास्ट ट्रैक अदालत और जल्द-जल्द से सजा सुनाए जाने की दर में कोई बदलाव नहीं आया। हां ये सही है कि सख्त सजा से अपराधियों के मन में डर बैठ सकता है लेकिन इससे अपराध पूरी तरह रुक जाएगा इसकी कोई गारंटी नहीं है।