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All around the world, thousands of markets have millions of tents, and an Arabic tent still lists at the top position and astonishing part of Arabic tents.

Taaza Tadka

क्या आपका राष्ट्रपति दलित है?

रामकोविन्द को राष्ट्रपति के रूप में प्रोजेक्ट करने के पीछे बिहार में अगले चुनाव हैं, क्यूंकि सामाजिक समरसता बैकफुट पर रही है। तो दलित बनाम दलित

एक प्रसिद्ध कंपनी के विज्ञापन में आपने ये कहते हुए सुना होगा कि क्या आपके टूथपेस्ट में नमक हैं? यह विज्ञापन एक अलग स्वाद की  बात करते हुए उसे अन्य से अलग करता हैं।

वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में राष्ट्रपति का चुनाव चुनाव भी उसी ट्विस्ट का याद दिला रहा है कि क्या आपका राष्ट्रपति दलित है.. वैसे तो श्री नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही यही कयास लगाये जा रहे थे कि लालकृष्ण आडवाणी ही अगले राष्ट्रपति के लिए NDA के उम्मीदवार होंगे पर कुछ जानकारों ने इसे बीजेपी का हिडेन एजेंडा और आडवाणी की हैसियत उस बुढे मालिक से कर दिया जो घर-बार तो बनाता है पर उसे घर के लोग कुछ समय बाद आँगन फिर बरामदे में बैठा कर उसे राजनीतिक मुफ़लिसी के हाल पर छोड़ दिया।

बहरहाल राम कोविंद की छवि को देखते हुए उन्हें कहीं से आप आलोचना नही कर सकते। निश्चित रूप से वे एक अच्छे उम्मीदवार के रूप के जणता की पसंद हो न हो पर वर्तमान सरकार के दलित हितैषी होने की कोशिश शायद कामयाब हो जाये ,लेकिन शुरुआत में दलितों को गोकशी, गोहत्या, गोरक्षा के नाम प्रताड़ित किया गया जोकि बीजेपी की आइडियोलॉजी को दिखा रहा था। पर एक तरफ जहाँ सरकार प्रोमोशन में Reservation का विरोध करती है वही एक दलित चेहरा को प्रोजेक्ट कर अपने हिडेन पोलिटिकल एजेंडा को आगे बढ़ा रही है।

बीजेपी थिक टैक के लिए इस पर सहमत होना बहुत मुश्किल रहा होगा जहां एकओर मनुवाद पर संघवाद हावी है  और कुछ मुठ्ठीभर लोग मोदी के कारण सत्ता सुख ले रहे हैं। रामकोविन्द को राष्ट्रपति के रूप में प्रोजेक्ट करने के पीछे बिहार में अगले चुनाव हैं, क्यूंकि सामाजिक समरसता बैकफुट पर रही है। तो दलित बनाम दलित की यह लड़ाई सीधे विपक्ष से हो गई क्योंकि मीरा कुमार, बाबुजगजीवन राम की उत्तराधिकारी और बिहार की राजनीतिक चेहरा को प्रोजेक्ट कर कांग्रेस ने अपने को दलितों से दूर नही रखा।

एक समय मायावती रामनाथकोविन्द के साथ थी पर अब मीरा कुमार को समर्थन कर चुनाव को दिलचस्प बना दिया। मायावती नही चाहती कि कोई उनका दलित टैग छिन ले ओर बीजेपी अपना हिडेन एजेंडा साधने में सफल हो जाए।

मीरा कुमार अनुभव और उपलब्धियों के मामलों में कोविंद पर भारी दिख रहीं  चाहे आईएफएस, कैबिनेट मंत्री, लोकसभा स्पीकर हो पर एक लेख में  उनके विदेश दौरे में सरकारी खर्चे का दुरुपयोग दिखा रहा है।

बहरहाल NDA का यह प्रयास सार्थक है तो तिन साल में विकास,शिक्षा ,स्वास्थ्य, रोजगार ,सुरक्षा ,आर्थिक स्तर पर चूक और धीमी विकास दर पर अगर काम हो तो अगले चुनाव में सरकार फॉउंटफुट पर रहेगी।

कभी अमेरिकी राजनीति में कहा जाता था कि,

‘लेवेल -ब्राण्ड अलग-अलग है लेकिन कन्टेन्ट एक ही है’

अगर यहां ऐसा नही तो बीजेपी का यह कदम स्वागतयोग्य हैं।