काशी हिन्दू विश्वविद्यालय परिसर स्थित सर सुन्दरलाल अस्पताल पूर्वांचल के एम्स के रूप में जाना जाता है। लेकिन लापरवाही और सेवा भाव हीनता का इससे शानदार नमूना शायद ही दुनिया में विद्यमान हो। चिकित्सक मरीजों के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं मानों उनके ऊपर एहसान कर रहे हों।
इतनी जलालत झेलने के बाद भी अगर रोगी ठीक होकर वापस जाए तो बात समझ में आती है ,मैं ये नहीं कहता की यहाँ रोगी ठीक नहीं होते लेकिन कितने और बीमार होकर भी वापस लौटते हैं । खैर ये ये भी कोई बड़ी बात नहीं है। सबसे बड़ा खतरा जो यहाँ पनपा है वो है सेवा भाव में आया लोप।
अभी कुछ दिन पहले बाल रोग विभाग के आई सी यूं से बिल्ली एक बच्चे को उठा ले गयी ,बच्चे की मौत हो गयी ,अस्पताल प्रशासन रिपोर्ट तैयार कर रहा है । उससे भी पीछे जाएँ तो सर्जरी के एक नामचीन चिकितसक महोदय जो आज अस्पताल के मुख्य प्रशासनिक पद पर आसीन हैं ने अपने कर कमलों से किडनी ट्रांसप्लांट करते समय डोनर और टेकर दोनों को सुर्धाम पहुचा दिए।पता नहीं वो जांच कहा पहुची।
पहले हड्डी विभाग में बहुत कम आपरेशन हुआ करते थे ,प्लास्टर से काम चल जाता था आज प्लास्टर न के बराबर होते हैं आपरेशन धुआधार। हड्डी विभाग के यहाँ के चिकित्सक महोदय एक राड सर्जरी के लिए लिखते है जो नरिया स्थित एक दूकान पर मिलता है उसके अलावा कही भी अगर आप जाए तो कोई उनके लिखे को पढने वाला भी नहीं मिल सकता कारण कुछ लिखा ही नहीं होता सिर्फ उस सर्जिकल होउस में पहुचने मात्र से वो मिल सकता है।
इस सबके पीछे भरी दलाली और कमाई का सवाल है। अच्छी कंपनियों की सस्ती दवाओं के बजाय नकली कंपनियों के महंगी दवाओं को कमाने के चक्कर में लिख कर ये धरती के भगवान् सीधे स्वर्ग का धर्षण कराने पर आतुर हैं।अस्पताल के सामने स्थित हर एक दूकान के पास अपनी एक नीजी कंपनी है जिन्हें अस्पताल के किसी न किसी बड़े चिकित्सक का बर्धस्त प्राप्त ही।
एक न्यूरो के नाम चीन चिकित्सक मंगलवार और शुक्रवार को यहाँ दर्शन देते हैं लगभग दो हजार मरीज इनके दर्शन को आते हैं। इनके अगर कार्यकाल को खंगाला जाय तो पता चलेगा की अपने विभाग से जुड़े आपरेशन ये शायद दो चार किये और करते हो पर रोगियों पर इनका गजब का जादू है न्यूरो रोग का कद इन्होने बढ़ा दिया है बचपन में हम लोग जिसे गंभीर रोग मानते थे कोई पढ़ा लिखा आदमी ही इसका नाम लेता था आज अनपढ़ भी कहता है इसका नाम।
ये वाकई पूर्वान्चल का एम्स हो चला है, महामना के चिरजीवी सपने स्वास्थ्य और शिक्षा अपने दरवाजे पर ही हांफ रहे है,फिर भी मालवीय बरस मनाने में हमें फक्र है।