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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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योगी के यूपी का रामराज्य: नफरत की राजनीति के बीच पत्रकारों का वैचारिक हनन

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नई दिल्ली: लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ यानी कि मीडिया जो कि जनता और सरकार के बीच में एक कड़ी का काम करता है| बीजेपी का कहना है कि उनकी सरकार आने के बाद मीडिया कि आजादी बढ़ी है और मीडिया वाले खुलकर बोल और लिख रहे हैं| लेकिन शायद वर्तमान के कुछ हालातों को देखकर हम ये तो कह ही नहीं सकते हैं| यूपी के शामली में एक पत्रकार को सरेआम पीटा जाता है और उसे पेशाव पिलाई जाती है| वही योगी के बारे में कुछ भी लिखने से एक पत्रकार को उसके घर से उठा लिया जाता है| ऐसे में कहाँ जाद हैं मीडिया वाले? बल्कि कहा जाए तो पत्रकारों का वैचारिक हनन बढ़ा है|

ये घटनाएँ दिखाती हैं पत्रकारों कि हालत

सबसे पहले शुरुआत हुई दा वायर के पूर्व पत्रकार प्रशांत कनौजिया से जिन्हें उनके दिल्ली स्थित घर से पुलिस वालो ने उठा लिया| उनका कुसूर था कि उन्होंने सोशल मीडिया में योगी का वो विडियो शेयर किया था जिसमे एक महिला योगी से प्रेम करने कि बात कह रही थी| पत्रकार प्रशांत को सादी वर्दी में बिना किसी चार्ज के पुलिसवाले लखनऊ ले गए| इसके बाद नेशन लाइव चैनल के दो पत्रकार इसी मामले में जेल में डाल दिए जाते हैं| वही यूपी के शामली में एक पत्रकार को जीआरपीएफ पुलिस ने सरेआम पीटा और उसे जेल में बंद कर दिया| इसके बाद उन्हें पेशाव पिलाई गई| ऐसा कृत्य तो कोई किसी मुजरिम के साथ भी नहीं करता जैसा कि एक पत्रकार के साथ किया गया| ऐसे एक नहीं कई मामले हैं जब बीजेपी सरकार वाले राज्यों में पत्रकारों पर हमले हुए हैं| सबसे अधिक मामले यूपी में ही सामने आये हैं|

ये कैसी आजादी

मीडिया जो कि सरकार और लोकतंत्र का एक अभिन्न हिस्सा है| जिसके पास थोड़ी पॉवर होती ही है| उसके साथ ऐसा सलूक किया जा रहा है| माना कि कुछ चंद मीडिया घराने इसे सही मानते हैं और वो बीजेपी सरकार की पैरवी करते हैं लेकिन जमीन में काम करने वाले छोटे अखबारों के लिए काम करने वाले पत्रकारों के साथ आये दिन ये होता है| ये बात भी जगजाहिर है कि मोदी सरकार के आने के बाद देश में फ्रीडम ऑफ़ प्रेस की रैंकिंग गिरी है| पत्रकार लगातार दवाब में काम कर रहे हैं| ऐसे में कुछ एक पत्रकार सरकार से देखे नहीं जा रहे हैं जो सच के लिए काम करते हैं| वो पत्रकार जो एसी कमरों में ना रहकर जमीन में जनता की समस्याएं देखते, समझते और उन्हें छापते हैं|

इतनी नफरत क्यों?

आखिर एक प्रवक्ता के रूप में बीजेपी साथ काम करने वाली मीडिया से इतनी नफरत योगी सरकार को क्यों हो गई हैं| क्या योगी अपने खिलाफ एक शब्द नहीं सुनना चाहते हैं| अगर ऐसा है तो उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं है कि हम एक ऐसे देश में हैं जहाँ मीडिया को विपक्ष का दर्जा दिया गया है| मीडिया हमेशा विपक्ष का काम करने के लिए जाना जाता है|

तो ऐसा हो क्यों रहा हैं?

दरसल कहीं ना कहीं इसका जिम्मेदार खुद मीडिया और मीडिया में काम करने वाले लोग ही हैं| ऐसा देखा जाता है कि जब कोई मौजूदा सरकार कमजोर होने लगती है और विपक्ष कि सरकार मजबूत होती है तो मीडिया उसकी तरफ चला जाता है| उसका गुणगान और उके कामों के बारे में बताना| ऐसा ही हुआ जब साल 2014 में मोदी लहर चली| सभी पत्रकार और मीडिया पर्सन इसमें शामिल हो गए| आलम ये हुआ की देखते-देखते बीजेपी ये समझ गई की पत्रकार कहा पर आ कर टूट सकते हैं| सबको एक-एक करके अपने अंडर लिया गया| जो ख़ुशी से आये उन्हें शामिल किया गया जो नहीं आये उनके ऊपर हमले हुए, उनके चैनलों में रेड पड़ी| एक बड़ी संख्या में पत्रकार जब नतमस्तक हुए तो इनकी वैल्यू खत्म हो गई| लेकिन जमीन पर काम कर रहे पत्रकार आज भी उसूलो में काम करते हैं| ऐसे में उन्होंने सरकार के सामने झुकने से मना कर दिया| तो उन्हें पीटा जाने लगा, घर से उठाया जाने लगा और मारपीट करके पेशाब पिलाई जाने लगी| ये हाल है सरकार का जो मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहती है|

यूपी में अब से पहले कभी भी पत्रकारों पर ऐसे हमले नहीं हुए| अखिलेश सरकार में शायद ही ऐसा कोई मामला सामने आया हो| लेकिन योगी सरकार में बीते कुछ दिनों में ऐसे ढेरों मामले सामने आये हैं जब अभिव्यक्ति का गला घोंटने की कोशिश हुई है|

Ambresh Dwivedi

Ambresh Dwivedi

एक इंजीनियरिंग का लड़का जिसने वही करना शुरू किया जिसमे उसका मन लगता था. कुछ ऐसी कहानियां लिखना जिसे पढने के बाद हर एक पाठक उस जगह खुद को महसूस करने लगे. कभी-कभी ट्रोल करने का मन करता है. बाकी आप पढ़ेंगे तो खुद जानेंगे.