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Taaza Tadka

हाँ मुझे लड़की होने की आज़ादी चाहिए, और तुम मुझे घूरो मत बल्कि अपनी ऑंखें फोड़ लो

इनको समाज सुधार का मतलब सिर्फ बुरका और घूँघट ही पता है | ये लड़कों को शिक्षा नहीं देते हैं कि, बुरी नजर अगर तुम्हारी खुद की हद में नहीं है तो अपनी ऑंखें
Blog Manasi Agrawal 3 July 2017

16 दिसंबर 2012…..हमारे देश के सबसे दर्दनाक तारीखों में से एक है वो दिन जब हर भारतवासी रो रहा था लड़ रहा था | किसने सोचा था कि २३ साल की ज्योति जो अपने दोस्त के साथ फिल्म देखने गयी थी ,वो सिर्फ अब हमारी याद में ही ज़िंदा रहेगी,किसने सोचा था कि वो हम सबको छोड़ कर ऐसे चले जायेगी|

उसके साथ जो हुआ उस से तो हम सब वाकिफ ही है और वो बात सोच के मैं सोचने पर मजबूर हो जाती हूँ कि वे लड़के पता नहीं क्या थे ? क्योंकि कोई इंसान तो ऐसा नहीं कर सकता |

क्या गलती थी उसकी कि वो एक लड़की थी ?
या फिर वो रात को अपने दोस्त के साथ घूम रही थी ..?

कहने को हमारा देश कब का आज़ाद हो चुका है ,लेकिन आज भी लड़किया बंदिशों के पिंचरे में बंद है ,समाज के बनाये गए नियमो में बंधी हुई है …..आज यह सवाल मेरे दिमाग में आता है ,यह कैसी आज़ादी ??
जाते जाते भी उसने हार नहीं मानी वो डरी नहीं ,अपने इंसाफ के लिए लड़ती रही ,इसलिए उसे “निर्भया” कहा गया |

जाने से पहले उसने अपने परिवार से कहा था,

“मुझे ठीक होना है मुझे जीतना है , मुझे जीना है”

लेकिन १३ दिन के मुश्किल संधर्ष के बाद उसने दम तोड़ दिया और इस दुनिया के लिए बहुत बड़ा प्रश्न छोड़ गई | आखिर लड़कियों को आज़ादी क्यों नहीं लगा के गयी ? आखिर ऐसी दरिंदगी वाली घटना को अंजाम देने वाला कोई दरिन्दा ही हो सकता है |
आखिर क्या दोष था उस लड़की का बस यही की रात को लौट रही थी , जिन ज़ाहिल लोगो ने ऐसा किया क्या उन्हें तनिक भी अपने माँ और बहन की चिंता नहीं हुई ? क्या वो इतने अंधे हो गए थे कि, एक मासूम की ज़िंदगी पल भर में ले ली| अगर ऐसी घटना उनकी बहन बेटियों के साथ हुआ होता तो क्या वो चुप बैठते ? नहीं कभी नहीं | आज भी उस घटना के दिन को याद करके आँखे नाम हो जाती है |

जाते जाते भी उसने अपने बारे में नहीं सोचा जाने से पहले उसने अपने पापा से कहा,

“पापा आप थक गए होंगे , आप आराम कर लीजिये मैं भी ठीक हूँ” |

और उसने ऐसी गहरी नींद ली जिसके बाद वो कभी नहीं उठी|

लेकिन उसके जाने के बाद भी पूरा देश इंसाफ के लिए लड़ता रहा , और हमारी न्याय व्यवस्था ऐसी है की ४ साल बाद उसको इंसाफ मिला | लेकिन आज भी जब उस हादसे का जिक्र होता है रूह कप उठती है और आँखें नम हो जाती है| हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज है जहा स्त्रियों को देवी और माँ दर्ज़ा देते है, उसी समाज के कुछ लोग दानवी प्रवृति का परिचय दे जाते है कलंकित कर जाते है इस समाज को | आज भी कई लड़कियों के साथ ऐसी घटाएँ घटती है और हमारा ये निकम्मा समाज उसी को कसूरवार ठहराता है |

उनको मानसिक तौर पर कोस कोस कर ये सोचने पे मजबूर कर देते है ‘लड़की होना ही गलत है ??’
मैं भी एक लड़की हूँ और मुझे इस बात पे गर्व है और दुनिया की हर लड़कियों को ये बात समझनी होगी इन सब में उनकी कोई गलती नहीं |

समझना हमारे देश के उन बेटे को है, हमारे समाज को है कि, वो अपने बच्चो में ऐसा संस्कार भर दे कि कल फिर ऐसी दिल दहला देने वाली घटना न घटित हो सके | नारी का सम्मान करना सीखे उन्हें इंसाफ दिलाना सीखे ना की पैरों के तले रौंदना| क्योंकि नारी की सहनशीलता की हद जब पर हो जाती है तो वह काली का रूप ले लेती है तब सर्वनाश होना निश्चित है|

निर्भया को तभी सच्चे मायने में इंसाफ मिलेगा जब हम सब ये संकल्प ले की ऐसे दानवो को ऐसी सजा दिलवाये जिसे देखकर कोई ऐसा करने का फिर से हिम्मत न करे | तभी जा कर निर्भया को सच्चा इंसाफ मिलेगा |

अरे यार नहीं चाहिए मुझे कोई ऐशो आराम , नहीं चाहिए मुझे गुड्डा गुड़िया | मुझे नहीं चाहिए कोई डिग्री अगर मुझे मेरी आज़ादी ही नहीं दे सकता है ये समाज | ये समाज सुधारक आज के परिवेश में लड़कियों के सबसे बड़े दुश्मन बन गए हैं |

क्योंकि वास्तव में इनको समाज सुधार का मतलब सिर्फ बुरका और घूँघट ही पता है | ये अपने और हमारे यहाँ के लड़कों को ऐसी शिक्षा नहीं देते हैं कि,

बुरी नजर अगर तुम्हारी खुद की हद में नहीं है तो कुत्तों अपनी खुद की आँखें फोड़ लो , मुझे आज़ादी चाहिए , मेरी आज़ादी , मेरा अधिकार , लड़की होने का अधिकार