भारत को वर्ष 1947 में अंग्रेजों से आजादी तो मिल गई। भारत 1950 में गणतंत्र भी बन गया। जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रधानमंत्री तो बन ही गए थे, मगर देश ने अब तक खुद से अपने प्रधानमंत्री का चुनाव नहीं किया था। भारत में कश्मीर को लेकर नेहरू पर उबाल बढ़ता ही जा रहा था। अमेरिका इस कोशिश में था कि भारत पर प्रभाव को बढ़ाया जाए। यह कह सकते हैं कि देश में अस्थिरता का माहौल कायम था। हालांकि उस वक्त भारत के सामने जो सबसे महत्वपूर्ण सवाल खड़ा था, वह यह था कि देश गणतंत्र तो बन ही गया है, लेकिन यह लोकतंत्र में कब तब्दील होगा? नेहरू भी यही चाह रहे थे कि जल्द-से-जल्द भारत लोकतंत्र बने।
पूरी दुनिया की नजर
ऐसे में भारत में अपने पहले आम चुनाव की तैयारी शुरू हो गई। जब भारत में 1952 में पहला आम चुनाव होने लगा तो पूरी दुनिया की नजर भारत पर टिकी हुई थी। यह लाजमी भी था। इसलिए क्योंकि यूरोप और अमेरिका में भी जहां व्यस्क मताधिकार के मायने बेहद सीमित थे और महिलाओं को काफी समय तक मतदान के अधिकार से वंचित रखा गया था, वहीं भारत जो कि मुश्किल से 5 साल पहले आजाद हुआ था और जहां सदियों से राजशाही रही थी, उस देश में जब उसकी आबादी को अपना शासन चुनने का अधिकार दिया गया तो दुनिया को तो हैरान होना ही था। भारत में उस वक्त शिक्षा का स्तर भी केवल 20 फ़ीसदी ही था। ऐसे में इस देश की आबादी को अपनी सरकार चुनने का हक मिलना पूरी दुनिया को हैरान करने वाला विषय तो बन ही गया था।
1952 की सबसे बड़ी घटना
निश्चित तौर पर 1952 में भारत का पहला आम चुनाव उस वक्त दुनिया के लिए इस साल की सबसे घटना बन गई थी। जिस दिन भारत गणतंत्र बना था, उसके एक दिन पहले ही चुनाव आयोग का भी गठन हो गया था। भारत के पहले चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन बने थे। जवाहरलाल नेहरू तो 1951 में ही पहला आम चुनाव कराना चाह रहे थे, लेकिन सुकुमार सेन ने धैर्य के साथ काम लिया। भारत में पहला आम चुनाव होने लगा तो उस वक्त 36 करोड़ की देश की आबादी थी, जिनमें से 17 करोड़ लोग बालिग थे। लोकसभा की 489 सीटें थीं।
सुकुमार सेन की कुशलता
सुकुमार सेन के नेतृत्व में भारत का पहला आम चुनाव बेहद कुशलता के साथ संपन्न हुआ था। ईमानदार तरीके से अधिकारियों ने अपने दायित्वों का निर्वाह किया था। इस दौरान देशभर में 22 हजार 400 पोलिंग बूथ बनाए गए थे। जिन बूथों पर उन लोगों की संख्या अधिक थी, जो पढ़ नहीं सकते थे, वहां पर पार्टी के नाम के स्थान पर चुनाव चिन्ह दे दिए गए थे। चुनाव चिन्ह वाले बैलेट बॉक्स पोलिंग बूथ पर रख दिए गए थे, जिससे लोगों को मतदान करने में आसानी हुई थी।
महिलाओं के नाम की समस्या
इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब इंडिया आफ्टर गांधी में देश के पहले आम चुनाव को लेकर एक बड़ी ही दिलचस्प बात लिखी है। उन्होंने इसमें बताया है कि उस वक्त एक बड़ी समस्या यह थी कि जो महिलाएं अशिक्षित थीं, वे अपना नाम ना बता कर फलां की मां या फलां की पत्नी के तौर पर बताती थीं। ऐसे में सुकुमार सेन ने उस वक्त 28 लाख महिलाओं का नाम वोटर लिस्ट से हटाने का फैसला किया था। साथ ही उन्होंने अगले चुनाव तक इस समस्या का समाधान ढूंढने की ठान ली थी।
राजनीतिक टक्कर
राजनीति में यदि महत्वाकांक्षा ना हो तो फिर राजनीति क्या? कांग्रेस के अंदर उस वक्त नेहरू के खिलाफ कुछ लोग विरोध भी करने लगे थे। मतभेद भी उभर आये थे। टंडन ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद तो प्रधानमंत्री पद के लिए जवाहर लाल नेहरू की दावेदारी और मजबूत हो गई थी। सोशलिस्ट पार्टी के जय प्रकाश नारायण भी उभर रहे थे। दूसरी ओर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इंडियन नेशनल कांग्रेस से निकलकर जनसंघ की स्थापना करके आम चुनाव में अपनी दावेदारी भी ठोंक दी थी। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया के श्रीपाद अमृत डांगे भी एक और दावेदार के तौर पर खड़े हो गए थे। भीमराव अंबेडकर भी जवाहर लाल नेहरू से आहत हो गए थे और उन्होंने कांग्रेस से निकलकर शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन की स्थापना कर दी थी जो कि बाद में रिपब्लिकन पार्टी बन गई थी।
जबरदस्त चुनाव प्रचार
अब चुनाव प्रचार शुरू हो गया। सांप्रदायिकता पर हमले को नेहरू ने अपने चुनाव प्रचार का विषय बनाया, तो वही जनसंघ ‘संघे शक्ति कलियुगे’ की अवधारणा पर आगे बढ़ रहा था। अंबेडकर नेहरू की नीतियों पर निशाना साध रहे थे। जयप्रकाश नारायण और कृपलानी गरीबों की अनदेखी के लिए कांग्रेस पर निशाना साध रहे थे। कम्युनिस्ट पार्टी तो बाकी सभी को भ्रष्ट बताने में जुटी हुई थी। उसे तो सोवियत रूस से भी मदद मिल रही थी। हर जगह पोस्टर नजर आ रहे थे। नारे लग रहे थे। जवाहरलाल नेहरू, जयप्रकाश नारायण और श्यामा प्रसाद मुखर्जी सब के भाषण हो रहे थे। सभी एक से बढ़कर एक बोलने वाले धुरंधर थे।
लहराई विजय पताका
आखिरकार 1951 में 25 अक्टूबर को जो मतदान शुरू हुआ था, वह 1952 के फरवरी में खत्म हुआ और मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन ने इसे लोकतंत्र का सबसे बड़ा प्रयोग बताते हुए सभी का धन्यवाद किया। भारत के पहले आम चुनाव में सबसे पहला वोट हिमाचल के छीनी तहसील में पड़ा था। पहले आम चुनाव में नेहरू की लोकप्रियता सबके सिर चढ़कर बोली और इस चुनाव में ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी को बहुमत मिल गया। कांग्रेस को 489 में से 324 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। यही नहीं, राज्यों की 3280 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस को 2247 सीटों पर विजय हासिल हुई थी।