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हे गाँधी बाबा तू काहें नाहिं अउरो चरखा बनवा देहला ? देशो चलत, सरकारो चलत

रामनाम पंडित भुनभुनाये जा रहे थे ,

गांधी बाबा क चश्मा सौ बरिस धूम मचवलस लइका पढ़े जाय त कबूत्तर खरहां के साथे च से चरखा पढ़ावल जाय

वो समईया चरखा खोजे के न रहल ।अब त लईकवा कुल जान खाय जात हवे की इ चरखा का होला, अब कहा से चरखा लियाय के देखाई इनहन के ई बवाल बा। येही बड़े लगत हाउ अंगरेजी माध्यम वाले च से चम्मच बतावे न , अजदिया के बाद चमचावा त घर घर पहुच गईल।

गांधी बाबा के का पता कि उनके मुअले के बाद उनकर चरख्वा करोड़ों में बिकाइ, नाहिं त कुछ जादा ही बनवा देहले होते|

कासे कि, वो ही के बेच के सरकार चालत। अबहीं के सरकार का कउन भरोसा, अनगिनती धन बैभव बा लेकिन सरवा लोगन के पइसवे के कमी बा |

आपन नगर हवेली और एक जउन बाहरवा बैंक हौ , स्विस ओहमें ले जाए खातिर केतना अधिक पैसा हौ, लेकिन जनता खातिर कोष नाही बा |

अबहि तक ई लोग एतना भिखारी बायन कि १२ रुपिया प्लेट का खाना खात हउवन |
हे गाँधी बाबा तू काहें नाहिं अउरो चरखा बनवा देहला ? हमहुँ लोगन क तनी कुछ हो जात|

तब तक कल्लू चाचा का धैर्य टूटा ,,का ये रामनाम ? का बडबडात हुआ मरदवा?

‘इहां आव इ देखा बाइस लाख त खली टेक्स लेहलस सरकार गाँधी बाबा के चरखा क ।अब्बो कहे की महगाई हाउ ,त गांधी बाबा क राज्घत्वा से कुछ हाड मॉस खोजे शायद कवनो बड़हर खरीददार मिल जाय’ ,

‘अरबों खरबों के साथ तेक्सवो ढेर मिली ,देशो चली सरकारो चली’।